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03 दिसंबर 2011

कब्रिस्तान में मुर्दों पर जजिया कर मामले में यूँ हुआ समझोता

जी हाँ दोस्तों इंसानों को जीते जी तो क्या मरने के बाद भी टेक्स देना पढ़ता है और वोह भी जबरिया टेक्स जिस मामले में वसूली करने वाले लोग हैं के मानने को ही तय्यार नहीं होते हैं। श्मशानों में तो मुर्दा टेक्स का ता नहीं लेकिन कब्रिस्तानों में तो प्रबन्धन और खुदाई के नाम पर मजदूरी और जजिया कर वसूली होती ही है । दोस्तों कोटा जिला वक्फ कमेटी में मुझे नायब सदर विधि सलाहकार बनाया गया है............. करोड़ों की वक्फ सम्पत्ति हमारे अपने इस्लाम के कथित अलमबरदारों के पास कोडियों के दाम पर किराए पर है और राजस्थान में वक्फ किराया कानून लागू हो जाने के बाद सभी किरायेदारों का नया किराया निर्धारण कर नोटिस दिया जाना जरूरी था बस नोटिस जाते ही इन कोम के अलमबरदार किरायेदारों के तोते कूच कर गये एक तरफ तो इस्लाम के नाम पर सब कुछ कुर्बान कर देने के जज्बे का प्रचार और दूसरी तरफ अल्लाह की राह में समर्पित वक्फ सम्पत्ति का कब्जा या कोडियों में किराया इस दोहरी व्यस्था के तहत ऐसे अलंबरदारों ने हर बार की तरह इस बार भी वक्फ कमेटी को ब्लेकमेल कर अपनी किरायेदारी मामले को नज़र अंदाज़ करने के मामले को लेकर कुछ लोगों के जरिये कब्रिस्तान में मुर्दों से जजिया कर का मामला उठाया एक अवेध किरायेदार जिसकी किरायेदारी ख़ारिज की गयी थी उसके नेतृत्व में करीब पचास लोग अवेध रूप से वक्फ कमेटी कोटा के कार्यालय में घुसे और कब्रिस्तान में कब्र खोदने के नाम पर लूट की बात करने लगे । इन लोगों का अंदाज़ गलत था तरीका बद्तमिजाना लेकिन बात वाजिब थी ॥ दफ्तर में वक्फ कमेटी सदर अज़ीज़ अंसारी सचिव आबिद हुसेन अब्बासी और में नायब सदर की हेसियत से मोजूद था हमने उनकी शिकायते लिखीं और सभी कब्रिस्तान में कब्र खोदने और प्रबन्धन कार्य में लगे लोगों को नोटिस जारी कर कोटा शहर काजी की मध्यस्थता से काजी साहब की उपस्थिति में समझोता वार्ता करने का निर्णय लिया ............. कल शनिवार की शाम सभी लोग जिनमे एक पक्ष वक्फ कमेटी कोटा की तरफ से में नायब सदर की हेसियत से । सचिव आबिद हुसेन अब्बासी । सदर अज़ीज़ अंसारी थे जबकि मध्यस्थ शहर काजी अनवार अहमद थे दूसरी तरफ से शाह अंजुमन के जमील भाई ॥ अज़ीज़ भाई..... उम्र भाई ॥ कल्लू भाई ..बाबु भाई सुलतान भाई वगेरा थे चर्चा शुरू हुई कब्रिस्तानों के बुरे हालातों और प्रबन्धन पर चर्चा हुई और फिर कब्र खोदने और दफनाने पर चर्चा शुरू हुई कब्रिस्तान में कब्र खोदने के प्रबंधकों का काम देखने वालों का कहना था ke कब्र खोदने में छ सो रूपये की मजदूरी लगती है और कातले सात सो रूपये के लगते हैं जबकि प्रबन्धन शुल्क हजार रूपये तो कमसे कम हम लेंगे ही । .खेर हमने कहा के प्र्न्धक शुल्क किया है तो उनका कहना था के यह तो हदिया है हम तो कुछ लेते ही नहीं हमने कहा के जब आप खिदमत कर रहे हो तो फिर शुल्क किस बात का उनका कहना था के इमाम भी तो खुद की नमाज़ पढने के साथ साथ जब नमाज़ पड़ता है तो उसे हदिया शुल्क दिया जाता है खेर आखिर में काफी हुज्जत के बाद तय किया के कब्र के सात सो रूपये और के हदिया चार सो रूपये मिल जायेंगे इस तरह से कुल ग्यारा सो रूपये होना थे इसके अलावा पत्थर एहले मय्यत को लाना होगा बैठक में यह भी तय हुआ के कोई पक्की कब्र नहीं बनाएगा .बैठक के दोरान शाह समाज की दिलचस्प दलीलें थी उनका कहना था के हम रात दिन कब्रिस्तान में रह कर खिदमद करते हैं कई बार कब्रों में से लोग नाराज़ होकर हमारे झान्पट मार देते हैं ॥ उनका कहना था आधी रात को भी म्य्यतें आती हैं हम बीवी के पहलु में सोते होते हैं हमे जगाया जाता है हमारा दिन और रात इस मामले में खराब रहता है कब्रिस्तान की जानवरों से हिफाजत और ओघाद बाबा स्मेक्चियों से हम ही हिफाजत करते हैं ...... अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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