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31 जनवरी 2012

पहले यह बताओ, यह खून हिंदू का है या मुसलमान का.....कोटा के जाकिर रिज़वी चलते फिरते ब्लड बेंक ज्निहोने बचाई है सभी जाती के लोगों की जिंदगियां

कोटा के जाकिर रिज़वी चलते फिरते ब्लड बेंक ने दी लोगों को नई दिशा ..........जी हाँ दोस्तों यह सच है के खून का कोई धर्म कोई जाती कोई समाज नहीं होता खून तो लाल होता है और लाल रंग से यमदूत भी आकर ठिठक कर रुक जाते है यानि थमती हुई साँसों को यही खून वापस से जिला देता है .......दोस्तों कोटा में हमारे जाकिर रिज़वी इसी तरह से चलता फिरता ब्लड बेंक है अल्फ्लाह सोसाइटी से जुड़े जनाब जाकिर रिज़वी ठेलिसिमिया रोगियों के लियें भगवान तो नहीं लेकिन जिंदगी के फ़रिश्ते साबित हुए है दिन हो या रात सुबह हो या शाम जिस किसी को भी खून की जरूरत हो तो जाकिर रिज़वी कोटा वालों की पुकार लगती है और उनकी सेवा को देखते हुए राजस्थान सरकार ने उन्हें लोगों की जिंदगियां बचाने के लियें अस्पताल में ही संविदा पर ठेलेसेमिया के बच्चों की देख रेख के लियें रखा है .....जाकिर रिज़वी अपने इस अनूठे जीवन दान कार्यक्रम के लियें कई बार जिला प्रशासन और कई संस्थाओं से सम्मानित हो चुके है ......इसी तरह कोटा प्रेस क्लब के अध्यक्ष धीरज गुप्ता है जो कहीं भी आवाज़ पढ़े खून देने पहुंच जाते है ..जनकी कोटा प्रेस क्लब के प्रशांत सक्सेना भी सेकड़ों बार खून देकर लोगों की जिंदगियां बचा चुके है दोस्तों खून का यह खेल खून का यह गोरख धंधा खून का यह फलसफा ..एक ही संदेश संदेश देता है के खून तो सिर्फ खून होता है इसमें कोई मुसलमान नहीं होता जाती ..धर्म कोई भी हो लेकिन खून का रंग तो सिर्फ लाल होता है यह बह जाए तो म़ोत होती है और इसे बचा कर किसी मरते हुए को दे दिया जाए तो जिंदगी होती है इसीलियें कहते है के खून के रिश्ते से ज्यादा मानवता का रिश्ता होता है और यही रिश्ता भाई जाकिर रिज़वी कोटा में निभा रहे है उन्हें अल्फ्लाह के भाई रफ़ीक बेलियम और सभी साथी हर मोके पर इस काम में सराहते रहते है ................ इसलियें कहते है खून दो दुआएं लो मरते हुए लोगों को बचाओ और फरिश्ते कहलाओ इन्दोर में भी कुछ ऐसा ही नजारा है जनाब .....................रगों में दौड़ने वाले खून का रंग भले ही लाल हो लेकिन सोच अभी भी काली है। तभी तो मौत से जूझते इंसान को जीवन देने वाले रक्त पर आज भी यह सवाल किया जा रहा है कि यह खून हिंदू का है या मुसलमान का। कई परिजन समाज विशेष में अधिक पाई जाने वाली थैलेसीमिया से बचाव के बारे में भी पूछताछ करते हैं। इस सोच को खत्म करने के साथ ही एमवाय अस्पताल के ब्लड बैंक में बार कोडिंग व्यवस्था लागू की जाएगी। संभवत: यह प्रदेश का पहला ब्लड बैंक होगा, जहां यह व्यवस्था लागू होगी।

फिलहाल यहां रक्त लेते वक्त रक्तदाता का नाम लिखा जाता है और नंबरिंग कर दी जाती है। इसके बावजूद व्यवस्था उतनी पुख्ता नहीं है। इसे व्यवस्थित करने के लिए ब्लड बैंक डायरेक्टर ने अधीक्षक को पत्र लिखा है। हालांकि अभी प्रोजेक्ट प्राथमिक स्तर पर है। इस सॉफ्टवेयर को लागू करने के लिए आईआईटी के शोधार्थियों या किसी भी प्रोफेशनल कॉलेज के एमसीए विद्यार्थियों की मदद लेने पर विचार किया जा रहा है। उधर, चोइथराम अस्पताल एंड रिसर्च सेंटर में भी ब्लड बैग या बोतल पर बारकोडिंग की तैयारी की जा रही है।

अभी ऐसे होता है काम
- रक्तदाता का नाम के आगे नंबरिंग कर दी जाती है।
- जितनी बार जांच, उतनी जगह नंबरिंग और रक्तदाता के नाम के साथ सारा विवरण लिखना पड़ता है।
- रजिस्टर मैन्युअली ऑपरेट होता है।

बार कोडिंग में यह होगी व्यवस्था :
- रक्तदाता के नाम व विवरण के साथ ही बार कोड नंबर डाल दिया जाएगा।
- बार कोड रीडर के बगैर मरीज का डिटेल कोई नहीं पढ़ सकता।
- कम्प्यूटराइज्ड होने से रिकॉर्ड रखना आसान होगा और मानवीय भूल की संभावना नगण्य होगी।

पूछते हैं पर हम बताते नहीं
बार कोडिंग पर विचार किया जा रहा है। परिजन को यह कभी खुलासा नहीं किया जाता कि मरीज को किसका ब्लड दिया गया है। मरीज को वही ब्लड दिया जाता है जिसकी उसे मेडिकली जरूरत है।ञ्जञ्ज -डॉ. वीरसिंह भाटिया, अधीक्षक, एमवाय अस्पताल

परिजन दबाव डालते हैं
कई बार परिजन दबाव डालते हैं कि हमने जो ब्लड दिया है, वही चढ़ाया जाए। तब उन्हें समझाना पड़ता है कि हम जो ब्लड मरीजों को दे रहे हैं वह सुरक्षित है। हम भी बार कोडिंग की तैयारी कर रहे हैं।
डॉ. डी.एस. चिटनीस, विभागाध्यक्ष, पैथोलॉजी डिपार्टमेंट, चोइथराम अस्पताल

बार कोडिंग से लगेगी रोक
कई बार खून चढ़ाने से पहले परिजन जानना चाहते हैं कि यह खून किस धर्म या जाति के व्यक्तिने दिया है। बार कोडिंग से इस तरह की सोच पर रोक लगेगी। - डॉ. अशोक यादव, डायरेक्टर, ब्लड बैंक, एमवाय अस्पताल

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