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24 दिसंबर 2011

अचानक उठे खून के फब्बारे, चीख पुकार और फिर भगवान बन दौड़ पड़े वो!

जयपुर के जज्बे पर बच्चों ने कहा थेंक्यू

हड़ताली डॉक्टर घरों में सो रहे थे, लेकिन मेट्रोकर्मियों ने आधी रात को डॉक्टर की भूमिका निभाई और खून से लथपथ बच्चों को सवा घंटे में ही सलामत निकालकर असली हीरो का रोल अदा किया, उनकी जांबाजी को सलाम..

जयपुर.किसान धर्म कांटे के पास दिल्ली से टूर पर आए बच्चे शुक्रवार आधी रात के समय गाना गा रहे थे, अंत्याक्षरी में मशगूल थे। कुछ उनींदे थे कि बारह-बारह टन के पाइप बस को फाड़ कर अंदर घुस गए।

खून के फव्वारे छूट पड़े, चीखों के बीच पास ही काम कर रहे मेट्रो साइट के इंजीनियर बच्चों के लिए भगवान बनकर उभरे। हड़ताली डॉक्टर जहां मरीजों को छोड़ घरों में सो रहे थे, उस समय इंजीनियरों ने सवा घंटे में ही धैर्य और जांबाजी का परिचय देते हुए पाइपों को सूत भर भी बच्चों की तरफ खिसकने नहीं दिया और देखते ही देखते सभी बच्चों को सकुशल बाहर निकाल लिया।

इतने बड़े हादसे के बावजूद सभी की जान बचने पर आधी रात को सारे बच्चों ने भागने की बजाय इंजीनियरों को समूह में कांपते होठों से कहा- मैनी मैनी थैंक्स अंकल। जैसे ही थैंक यू जयपुर कहा तो इंजीनियरों की आंखें भर आईं और कुछ बच्चों को अपने लाड़लों की तरह गले लगा दिया।

मौत पर जिंदगी की जीत के जज्बे से भरे इस माहौल को जिस किसी ने देखा, वाह वाह कर उठा। घटनास्थल पर पहुंचते ही 30 मेट्रोकर्मियों के दल ने ठंड देखी ना रात और युद्धस्तर पर रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू कर दिया।

कुछ इंजीनियर बस के अंदर घुसे तो कुछ ने बच्चों को बिना नुकसान पहुंचाए भारी पाइपों को किस तरह हटाया जाए इसकी रणनीति बनाई। पूरे दल ने आधी रात में सटीक रणनीति से बड़े काम को आसान कर दिया, जिससे सब बच्चों की जान बच गई।

सबसे पहले जांबाज इंजीनियर ऋषिकेश जोशी बस में घुसे और घायल बच्चों पर आए पाइपों का खतरा भांपा, बशीर अहमद ने तुरंत चार क्रेन मंगवा पाइप को बच्चों की तरफ खिसकने से रुकवाया।

बाहर निर्मल अग्रवाल व विशाल सिंह ने चार अन्य क्रेनों से पाइपों को बस से बाहर निकालने का काम शुरू कर दिया। इस दौरान जोशी और अहमद घायल बच्चों का हौसला बंधाते हुए उन्हें बाहर निकालते रहे।

बशीर बोले डरो मत बच्चों, हम आ गए हैं

जब बशीर अहमद (52) ने पाइप में घुसकर बच्चों की हालत देखी तो बच्चे और घबरा गए और पाइप का धक्का लगने से चीखने लगे। इस पर बशीर ने कहा डरो मत बच्चों मेट्रो वाले आ गए हैं। हादसे की सूचना मिलते ही बशीर मेट्रो वर्क छोड़, तुरंत मौके पर पहुंचे। उन्होंने बच्चों से कहा कि आप चिल्लाना बंद करो और हमारी मदद करो तभी आप को निकाल पाएंगे। इन्होंने आखिरी में फंसे छह बच्चों सकुशल निकाला।

श्वेता ने परिजनों को बताया, उन्हें जयपुर वालों ने कैसे बचाया

अस्पताल में भर्ती छात्रा श्वेता गुप्ता के पैरों में प्लास्टर बंधा है। दुर्घटना के दौरान जब लोग उसे बस से निकाल रहे थे तो वह बेहोश हो गई थी। उसे सिर्फ इतना पता था कि कोई अनजान व्यक्ति उसे गोदी में लेकर दौड़ रहा है और एंबुलेंस में लिटाया है। अस्पताल में रात को उसे होश आया तब रात डेढ़ बजे दिल्ली में मम्मी-पापा से बात की।

श्वेता अब उस क्षण को याद कर रही है जब उसे बस से निकालकर अस्पताल पहुंचाया। अब दिल्ली से उसके मम्मी-पापा भी आ गए हैं। सुबह उस अनजान व्यक्ति ने श्वेता को उसका मोबाइल भी अस्पताल में आकर दिया और कुशलता पूछकर चला गया।

