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20 जनवरी 2012

ऐसी अद्भुत महिमा है शुक्र प्रदोष व्रत की

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धर्म ग्रंथों के अनुसार प्रदोष व्रत करने से भगवान शंकर अति प्रसन्न करते हैं तथा भक्त की हर मनोकामना पूरी करते हैं। 20 जनवरी, शुक्रवार को शुक्र प्रदोष व्रत है। इस व्रत की कथा इस प्रकार है-

एक नगर में तीन मित्र रहते थे- एक राजकुमार, दूसरा ब्राह्मण और तीसरा वैश्य। राजकुमार व ब्राह्मण का विवाह हो चुका था। धनिक पुत्र का भी विवाह हो गया था, किन्तु गौना शेष था। एक दिन तीनों मित्र स्त्रियों की चर्चा कर रहे थे। अपने मित्रों की बात सुनकर धनिक पुत्र ने भी अपनी पत्नी को लाने का निश्चय किया। माता-पिता ने उसे समझाया कि अभी शुक्रदेवता डूबे हुए हैं। ऐसे में बहू को लाना शुभ नहीं। किन्तु धनिक पुत्र नहीं माना और ससुराल जा पहुंचा। दामाद का हठ देखकर ससुराल वालों ने भी कन्या की विदाई कर दी।

पति-पत्नी नगर से बाहर निकले ही थे कि उनकी बैलगाड़ी का पहिया अलग हो गया। दोनों को काफी चोटें आईं फिर भी वे आगे बढ़ते रहे। कुछ दूर आगे जाने पर उन्हें डाकुओं ने लूट लिया। दोनों जैसे-तैसे घर पहुंचे। वहां धनिक पुत्र को सांप ने डस लिया। उसके पिता ने वैद्य को बुलवाया। वैद्य ने निरीक्षण के बाद घोषणा की कि यह तीन दिन में मर जाएगा। जब ब्राह्मण कुमार को यह समाचार मिला तो वह आया।

उसने धनिक पुत्र के माता-पिता को शुक्रप्रदोष व्रत करने को कहा। और कहा कि इसे पत्नी सहित वापस ससुराल भेज दें। यह सारी बाधाएं इसलिए आई हैं क्योंकि आपका पुत्र शुक्रास्त में पत्नी को विदा करा लाया है। यदि यह वहां पहुंच जाएगा तो बच जाएगा। धनिक को ब्राह्मण कुमार की बात ठीक लगी। उसने वैसा ही किया। ससुराल पहुंचते ही धनिक कुमार की हालत ठीक होती चली गई और शुक्र प्रदोष के प्रभाव से सभी कष्ट टल गए।

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