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13 जनवरी 2012

हनुमानजी से सीखें कम समय में कैसे प्राप्त करें मुश्किल लक्ष्य...


व्यवसायिक जीवन का सबसे बड़ा सच है कि हमें व्यवहारिक होना पड़ता है। व्यवसाय भावनाओं से नहीं किया जा सकता। हम काम-धंधे में जितने भावुक होंगे, सफलता उतनी ही देरी से मिलेगी। अक्सर लोगों के साथ होता यही है, वे जैसे ही अपनी मंजिल की ओर निकलते हैं, बाधाएं उन्हें रोकने लगती हैं। सबसे पहले अपनों की ही रोक-टोक से बाधाओं का सिलसिला शुरू होता है। अपने भले ही हमें हमारे हित के लिए ही रोकते हैं लेकिन अगर रुक गए एक बात हमेशा याद रखें कि सफलता किसी के लिए नहीं ठहरती।

जब भी हम किसी अभियान के लिए निकलते हैं तो सबसे पहले हमारे प्रिय लोग ही हमें देखकर प्रेमवश रोकते है, थोड़ा आराम करने की सलाह देते हैं। अक्सर लोग अपनों की बातों में ही आकर अपने अभियान में ढीले पड़ जाते हैं। फिर लक्ष्य नहीं पाया जा सकता क्योंकि वक्त तो गुजर ही रहा है। थोड़ा सा विश्राम भी मन में कई तरह के विचार ले आता है, व्यक्ति लक्ष्य से हट भी सकता है। कई लोग सिर्फ इसीलिए सफल नहीं हो पाते हैं क्योंकि वे अपने लक्ष्य के पहले ही थक कर आराम करने बैठ जाते हैं। एक बार आराम किया, तो शरीर और मन दोनों थोड़ी-थोड़ी दूरी पर आराम की मांग करने लगते हैं।

अभ्यास कीजिए, लगातार अपने लक्ष्य की ओर तेजी से बढऩे का। जब तक मंजिल ना मिल जाए, विश्राम ना करें। अपने स्वभाव में इस व्यवहारिक गुण को बैठा लें। हमें अपनों को इंकार करना भी आना चाहिए। कई बार सिर्फ लोगों की बात रखने के लिए ही हम अपने काम में थोड़ा ठहराव ले आते हैं। संभव है क्षणभर का यह ठहराव भी आपको भारी पड़ जाए।

हनुमान से सीखिए, कैसे लक्ष्य तक बिना रुके पहुंचा जाए। रामचरित मानस के सुंदरकांड में चलते हैं। जामवंत से प्रेरित हनुमान पूरे वेग से समुद्र लांघने के लिए चल पड़े हैं। समुद्र के दूसरे छोर पर बसी रावण की नगरी लंका में सीता की खोज करने के लिए हनुमान पूरी ताकत से जुट गए हैं। लक्ष्य बहुत मुश्किल है और समय भी कम। हनुमान तेजी से आकाश में उड़ रहे हैं। तभी समुद्र ने सोचा कि हनुमान बहुत लंबी यात्रा पर निकले हैं, थक गए होंगे, उसने अपने भीतर रह रहे मैनाक पर्वत को कहा कि तुम हनुमान को विश्राम दो।

मैनाक तुरंत उठा, उसने हनुमान से कहा कि हनुमान तुम थक गए होंगे, थोड़ी देर मुझ पर विश्राम कर लो, मुझ पर लगे पेड़ों से स्वादिष्ट फल खा लो। हनुमान ने मैनाक के निमंत्रण का मान रखते हुए सिर्फ उसे छूभर लिया। और कहा कि राम काज किन्हें बिना मोहि कहां विश्राम। रामजी का काम किए बगैर मैं विश्राम नहीं कर सकता। मैनाक का मान भी रह गया। हनुमान आगे चल दिए। रुके नहीं, लक्ष्य नहीं भूले।

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