लोग मांओं, बीवियों और प्रेमिकाओं से मोहब्बत करते हैं, तो फिर बेटियां क़त्ल कर दी जाती हैं? डायरी की आख़िरी लाइन पढ़ते हुए दिल का जो आलम हुआ वह बयान से बाहर है। औरतों की आज़ादी और उनके हक़ों के लिए आज साइंस ने बहुत काम किया है, लेकिन अल्ट्रासाउंड तकनीक को पैदाइश से पहले ही लड़कियों से निजात पाने के लिए जिस तरह इस्तेमाल किया जा रहा है, वह नाक़ाबिले-यक़ीन है।
इस लुहा मुझे उर्दू की मशहूर शायरा ज़ोहरा निगाह की एक नज़्म याद आई। इसे आप भी पढ़िए : ‘तेरे कच्चे ख़ून की मेहंदी/ मेरी पोर-पोर में रच गई मां/ गर मेरे ऩश भर आते/ वो फिर भी लहू से भर जाते/ मेरा क़द जो थोड़ा-सा बढ़ जाता/ मेरे बाप का क़द छोटा पड़ जाता/ मेरी चुन्नी सिर से ढलक जाती/ मेरे भाई की पगड़ी गिर जाती..।’ ज़ोहरा निगाह मुशायरोमें शिरकत के लिए अक्सर हिंदुस्तान जाती हैं। हो सकता है आपने कभी उनकी ज़बान से भी यह नज़्म सुनी हो जो भ्रूण हत्या की कहानी सुनाती है।
पैदाइश से पहले और पैदाइश के बाद बेटियों के क़त्ल के बारे में एक रिपोर्ट हमें बताती है कि एशिया में छह करोड़ औरतें कम हो गई हैं। ये वो बच्चियां थीं जो अपने लिंग की वजह से पैदा होते ही क़त्ल कर दी गईं या अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट से इनके जेंडर के बारे में मालूमात करके पैदाइश से पहले ही इनसे निजात हासिल कर ली गई। एक दूसरी रिपोर्ट का कहना है कि सारी दुनिया में यह तादाद 10 करोड़ से ज्यादा पहुंच चुकी है। पिछले वर्षो में जो आंकड़े इकट्ठा किए गए, उनके मुताबिक़ चीन में 3.05 करोड़ , हिंदुस्तान में 2.28 करोड़ , पाकिस्तान में 31 लाख , बांग्लादेश में 16 लाख, पश्चिम एशिया में 17 लाख, मिस्र में 6 लाख और नेपाल में 2 लाख बच्चियां गायब हैं। पाकिस्तान और बांग्लादेश में नवजात बच्चियों के क़त्ल के बारे में एक रिसर्च रिपोर्ट आई, जो इस कड़वे सच के बारे में बहुत कुछ बताती है।
बात आज के दौर में भ्रूण की जांच के लिए इस्तेमाल अल्ट्रासाउंड की नई टेक्नोलॉजी से शुरू हुई थी। यह मालूम होने के बाद कि बेटी होने वाली है, कई मां-बाप पैदाइश से पहले ही उससे निजात हासिल कर लेते हैं। यह ऐसा तरीक़ा है, जिसमें ज़मीर पर बोझ नहीं होता। दिल को इत्मीनान दिलाया जाता है कि हम अपने माली हालात के सबब या बेटियों को नापसंद करने की ख़ानदानी परंपरा के सम्मान के नाम पर ऐसा कर रहे हैं और इंसानी जान को मारने का गुनाह भी नहीं कर रहे हैं।
यह काम अमेरिका-ब्रिटेन में भी हो रहा है, लेकिन हिंदुस्तान और पाकिस्तान में पैदाइश से पहले ही बेटियों को मौत की नींद सुला देने का यह नया ज़ालिमाना तरीक़ा तेज़ी से फैला है। पाकिस्तान में इस हवाले से सिर्फ़ ज़ोहरा निगाह की नज़्म मेरी नज़र से गुज़री। लेकिन आपके यहां यानी हिंदुस्तान में इस दर्दनाक विषय पर औरतों-मर्दो ने सैकड़ों लिखी हैं।अंशुमाला मिश्रा की एक कविता : ‘मैं हूं एक लड़की/ मैं भी इक इंसान/ मुझे जीने का अधिकार दो/ मुझे बेटे की तरह ह्रश्वयार दो/ मुझे पढ़ने का अधिकार दो/ जिस देवी-दुर्गालक्ष्मी को पूजते हो/ उसका करते हो अपमान/ लड़की को लक्ष्मी कहते हो/ तो फिर क्यों लक्ष्मी को बोझ समझते हो?’ यह कविता पाकिस्तान की कई पत्रिकाओं में छपी और पसंद की गई। इसी तरह हमारे अलीगढ़ में पैदा होने वाली ज़ोया ज़ैदी का भी नाम लिया जाता है। उन्होंने मॉस्को से एमबीबीएस किया और अब अलीगढ़ में ही प्रै िटस करती हैं। हमारे मुल्कों में अल्ट्रासाउंड से लिंग मालूम करने के बाद बेटियां जिस तरह क़त्ल की जा रही हैं, उसने ज़ोया पर गहरे असरात छोड़े। नवजात बच्चियों के क़त्ल का दर्द उनकी शायरी में बार-बार झलकता है। अपने एक लेख में वो उत्तरी भारत के एक बहुत पुराने लोकगीत का हवाला देती हैं : ‘प्रभुजी मैं तोसे बिनती करूं.. पैयां पड़ूं बार-बार.. अगले जनम मोहे बेटिया न दीजो.. नरक दीजो चाहे डार..।’ इस लोकगीत के बोल पढ़ते हुए एक और लोकगीत याद आता है : ‘जो अब किए हो दान ऐसा न कीजो.. अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो..।’ हमारे यहां पैदाइश के बाद नवजात बच्चियों के क़त्ल में इज़ाफ़ा हुआ है। एक पाकिस्तानी ग़ैर-सरकारी तंज़ीम के मुताबिक़ 2009 में 1000 नवजात बच्चियां मार दी गईं या वीराने में मरने के लिए छोड़ दी गईं।
sach mere aakho may aasu aa gaye hai,yah padh kar
जवाब देंहटाएंmay keya likhu nahi samjh pa rahe hu
ensaniyth nahi raha
bhai sa aap ka leakh samaj ki vastvikta ko darshata he khuda aaap ke vicharo ko samraddh banaye shubhkamnaye
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