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26 जनवरी 2012

कैसे बना, सहेजा गया और किन इम्तिहानों से गुजरा हमारा गणतंत्र



हम, भारत के लोग.....
26 जनवरी 1950 को संविधान लागू होने से हम बने गणतंत्र। जिन्होंने संविधान बनाया, उनकी सोच स्पष्ट थी- देश यानी हम, भारत के लोग इसके जरिए आगे बढ़ें। इसके लिए संविधान में संशोधन भी किए गए। कई बार परीक्षा की घड़ी से गुजरे और जरूरत पड़ने पर सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसलों से इसे सहेजा.. और आज पूरे 62 बरस का हो गया हमारा गणतंत्र। यह हमारे विकास के लिए है और इसके सच्चे प्रहरी भी हैं हम, भारत के लोग..।

जिन्होंने बनाया गणतंत्र
जब संविधान बनाया तो क्या सोचते थे निर्माता

क्या बनाने वालों ने सोचा था, इतने संशोधन होंगे?

जी, हां। आंबेडकर और नेहरू ने तभी कहा था कि जैसे-जैसे समय बदलेगा उसके अनुरूप संविधान में भी बदलाव करने होंगे।

प्रस्तावना को महात्मा गांधी ने सपनों का भारत कहा
- ऐसा भारत जिसमें गरीब से गरीब व्यक्ति भी यह समझेगा कि यह उसका देश है जिसके निर्माण में उसका भी हाथ है। ..वह भारत जिसमें सभी समुदाय पूर्णरस, समरस होकर रहेंगे। ऐसे भारत में अस्पृश्यता के श्राप के लिए या मादक पेय और स्वापक द्रव्यों के लिए कोई स्थान नहीं होगा। स्त्री और पुरुष समान अधिकारों का उपभोग करेंगे। (प्रारूप पर बापू ने यह टिप्पणी 1947 में की थी)
संविधान प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. आंबेडकर ने कहा­
-संविधान सभा में जो चर्चाएं व वाद-विवाद होता है उससे मुझे यह विश्वास मिला है कि ड्राफ्टिंग कमेटी ने जो संविधान बनाया है वह देश की नई शुरुआत के लिए बहुत बेहतर है। यह काम करेगा, यह कठोर है तथा लचीला भी। यह संविधान देश को युद्ध और शांति दोनों वक्त संभाल सकता है।
जवाहरलाल नेहरू ने कहा, संविधान स्थायी नहीं होते
- संविधान स्थायी नहीं होते। इसमें थोड़ा लचीलापन होना चाहिए। यदि इसे कठोर और स्थायी बनाएंगे तो आप राष्ट्र का विकास अवरुद्ध कर देंगे। हम इसे इतना कठोर नहीं बना सकते कि परिवर्तित दशाओं में उसे अनुकूलित न किया जा सके। हम तीव्र गति से होने वाले संक्रमण का अनुभव कर रहे हैं, तो हम जो आज कर रहे हैं वह कल के लिए अनुपयुक्त हो सकता है।
जिन्होंने बढ़ाया गणतंत्र
कमियों को दूर करने और हमारे विकास के लिए किए गए 96 संशोधन, जिनसे समृद्ध हुआ गणतंत्र
क्या बापू की कोई बात भूल गए?
जी, हां। ग्राम स्वराज की बात संविधान में शामिल नहीं थी। महात्मा गांधी ने 1947 में एक जगह लिखा भी, ‘संविधान कैसे कुछ अच्छा कर पाएगा, यदि गांवों को उचित स्थान न मिले? ग्राम पंचायतों की दिशा और विकेंद्रीकरण का जिक्र इसमें नहीं है।’ ...तो 46 साल बाद कैसे याद आया ग्राम स्वराज?
नहीं। याद तो तब भी नहीं आया। राजीव गांधी ने कहा, एक रुपए में से सिर्फ 10 पैसे ही गांव तक पहुंच पाते हैं। यह एक मुहावरा बन गया और बहस शुरू हो गई। आखिर सरकार ने 1993 में 73वां संशोधन किया। पंचायतों को राज दिया और गांवों को सीधे पैसा।
क्या संसद बदल सकती है पूरा संविधान?
जी, नहीं। भले ही संसद को संशोधन का हक है लेकिन संविधान के मूल ढांचे में छेड़छाड़ नहीं की जा सकती। 1973 में सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में इसे स्पष्ट भी किया है। ...तो क्या फिर कभी संविधान को बदलने की कवायद हुई?
जी, हां। पूरी तरह तो नहीं, लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी ने समीक्षा आयोग बनाया था। उन्होंने कहा, ‘समय आ गया है जब हम संविधान को ‘दूसरे’ नजरिए से देखें।’ आयोग ने 58 संविधान संशोधनों सहित 249 सिफारिशें की थीं। पर कुछ नहीं हुआ।
क्या मतदान की आयु घटाने से कोई प्रभाव पड़ा?
जी, हां। इससे युवा मतदाताओं की संख्या बढ़ गई। राजीव गांधी युवाओं में काफी लोकप्रिय थे। उन्होंने 61वें संशोधन के जरिए मतदान की आयु 21 से घटाकर 18 वर्ष कर दी। उन्होंने इसकी वजह दुनिया के कई देशों में 18 वर्ष की आयु में मतदान का अधिकार होना बताया। १९८६ में 41 करोड़ मतदाता थे। जो 1989 में बढ़कर 49 करोड़ हो गए। 2011 में 3.83 करोड़ नए मतदाता जुड़े।
जिन्होंने सहेजा गणतंत्र
संविधान को कोर्ट की इन व्याख्याओं ने सहेजा.... क्या आरक्षण देने की कोई सीमा है?
जी, हां। सीमा तो है। केंद्र सरकार नौकरियों और शिक्षण संस्थाओं में 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण नहीं दे सकती। हालांकि तमिलनाडु के लिए यह दायरा बढ़ाया गया है। दरअसल, 1951 में सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में कहा था कि आरक्षण से भेदभाव पर रोक का उल्लंघन होता है। नेहरू सरकार ने संशोधन किया कि किसी तबके की बेहतरी के लिए विशेष प्रावधान किया जा सकता है। संविधान ने दस साल तक आरक्षण की बात की थी। लेकिन यह आज भी जारी है।
क्या केंद्र किसी राज्य सरकार को बर्खास्त कर सकता है?
सशर्त है। केंद्र सरकार को संविधान के अनुच्छेद-356 में यह अधिकार सशर्त दिया गया है। 1977 में जनता पार्टी सरकार ने जल्दी चुनाव कराने के लिए राज्य सरकारों को बर्खास्त किया था। कोर्ट ने राष्ट्रपति के फैसले की समीक्षा से इनकार किया था। 1994 में बोम्मई मामले में कोर्ट ने कहा कि बदनीयत से या अप्रासंगिक आधार पर राज्य सरकार को बर्खास्त नहीं किया जा सकता। राष्ट्रपति का फैसला भी समीक्षा के दायरे में आया। क्या बिना पक्ष सुने गिरफ्तारी अवैध है?
जी, हां। 1978 में सुप्रीम कोर्ट ने अमेरिकी अवधारणा को आधार बनाकर कहा था, किसी की स्वतंत्रता छीनने के लिए प्रक्रिया ‘निष्पक्ष और उचित’ होना जरूरी है।

