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26 जनवरी 2012

हिटलर जैसी संतान के लिए लोग यहां आते हैं !

कश्मीर हम अपने पाठकों के लिए जम्मू-कश्मीर के इतिहास, विवाद, वहां के रीति रिवाज सब कुछ बताने का सीरिज चला रहे हैं। इसके तहत आज हम आपको शुद्ध आर्य रक्त का दुनिया का एक मात्र गांव का दावा करने वाले गांव की सैर कराते हैं ।

शुद्ध रक्त का आग्रह.. यह जिद भीषण नरसंहारों का कारण बनी है। दुनिया को तबाही के रास्ते पर ढकेलने वाले नाजी तानाशाह की भी यही जिद थी कि उसके देश में शुद्ध रक्त के लोग ही रहेंगे। इतिहास हिटलर को कभी भूल नहीं सकता। माफ भी नहीं कर सकता। ‘थर्ड रायख’ से लेकर विभाजित जर्मनी तक दशकों तक दुनिया ने इस तानाशाह की जिद को भोगा है। आखिर ये शुद्ध रक्त है क्या? लेह से लगभग 180 किमी दूर गारकुन गांव में जब मैं पहुंची तो मुझे बताया गया यह शुद्ध आर्य रक्त के लोगों का गांव है। क्षणभर में शुद्ध रक्त के दुराग्रहों का दुर्दात इतिहास मेरे जेहन में कौंध गया।


मेरे साथ बैठे विदेशी एजेंसी के फोटोग्राफर की नजर सिर पर फूल-पत्ते और आभूषण सजाए एक महिला पर पड़ी। उसने गाड़ी रोकी और उसका फोटो लेने लगा। लेकिन महिला ने मुंह फेर लिया। शर्म से नहीं, बल्कि जिद से। बोली, पहले पैसे दो..। मैंने 10 रुपए का नोट बढ़ाया। जैसे-तैसे तस्वीरें उतारीं। पास ही एक लड़का खड़ा था। बोला, आपको ऐसे और फोटोजेनिक चेहरे गांव में मिल सकते हैं। वह हमें झाड़ियों के बीच में से एक पगडंडी से होते हुए गांव के भीतर ले गया। चारों ओर सेब, कच्चे अखरोट और खूबानी से लदे दरख्त। पत्थर-गारे से बने दोमंजिला मकान। ताषी नामगियाल का घर यहीं था। कारगिल युद्ध में घुसपैठ की जानकारी उन्हीं ने दी थी। उस दिन ताषी के घर जलसा था। पूरा गांव उन्हीं के घर इकट्ठा हुआ था। एक कमरे में गांव के बुजुर्ग जमा थे और छंब (स्थानीय शराब) का लुत्फ ले रहे थे।


ताषी ने तफसील से बताया कि गारकुन, दारचिक, हनू और डाह, ये चार ऐसे गांव हैं, जहां बसने वाले लोग स्वयं को आर्यो का वंशज मानते हैं। गांव में जाने के लिए बाहरी लोगों को बाकायदा प्रशासन से अनुमति लेनी पड़ती है। परंपरागत और रूढ़िवादी होने के बावजूद इन गांवों के रहवासी कुछ मायनों में खुले विचारों के भी हैं। प्रेम विवाह होते हैं, लेकिन सिर्फ अपनी नस्ल के लोगों से। ये गांव विदेशी पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र हैं। कहते हैं कुछ साल पहले जर्मन महिलाएं आर्य नस्ल की संतान की ख्वाहिश मन में लिए यहां आई थीं। शायद वे हिटलर जैसी ही कोई संतान जनना चाहती थीं। हालांकि ये लोग अपनी ही नस्ल में वैवाहिक संबंध स्थापित करते हैं। माना जाता है कि दूसरी नस्ल में विवाह संबंध इनके लिए हानिकारक हो सकते हैं। यहां आने वाले विदेशियों में पर्यटक ही नहीं, शोधार्थी भी शामिल हैं। आर्यो के बारे में अनेक शोधें हुई हैं। बहुत सिद्धांत गढ़े गए हैं। दयानंद सरस्वती और लोकमान्य तिलक ने भी आर्यो के बारे में लिखा है।


लेकिन मैं गारकुन को भुला नहीं पाती। दिमाग अब भी शुद्ध रक्त के मिथक में उलझा हुआ है। अनगिनत युद्धों और विप्लवों को जन्म दिया है इस शुद्धतावादी आग्रह ने। आखिर क्या होता है शुद्ध रक्त? कुछ मानवविज्ञानियों और इतिहासकारों का मानना है कि मध्य एशिया में गौरवर्ण, अच्छे-खासे कद, उन्नत भाल और लंबी नाक वाली ऐसी कौम हुई थी, जिसे अपनी जातिगत श्रेष्ठता पर अभिमान था। आर्य शब्द का अर्थ ही होता है श्रेष्ठ। ये आर्य भारत आकर सात नदियों के बीच स्थित प्रदेशों में बसे, जिसे आर्यावर्त कहा गया और आर्य संस्कृति भारतीय संस्कृति का पर्याय बन गई। मध्य एशिया से निकलकर इस नस्ल के लोग भारत के अलावा यूरोप की ओर कूच कर गए थे। हिटलर का मानना था कि आर्य नस्ल जर्मनी आई थी और उनका रक्त सबसे शुद्ध था। उसी हिटलर जैसी संतान की चाह लिए जर्मन महिलाएं आज भी यहां आना चाहती हैं, इतिहास के पन्नों पर दर्ज जिद के इतने भीषण परिणामों के बावजूद।

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