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27 जनवरी 2012

यह 'भारतीय' नहीं होता तो पाकिस्तान में तड़प कर मर जाते हजारों!

पाकिस्तान में ये शख्स लाखों लोगों की उम्मीद है। बेसहारा को सहारा, महरूम की मदद में मशरूफ होकर पीड़ितों के घाव पर मरहम लगाना ही इनका मिशन है। इंसानी खिदमत ही इनका धर्म है।

मानवता का स्कूल, बेसहारा बच्चों के मां-बाप, अस्पताल और भी बहुत कुछ हैं 83 बरस के ये करूणा के देवदूत। मानवता की खिदमत को ही अपना धर्म बना चुके इस शख्स के दंगाग्रस्त इलाके में दस्तक देने मात्र से ही लड़ाइयां रूक जाती हैं। डाकूओं का दिल पिघल जाता है। मानवाता के लिए इनके प्रयास को देखकर आपका दिल भी इनके जज्बे को सलाम करेगा। अपनी सेवा के बदौलत ही ये 16 बार नोबल प्राइज के लिए नामांकित किए जा चुके हैं।

पाकिस्तान के 'फादर टेरेसा'....

अब्दुल सत्तार इदी..पाकिस्तान के 'फादर टेरेसा'....लाखों लोगों की जिन्दगियां इस नाम के साए में महफूज हैं। पाकिस्तान में इनकी प्रतिष्ठा का आलम ये है कि इदी फाउंडेशन की गाड़ियां पहुंचते ही गोलीबारी थम जाती है। कर्फ्यू में इनकी गाड़ियों को कोई खतरा नहीं रहता। दंगा थम जाता है। इनके साए में अमन चैन महफूज रहता है।

कराची, पेशावर हो चाहे ब्लूचिस्तान हर जगह इनको हर धर्म, जाति के लोग इज्जत बख्शते हैं। पर्दा में सदैव रहने वाली औरतें भी जब इनको देखती हैं तो हाथ मिलाकर इनके हाथों को चूम लेती हैं। वह ऐसा महसूस करती हैं कि इनसे मिलना जैसे अल्लाह का फजल हो। इनकी सादा तबियत और बेनियाजी लोगों को काफी प्रभावित करती है।

पाकिस्तान में दूसरे गांधी के नाम से मशहूर

कोई भी धर्म मानवता से बड़ा नहीं होता। यही संदेश देते हैं पाकिस्तान में दूसरे गांधी के नाम से मशहूर, अब्दुल सत्तार इदी। पाकिस्तान में कहीं भी, कभी भी, कोई भी हादसा हो, इदी का मेडिकल एंबुलेंस सबसे पहले पहुंचता है। यह महज संयोग कहें या मिट्टी का असर, पाकिस्तान के इस गांधी का जन्म स्थान भी गुजरात ही है। गुजरात के बंतावा गांव में इदी का जन्म 1928 में हुआ था।

सन् 1947 में भारत विभाजन के बाद उनका परिवार भारत से पाकिस्तान गया और कराची में बस गया। 1951 में आपने अपनी जमा पूंजी से एक छोटी सी दुकान ख़रीदी और उसी दुकान में इन्होंने एक डाक्टर की मदद से छोटी सी डिस्पेंसरी खोली। इसी जमांपूजी से जो भी कमाते खुद सड़क किनारे अपना बसर कर लेते लेकिन बचे हुए पैसों से गरीबों की मदद किया करते थे।

एक बार करांची में फ्लू की महामारी फैली इदी साहेब ने टेंट लगाया और मरीजों को मुफ्त दवाएं बांटी। इतना ही नहीं मरीजों की इतनी सेवा की कि लोगों ने इनके सेवा भाव को देखते हुए इनको बहुत पैसा दिया। इसके बाद अब्दुल सत्तर इदी ने इदी फाउण्डेशन बनाया। आज इदी फाउन्डेशन पाकिस्तान और दुनिया के करीब 13 देशों में कार्यरत है। गिनीज विश्व कीर्तिमान के अनुसार इदी फाउन्डेशन के पास संसार की सबसे बड़ी निजी एम्बुलेंस सेवा हैं।

इस फाउंडेशन के पास 1800 एंबुलेंस, 3 एयरोप्लेन और एक हेलीकॉप्टर है। पूरे देश में करीब 450 केंद्र हैं। इनकी संस्था अभावग्रस्त को सहारा, अनाथों के लिए अनाथालय, मुफ्त अस्पताल, पुनर्वास करना, विकलांग लोगों के लिए बैसाखी, व्ह्लील चेयर उपलब्ध कराना, प्राकृतिक आपदा से ग्रसित लोगों के लिए हर मदद उपलब्ध कराती हैं। इनकी संस्था लंदन और अमेरिका सहित दुनिया के 13 देशों में समाजहित में कार्य करती हैं।

इस संस्था ने करीब 40 हजार नर्सों को ट्रेनिंग दी है। पाकिस्तान में लोग करुणा का देवदूत और पाक का फ़ादर टेरेसा कहते हैं। इन्होंने लाखों अनजान लोगों का दाह संस्कार किया है। उनकी पत्नी बेगम बिलकिस इदी, बिलकिस इदी फाउन्डेशन की अध्यक्षा हैं। पति-पत्नी को सम्मिलित रूप से सन् 1986 का रमन मैगसेसे पुरस्कार समाज-सेवा के लिये प्रदान किया गया था। इन्हें गांधी शांति पुरस्कार 2007 में भारत सरकार ने दिया था। उन्हे लेनिन शान्ति पुरस्कार और बलजन पुरस्कार भी मिले हैं।

करांची की प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक प्राध्यापिका किरण बशीर अहमद के मुताबिक, पाकिस्तान में अब्दुल सत्तार इदी का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। सादा तबियत और बेनियाजी के धनी इदी को इंसानी खिदमत ने काफी शोहरत दी है।

इदी सड़कों के किनारे पड़े हजारों शव का दाह-संस्कार करने के साथ मानवता के हर घाव पर मरहम लगाते हैं। इदी अनाथों की देखभाल सहित उनकी शादी तक का जिम्मा उठाते हैं। मानवता का यह देवदुत केवल पाकिस्तान में ही नहीं बल्कि दुनिया में कहीं भी प्राकृतिक आपदा आए सेवा में हाजिर रहता है। थोड़े शर्मीले इदी, चकाचौंध से दूर ही रहना पसंद करते हैं। पाकिस्तान के लोग शांति के नोबल प्राइज के लिए योग्य व्यक्ति मानते हैं।

आज इदी खानदान के पास जो कुछ भी है वह दुखी इन्सानों पर लुटाने के लिए ही है। इनकी झूला स्कीम.. ने हजारों मासूम बच्चों की जान बचा ली है। बेसहारा लड़कियों की शादी करते वक्त अब्दुल सत्तार इदी की पत्नी बिलकिस खुद छानबीन करती हैं। जब खुद उनको भरोसा हो जाता है तब अपने संस्था में रह रही अनाथ बच्चियों की शादी करती हैं। शादी के रस्मों रिवाज का खास ख्याल रखा जाता है।

शादी में शरीक होने पर ऐसा लगता है कि इनकी अपनी बेटी की ही शादी हो। सभी बच्चों को खुद अपने बच्चों जैसा प्रेम और भाव रखते हैं। एक बार अब्दुल सत्तार इदी के बेटे फैसल ने साइकिल मांगी। इदी साहब ने मना कर दिया। इसके बाद अपने बेटे को समझाते हुए कहा'' मैं सायकिल तभी दूंगा, जब सभी बच्चों को दे पाउं।'

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