क्या प्रस्तावना में ‘समाजवाद’ जोड़ना सही था?
जी, हां। सुप्रीम कोर्ट ने इसके विरोध को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि हमारा समाजवाद कम्युनिस्ट नहीं बल्कि आर्थिक व सामाजिक समानता से जुड़ा है। दरअसल, इंदिरा गांधी ने गरीबी हटाओ का नारा दिया। इसे 42वें संशोधन के तहत प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ के जरिए जोड़ा गया। हालांकि कोर्ट में इसे चुनौती दी गई, जिसे मान्य नहीं किया गया।
क्या संविधान से पहले भी था कोई ‘संविधान’?
प्रस्तावना में कहां से लिया ‘वी, द पीपुल’?
अमेरिकी संविधान की प्रस्तावना की शुरुआत ‘वी, द पीपुल ऑफ अमेरिका’ से हुई है। इसी आधार पर प्रस्तावना की शुरुआत ‘हम, भारत के लोग’ से होती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रस्तावना संविधान का अंग है। संसद उसमें संशोधन कर सकती है। 1858 में ब्रिटिश सम्राट ने कंपनी शासन को खत्म कर दिया। ब्रिटिश संसद ने भारत में शासन चलाने के लिए पहला कानून भारत शासन अधिनियम बनाया। इसमें सभी अधिकार ब्रिटिश क्राउन को ही दिए गए।
इस कानून में भारत की जनता के हक की कोई बात नहीं थी।
कितना पैसा और समय लगा संविधान बनाने में?
6.4 करोड़ रुपए खर्च हुए संविधान बनाने के लिए सभा के सभी 12 अधिवेशनों पर। 165 दिन कार्यवाही चली। 114 दिन बहस हुई। आज संसद की एक घंटे की कार्यवाही पर 25 लाख रुपए खर्च होते हैं। क्या महिलाएं तब भी निर्णयों में शामिल थीं?
389 सदस्य थे संविधान सभा में। इनमें से 12 महिलाएं थीं। देश विभाजन के बाद सदस्य घटकर 299 रह गए थे। सभा में 3.08 प्रतिशत महिलाएं थी। आज लोकसभा में 11.23 प्रतिशत महिलाएं हैं।
जिन परीक्षाओं से गुजरा गणतंत्र

मुश्किल दौर में और आया निखार जनता सर्वोच्च तो कानून क्यों नहीं बना सकती? जनता सर्वोच्च है, लेकिन संविधान के मुताबिक कानून चुने हुए जनप्रतिनिधि ही बना सकते हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ पिछले साल जनआंदोलन में यह साबित हुआ। जनलोकपाल लागू करने के लिए लाखों जुटे। सरकार को झुकना पड़ा। जनता के नुमाइंदे कानून बनाने की प्रक्रिया में शामिल भी हुए।
आज इस मामले में जनता अब भी आंदोलन कर रही है। संसद का तर्क रहा कि संविधान के मुताबिक जनता सीधे कानून नहीं बना सकती।
बड़ा कौन, सुप्रीम कोर्ट या संसद?
संसद बड़ी है। शाहबानो प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के लिए संसद ने नया कानून बनाया। शाहबानो को पति से गुजारा भत्ता लेने का हक देते हुए कोर्ट ने कहा कि कानून सबके लिए एक है। राजीव गांधी सरकार ने कानून पास किया।
आज इसी कानून की वजह से मुस्लिम महिलाएं पति से गुजारा नहीं ले सकतीं। यूनिफार्म सिविल कोड आज भी बहस का विषय है।
मौलिक अधिकार बड़े या सरकार?
संविधान कहता है मौलिक अधिकार। इंदिरा गांधी ने आपातकाल के समय संविधान में मिले मौलिक अधिकारों को दबाया था। 42वें संशोधन के जरिए मौलिक अधिकारों पर नीति निर्देशक तत्वों को वरीयता दी गई। दस दायित्व भी जोड़े गए।
अब मौलिक अधिकारों को कोई दबा नहीं सकता। मंत्रिमंडल की लिखित सहमति के बिना राष्ट्रपति आपातकाल घोषित नहीं कर सकेंगे।

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