रणथंभौर के बाघों और मृगछौनों सहित अन्य तरह के वन्यजीवों की फोटोग्राफी उनका पहला शौक है, जो उन्हें 13 साल की उम्र में लगा था। तब वे पहली बार अपने पिता राजीव गांधी के साथ रणथंभौर आई थीं और अपने बच्चों के लिए शिकार करती एक बाघिन का ब्लैक एंड व्हाइट फोटो लिया था।
प्रियंका गांधी के कैमरे से लिए गए फोटो पर आधारित एक मेगासाइज कॉफी टेबल बुक कुछ समय पहले प्रकाशित हुई है। इसकी कीमत 4800 रु. है। यह पुस्तक हाल ही जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में प्रदर्शित की गई थी।
‘रणथंभौर : दॅ टाइगर्स रीम’ शीर्षक से प्रकाशित यह पुस्तक कॉफी टेबल बुक से काफी हटकर है। इसमें होटेलियर और वन्यजीव तथा प्रियंका गांधी के मित्र जैसलसिंह और अंजलीसिंह का भी सहयोग है। यह पुस्तक इन तीनों के नाम से छपी है।
इसका डिजाइन खुद प्रियंका गांधी ने तैयार किया है। सुजॅन आर्ट से प्रकाशित और राजीव गांधी को समर्पित इस पुस्तक में रणथंभौर के खूबसूरत फोटो हैं, जिनमें बाघों की विभिन्न मुद्राओं को दर्शाया गया है। एक फोटो में मोटर साइकिल पर आ रहा परिवार बाघ को देखकर जान बचाने की कोशिश करता हुआ दिखाई दे रहा है। यह परिवार मोटर साइकिल सड़क पर ही छोड़ भागता है।
एस. अहमद और श्रीमत पांडे का भी जताया है आभार
प्रियंका के रणथंभौर दौरे का असर ब्यूरोक्रेसी पर भी साफ दिखता है। प्रियंका, जैसलसिंह और अंजली की ओर से पुस्तक में मुख्य सचिव एस. अहमद, मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव श्रीमत पांडे, उद्योग विभाग के प्रमुख सचिव सुनील अरोड़ा, सवाई माधोपुर कलेक्टर गिरिराजसिंह और एसपी अंशुमान भौमिया का विशेष आभार जताया गया है।
1 फोटो, 45 डिग्री पारा, 4 घंटे
रणथंभौर में बाघों के एक विशेष सीन के लिए प्रियंका गांधी एक दिन 45 डिग्री सेल्सियस तापमान में चार घंटे लगातार तपीं और जब बाघ आए तो वे तीन घंटे उन्हें निहारती रहीं। वे ‘माई फैमिली एंड अदर ऐनिमल्स’ पुस्तक में छपे एक लेख में कहती हैं, ‘मैं समझती हूं कि वन्य जीवों के प्रति प्रेम का यह उपहार मुझे मेरे पिता से ही मिला है। उन्होंने ही मुझे फोटो लेना सिखाया। ..और कैमरा मेरे लिए डायरी का ही काम करता है।’
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