आपका-अख्तर खान

हमें चाहने वाले मित्र

30 दिसंबर 2011

अपने पिछले सफ़र

अपने पिछले सफ़र

अपने पिछले हमसफ़र कि कोई तो पहचान रख
कुछ नहीं तो मेज़ पर काँटों भरा गुलदान रख

तपते रेगिस्तान का लम्बा सफ़र कट जाएगा
अपनी आँखों में मगर छोटा-सा नाख्लिस्तान रख

दोस्ती, नेकी, शराफत, आदमियत और वफ़ा
अपनी छोटी नाव में इतना भी मत सामान रख

सरकशी पे आ गई हैं मेरी लहरें ए खुदा!
मैं समुन्दर हूँ मेरे सीने में भी चट्टान रख

घर के बाहर की फिजा का कुछ तो अंदाज़ा लगे
खोल कर सारे दरीचे और रौशनदान रख

नंगे पाँव घास पर चलने में भी इक लुत्फ़ है
ओस के कतरों से आलम खुद को मत अंजन रख

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...