गांव के लोग उस युवक की छाती, कंधों और पीठ में लकड़ी के नुकीले हुक को घुसाते हैं। उस हुक से रस्सी बंधी होती है जिसका दूसरा सिरा घर के छत में बांधा जाता है।
उस रस्सी के सहारे फिर उस युवक को धीरे-धीरे ऊपर खींचा जाता है। हवा में हुक से टंगे उस युवक के शरीर से खून निकलता है लेकिन इतने दुख के बावजूद वह नहीं चीखता।
हवा में जब वह झूलता है, उसी वक्त उसके बांहों और पैरों में भी हुक ठोका जाता है। मर चुके पूर्वजों की खोपड़ियों को उन हुकों से बांधा जाता है।
खून बहने और इतने टार्चर के बाद जब लोगों को जब विश्वास हो जाता है कि लड़का बेहोश हो गया है तब उसे रस्सी से उतारा जाता है।
जब उसे होश आता है तब वह अपनी बांयी ऊंगली को ईश्वर को बलि चढाने के लिए कटवा देता है। इस बलि से यह माना जाता है कि वह युवक आगे चलकर शक्तिशाली शिकारी बनेगा।
अंत में वह युवक रिंग के अंदर दौड़ता है। उसके बाद गांववाले उसके शरीर पर लगे हुक को निकालते हैं। लेकिन इन हुकों को उस दिशा से निकाला जाता जिधर से उसे ठोका जाता है बल्कि उसे उल्टी दिशा से खींचकर निकाला जाता है।
शरीर पर इतने घाव और दुख दिन भर झेलने के बाद उस युवक को जवान आदमी घोषित किया जाता है।
गौरतलब है कि श्रीलंका में भी हुकों से टांगने की इसी तरह की प्रथा चलन में है।
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