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29 जनवरी 2012

जब खुद पर पढ़ी तो श्रीमती जी इन्ना लिल्लाहे माँ अस्साबेरिन का फार्मूला भूल गयीं

दोस्तों सभी लोग ...दूसरों को दुःख की घड़ी में तसल्ली के लियें शिक्षा देते है॥ कहते है के सब्र करो ...लेकिन खुद पर पढने पर खुद ही भूल गये ....इन्ना ल्लिल्लाह माँ अस्साबेरिन का फार्मूला ....जी हाँ दोस्तों यह सच्चाई कल मुझे मेरे खुद के घर में देखने को मिली ....हमारी श्रीमती जी को किसी विवाह समारोह में टोंक जाना था उन्होंने कहा के में सामान जमा लुंगी तब फोन कर दूंगी हमे बस स्टेंड तक छोड़ देना ....अदालत में अचानक हमारी श्रीमती जी का फोन आया में समझा शायद तय्यार हो गयी है ..बुलावा आया है फोन उठाया तो रोने और चीखने की आवाज़ आने लगी ... मेने पूंछा क्या हुआ तो बस इतना कह कर फोन काट दिया के मेरे सोने के कड़े गुम गए.. तुम जल्दी आ जाओ ....... में घर पहुंचा तो सामान बिखरा पढ़ा था ..सोने के चार कड़े जो करीब छह तोला के थे.... दो साल पहले ही श्रीमती जी ने अपनी पसंद से बनवाये थे ..कल जब टोंक जाने के लियें जेवर सम्भाला... और जाने की तय्यारी में जुटीं ....तो सारा जेवर तो सुरक्षित था ..लेकिन सोने के कड़े गायब थे ....खूब ढूंढें मेने भी ढूंढें लेकिन नतीजा सिफर रहा ....इधर श्रीमती जी का रोना धोना और उधर कड़ों की तलाश हमारी अम्मी वगेरा सबने समझाने की कोशिश की लेकिन बेकार ..में देखता था के हर संकट की घड़ी में हमारी यही रोने धोने वाली श्रीमती जी दूसरों को सब्र करो अल्लाह सब ठीक करेगा इन्ना लिल्लाह ऐ माँ अस्साबेरिन पढो का सबक सिखाती थी लेकिन खुद पर पढ़ी तो खुद इस अल्लाह के हम को मानने को तय्यार नहीं सब्र ही नहीं आ रहा था ..खेर आज फिर कुछ रिश्तेदारों के सामने कड़ों का ज़िक्र आते ही हमारी श्रीमती जी की रुलाई फुट पढ़ी.... में अगर चुप करने की कोशिश भी करता तो सब बेकार रहता इसलियें में भी जोर से बोल कर यह पोस्ट लिखने लगा .यकीन मानिये इस पोस्ट को सुन कर पहले तो उन्होंने मजाक समझा... लेकिन जब देखा के में मजाक नहीं कर रहा... सच में ही लिख रहा हूँ.. पहले तो विनम्र निवेदन किया के प्लीज़... इस पोस्ट को लिख कर ब्लॉग या फेसबुक पर पोस्ट मत करना... लोग मेरा मजाक उड़ायेंगे.... लेकिन उनके रोते हुए चेहरे को देख कर में भी जिद पर अड़ गया के जब तुम्हे खुदा की कुदरत पर भरोसा नहीं ..अल्लाह बेहतर जानता है इस शिक्षा का ज्ञान नहीं ..सब्र और इन्ना लिल्लाह ऐ माँ अस्साबेरिन का फार्मूला समझ में नहीं ..आता ..इसलियें में तो तुम्हारी यह हरकत मेरे मित्रों तक पहुंचाऊंगा ..दोस्तों यकीन मानिये हमारी श्रीमती जी इन कड़ों के गुम जाने पर डेढ़ लाख का नुकसान गिनाते गिनाते नहीं थक रही थीं.... के अचानक आँखों के सूखे आंसू पोंछ कर दृडता से बोली.... के चलो जो होना था...सो .. हो गया अल्लाह और देगा... इंशा अल्लाह ....अल्लाह और देगा.... बस कड़े गुमने का गम... जब श्रीमती जी के चेहरे से जब गायब हुआ... और उनके दिलो दिमाग को खुदा ने सब्र दिया.... तब मुझे भी सुकून मिला और सोचने लगा के सच कुदरत का भी इन्ना लिल्लाहे माँ अस्सबेरिन का अजब कामयाब फार्मूला है.... और अल्लाह इसी तरह सभी पीड़ित परेशां लोगों को भी सब्र दे ... आमीन ...अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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