हिन्दू धर्म पंचांग के मुताबिक फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी (20 फरवरी) महाशिवरात्रि के रूप में प्रसिद्ध है। क्योंकि यह शिव के दिव्य ज्योर्तिंलिंग के प्राकट्य की बड़ी ही शुभ रात्रि के साथ ही प्रकृति व पुरुष के मिलन की प्रतीकात्मक दृष्टि से शिव विवाह का मंगल अवसर भी। शिव भक्ति के इस विशेष काल में शिव भक्ति सभी सांसारिक इच्छाओं का पूरा करने वाली मानी गई है।
यह शिव भक्ति 9 दिन की जाती है। जिसकी शुरुआत फाल्गुन कृष्ण पंचमी (12 फरवरी से) से होती है। खासतौर पर उज्जैन के प्रसिद्ध महाकालेश्वर ज्योर्तिलिङ्ग में इस दौरान शिव के अनेक स्वरूपों के दर्शन होते हैं। यहां यह पुण्य काल शिव नवरात्रि के रूप में भी प्रसिद्ध है।
ऐसे काल में अगर आप भी जीवन में शुभ व मंगल चाहते हैं तो शिव नवरात्रि के हर दिन जल, बिल्वपत्र, दूध व दूध की मिठाई चढ़ा शिव पूजा कर भावना और आस्था के साथ एक विशेष शिव आरती कर जीवन को खुशहाल बना सकते हैं। यह है गंगाधर की आरती ।
पौराणिक मान्यता है कि पवित्र गंगा जब पृथ्वी पर उतरी तो उसके तेज प्रवाह पर महादेव शिव की जटाओं ने काबू पाया। शिव की जटाओं में गंगा को धारण करना प्रतीकात्मक संदेश देता है कि जीवन की आपाधापी में सफल होने के लिए सोच, विचार और मन को गंगा की भांति पावन यानी साफ रखने के साथ ही महादेव की भांति धैर्य व बड़प्पन के साथ सभी की भलाई के भाव रखे जाएं। ऐसे ही भाव के साथ करें यह आरती -
ॐ जय गंगाधर जय हर जय गिरिजाधीशा।
त्वं मां पालय नित्यं कृपया जगदीशा॥
कैलासे गिरिशिखरे कल्पद्रुमविपिने।
गुंजति मधुकरपुंजे कुंजवने गहने॥
कोकिलकूजित खेलत हंसावन ललिता।
रचयति कलाकलापं नृत्यति मुदसहिता ॥
तस्मिंल्ललितसुदेशे शाला मणिरचिता।
तन्मध्ये हरनिकटे गौरी मुदसहिता॥
क्रीडा रचयति भूषारंचित निजमीशम्।
इंद्रादिक सुर सेवत नामयते शीशम् ॥
बिबुधबधू बहु नृत्यत नामयते मुदसहिता।
किन्नर गायन कुरुते सप्त स्वर सहिता॥
धिनकत थै थै धिनकत मृदंग वादयते।
क्वण क्वण ललिता वेणुं मधुरं नाटयते ॥
रुण रुण चरणे रचयति नूपुरमुज्ज्वलिता।
चक्रावर्ते भ्रमयति कुरुते तां धिक तां॥
तां तां लुप चुप तां तां डमरू वादयते।
अंगुष्ठांगुलिनादं लासकतां कुरुते ॥
कपूर्रद्युतिगौरं पंचाननसहितम्।
त्रिनयनशशिधरमौलिं विषधरकण्ठयुतम्॥
सुन्दरजटायकलापं पावकयुतभालम्।
डमरुत्रिशूलपिनाकं करधृतनृकपालम् ॥
मुण्डै रचयति माला पन्नगमुपवीतम्।
वामविभागे गिरिजारूपं अतिललितम्॥
सुन्दरसकलशरीरे कृतभस्माभरणम्।
इति वृषभध्वजरूपं तापत्रयहरणं ॥
शंखनिनादं कृत्वा झल्लरि नादयते।
नीराजयते ब्रह्मा वेदऋचां पठते॥
अतिमृदुचरणसरोजं हृत्कमले धृत्वा।
अवलोकयति महेशं ईशं अभिनत्वा॥
ध्यानं आरति समये हृदये अति कृत्वा।
रामस्त्रिजटानाथं ईशं अभिनत्वा॥
संगतिमेवं प्रतिदिन पठनं यः कुरुते।
शिवसायुज्यं गच्छति भक्त्या यः श्रृणुते ॥
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
11 फ़रवरी 2012
आज से 20 तक शिव नवरात्रि..शुभ चाहें तो 9 दिन न चूकें ऐसी शिव पूजा
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