शरद ठाकर। यह 1968 का वर्ष था। राजीव गांधी एक बार सीधे अमिताभ के घर पहुंच गए और तेजी से कहा ‘आंटी! इटली से मेरी एक दोस्त भारत आ रही है। मैं चाहता हूं कि वह जब तक भारत में है, उतने दिन आपके ही घर पर रुके।’
तेजी बच्चन ने मुस्कुराते हुए राजीव से पूछा.. ‘नाम क्या है उसका?’
‘सोनिया..सोनिया’ राजीव ने मात्र इतना ही परिचय दिया।
इधर तेजी ने तो इसकी अनुमति दे दी लेकिन कवि बच्चन कुछ सोच-विचार में पड़ गए.. राजीव की मेहमान है, वह भी विदेशी तो उसके लिए खास व्यवस्थाएं करनी पड़ेंगी। घर पूरी तरह से व्यवस्थित करना पड़ेगा।
इतना सोचना हुआ कि घर के लोग काम में लग गए। घर को नए सिरे से सजाया गया। ठंड का मौसम था तो बाथरूम में गीजर की व्यवस्था की गई। दरवाजे-खिड़कियों के परदे बदल दिए गए। इधर अमिताभ भी कुछ दिनों के लिए दिल्ली आ गए। अब पूरा परिवार सोनिया के आने का पलकें बिछाकर इंतजार कर रहा था।
सुबह साढ़े तीन बजे की फ्लाइट थी और देर रात का समय होने के कारण राजीव भी संकोच कर रहे थे कि इतनी रात में अमिताभ का पूरा घर परेशान होगा। उन्होंने अमिताभ से कह दिया कि आज की रात तू मेरे ही घर पर सो जा। आधी रात में तुझे उठाने के लिए तेरी फैमिली को परेशान नहीं करना चाहता।
अमिताभ ने भी इसके लिए हामी भर दी। इस समय भी देखिए कि राजीव छोटी-छोटी बातों का भी कितना ध्यान रखा करते थे। लेकिन अमिताभ समझ गए थे कि राजीव ने अपनी नर्वसनेस को दूर करने के लिए उन्हें घर पर रोका है।
यह नवंबर का महीना था। आधी रात को राजीव गांधी, अमिताभ बच्चन और अन्य दो दोस्त दो गाड़ियों से एयरपोर्ट के लिए निकल गए। सोनिया जी का आगमन हुआ। घर वापसी तक भी अभी ठंड कम नहीं हुई थी, बल्कि अब तो अपने पूरे जोर पर थी। सुबह के अभी चार ही बजे थे, इसलिए राजीव ने सोचा कि अमिताभ के घरवालों को इतनी सुबह-सुबह डिस्टर्ब करना ठीक नहीं रहेगा। यही ख्याल कर उन्होंने निश्चय किया कि सोनिया पहली बार दिल्ली आईं हैं तो क्यों न उन्हें दिल्ली के दर्शन करवा दिए जाएं। इसके बाद दोनों गाड़ियां दिल्ली की सुनसान सड़कों पर लगभग दो घंटे तक दौड़ती रहीं।
सोनिया का मिशन मैरिज...
दरअसल सोनिया ‘मिशन मैरिज’ के लिए ही भारत पधारी थीं। लेकिन इस संभावित संबंधों के बारे में प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी को खबर करने की जिम्मेदारी तेजी बच्चन को निभानी थी। इसमें लंबा समय लग गया। पूरे दो महीने तक सोनिया, बच्चन परिवार के घर में एक सदस्य की तरह रहीं। अंतत: इंदिरा गांधी जी भी इस रिश्ते के लिए तैयार हो गईं।
एक शुभ दिन विवाह का मुहूर्त तय कर दिया गया। इस समय तेजी के उत्साह का कोई पार न था। दरअसल उनकी महती इच्छा थी कि अमिताभ के जन्म के बाद उनके घर मंे एक बेटी का जन्म हो। लेकिन उनकी यह इच्छा पूरी नहीं हो सकी थी, पर आज सोनिया को लेकर उनकी यह इच्छा पूरी होती दिखाई दे रही थी।
तेजी बच्चन ने बंगले को सुंदर और सुरुचिपूर्ण ढंग से सजाया था। पूरे बंगले को फूलों से ढंक दिया गया था। सोनिया के हाथों में मेहंदी लग चुकी थी और जब वे दुल्हन की पोशाक में आईं तो ऐसा लगता था,
मानो बंगले में किसी अप्सरा ने कदम रखा हो।
सोनिया का कन्यादान कवि हरिवंशराय बच्चन और तेजी बच्चन ने ही किया था और भाई के कर्तव्य अमिताभ ने पूरे किए थे। लेकिन अमिताभ तो वर राजा के दोस्त थे तो ऐसा कैसे चलता? इसलिए अमिताभ ने राजीव-सोनिया के विवाह के एक दिन पहले सोनिया से राखी बंधवा ली और अब वे हिंदू शास्त्रानुसार सोनिया के भाई बन गए।
इस राखी का संबंध दशकों तक अटूट रहा। सोनिया की बांधी हुई राखी अमिताभ पूरे प्रेम से सहेजते थे और यह राखी उनकी कलाई पर कई-कई महीनों तक बंधी रहती थी। अमिताभ को सोनिया की बांधी राखी से कितना लगाव था, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब 1982 मंे एक दुर्घटना क बाद अमिताभ ब्रीचकैंडी हॉस्पिटल मंे गंभीर अवस्था में थे, तब कई चिकित्सक क्रियाओं के लिए डॉक्टर्स ने उनकी कलाई से वह राखी हटाने की कोशिश की लेकिन अमिताभ टस से मस नहीं हुए। और अंतत: डॉक्टर्स को उनकी मर्जी के आगे हार माननी पड़ी। अमिताभ को विश्वास था कि उनकी कलाई पर बंधी यह राखी उनके जीवन की रक्षा करेगी।
वर्तमान समय :
समय का चक्र अब विपरीत दिशा में घूम चुका है। राजीव गांधी के स्वर्गवास के बाद इन भाई-बहन के रिश्ते में दरार कैसे आ गई, यह रहस्य ही है। लेकिन सुनने में जो भी आता है, वह बहुत खेदजनक है जो कि रक्षाबंधन की पवित्रता से बिल्कुल भी मेल नहीं खाता।
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 19- 01 -20 12 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएं...नयी पुरानी हलचल में आज... जिंदगी ऐसे भी जी ही जाती है .
अच्छा लगा पढ़ कर...
जवाब देंहटाएंभावनाएं politicions,actors सभी में होती है....रिश्तों का गुणा-भाग है ये..
बढ़िया लेखन.
बहुत अच्छी तरह से लिखा है आपने ....
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