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05 दिसंबर 2011

गीता जयंती आज: निष्काम कर्म करने की शिक्षा देता है यह ग्रंथ


मार्गशीर्ष (अगहन) मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को गीता जयंती का पर्व मनाया जाता है। धर्म शास्त्रों के अनुसार इसी तिथि पर भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का शिक्षा दी थी। इस बार गीता जयंती का पर्व 6 दिसंबर, मंगलवार को है।

जब महाभारत का युद्ध प्रारंभ होने वाला था। तब अर्जुन ने कौरवों के साथ भीष्म, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य आदि श्रेष्ठ महानुभावों को देखकर तथा उनके प्रति स्नेह होने पर युद्ध करने से इंकार कर दिया था। तब भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था जिसे सुन अर्जुन ने न सिर्फ महाभारत युद्ध में भाग लिया अपितु उसे निर्णायक स्थिति तक पहुंचाया।

गीता को आज भी हिंदू धर्म में बड़ा ही पवित्र ग्रंथ माना जाता है। गीता के माध्यम से ही श्रीकृष्ण ने संसार को धर्मानुसार कर्म करने की प्रेरणा दी। वास्तव में यह उपदेश भगवान श्रीकृष्ण कलयुग के मापदंड को ध्यान में रखते हुए ही दिया है। कुछ लोग गीता को वैराग्य का ग्रंथ समझते हैं जबकि गीता के उपदेश में जिस वैराग्य का वर्णन किया गया है वह एक कर्मयोगी का है। कर्म भी ऐसा हो जिसमें फल की इच्छा न हो अर्थात निष्काम कर्म।

गीता में यह कहा गया है कि निष्काम काम से अपने धर्म का पालन करना ही निष्कामयोग है। इसका सीधा का अर्थ है कि आप जो भी कार्य करें, पूरी तरह मन लगाकर तन्मयता से करें। फल की इच्छा न करें। अगर फल की अभिलाषा से कोई कार्य करेंगे तो वह सकाम कर्म कहलाएगा। गीता का उपदेश कर्मविहिन वैराग्य या निराशा से युक्त भक्ति में डूबना नहीं सीखाता वह तो सदैव निष्काम कर्म करने की प्रेरणा देता है।

1 टिप्पणी:

  1. गीता शास्त्रं इदं पुण्यं यः पठेत प्रयतः पुमान् |
    विष्णोः पदं अवाप्नोति भय शोकादि वर्जितः ||
    गीताध्यायनशीलस्य प्राणायामपरस्य च |
    नैव सन्ति हि पापानि पूर्व जन्म कृतानि च ||
    मलनिर्मोचनं पुंसां जलस्नानं दिने दिने |
    सकृद् गीतामृतं स्नानं संसार मल नाशनम् ||
    गीता सुगीता कर्तव्या किं अन्यैः शास्त्र विस्तरैः |
    या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्माद् विनिःसृता ||
    भारतामृतसर्वस्वं विष्णुवक्त्राद विनिःशृतं |
    गीतागङ्गोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते ||
    सर्वोपनिषदो गावो दोग्धा गोपालनन्दनः |
    पार्थो वत्सः सुधीर्भोक्ता दुग्धं गीतामृतं महत् ||
    एकं शास्त्रं देवकीपुत्रगीतं
    एको देवो देवकीपुत्र एव |
    एको मन्त्रस् तस्य नामानि यानि
    कर्माप्य एकं तस्य देवस्य सेवा ||

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