श्वेता ने बताया उसके पैरों पर बड़ा पाइप गिर गया था। उसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि यह पाइप कहां से आया। उसके पैर पूरी तरह से सुन्न हो गए थे। बचाने वालों के हाथ उस तक पहुंच गए थे, लेकिन वे निकाल नहीं पा रहे थे।

बस के बाहर से आवाज आ रही थी बेटी. चिंता मत करो। अभी निकाल लेते हैं। पापा अजय उन लोगों को धन्यवाद दे रहे हैं जिन्होंने बेटी को समय पर अस्पताल पहुंचाया।


साथी ने की सेवा

गगन साउथ दिल्ली पब्लिक स्कूल का नवीं कक्षा का छात्र है। वह आगे की सीट पर बैठा था। उसने बताया कि तेज आवाज के साथ झटका लगा और उसकी सीट टूट गई। पीछे से तेज तेज आवाजें आनी शुरू हो गई।

बस के ऊपर लगा लगेज का एक हिस्सा टूटकर उसके सिर पर आ पड़ा और सिर से खून बह निकला। कुछ ही देर में बेहोश हो गया। अस्पताल में होश आया। उसके सिर पर चोट लगी है। स्कूल प्रबंधन ने घर वालों से बात की तथा हालात सामान्य होने तथा जयपुर नहीं आने की बात कही।

गगन ने बताया कि उसका दोस्त अमन और स्कूल के टीचर उसकी देखभाल कर रहे हैं। शाम को गगन अन्य साथियों के साथ दिल्ली चला गया।

परिजन आए और लाड़लों को ले गए

इधर दुर्घटना की सूचना के बाद रात्रि को ही कई छात्रों के परिजन जयपुर पहुंच गए और साथ लेकर दिल्ली के लिए रवाना हो गए। कई छात्र जो अस्पताल में भर्ती थे और उनकी हालत सामान्य थी। उनको भी परिजन एंबुलेंस से अपने साथ ले गए।

जान बचाने का जुनून

मेट्रो साइट पर हाइड्रोलिक क्रेन को ऑपरेट करने वाले आजमगढ़ उत्तर प्रदेश निवासी अजय राज को फोन पर जैसे ही सूचना मिली, वे किसान धर्म कांटे के पास कार्य कर रही क्रेन को 15 मिनट में आपातकालीन शटडाउन कर मौके पर पहुंचे।

अजय राज ने बताया कि सामान्यतया यह क्रेन 1 घंटे में शट डाउन की जाती है लेकिन बच्चों की बस के हादसे की सूचना मिलने पर उनकी जान बचाने के अलावा कुछ नहीं सूझ रहा था।
अजय राज दिल्ली में लक्ष्मीनगर में हुए मेट्रो हादसे के समय भी रेस्क्यू ऑपरेशन कर चुके हैं।

जल्दबाजी करते तो बचाने के बजाय जान चली जाती

मैकेनिकल इंजीनियर दौसा में बांदीकुई निवासी ऋषिकेश ने बताया कि बस में जैसे ही घुसा तो बच्चों की चीख पुकार देखकर कुछ करने का सूझ नहीं रहा था।

आपातकालीन खिड़की को खोलकर बच्चों को अपने साथी अजीत सिंह की मदद से निकालना शुरू किया। आखिर में फंसे बच्चों को निकालने के बाद ही ऋषि बस से नीचे आए। उन्होंने बताया कि पाइपों को निकालने में थोड़ी सी भी जल्दबाजी कर देते तो जान बचाने के प्रयास में जान जा सकती थी।

खाना छोड़ घटनास्थल पर पहुंचे

मेट्रो में नाइट इंचार्ज विशाल सिंह ने बताया कि उन्होंने खाने के लिए टिफिन खोला ही था कि मोबाइल फोन पर हादसे का सूचना मिली। कार्य कर रहे सभी कर्मचारियों व क्रेन ऑपरेटरों को तुरंत घटनास्थल पर पहुंचने को कहा। पांच मिनट में जब तक मै वहां पहुंचा तब तक रेस्क्यू कार्य शुरू हो चुका था।

विशाल ने ही 108 बुलाई व पूरे ऑपरेशन को बखूबी कॉआर्डिनेट किया, जिससे न तो जाम लगा और न ही कोई अनहोनी हुई। सवा घंटे में सभी बच्चों को सकुशल बाहर निकाला।

थैंक्स जयपुर

निशांत छाबड़ा के पैर में फ्रैक्चर हो गया था, जिसे शनिवार दोपहर में छुट्टी मिल गई। निशांत के जहन में रह-रहकर रात को अनजान लोगों द्वारा भगवान की तरह आकर उन्हें बचाने का दृश्य चल रहा था और उसके मुंह से एक ही शब्द निकल रहा था थैंक्स जयपुर। बेटे की घायल होने की सूचना मिलते ही दिल्ली से मां रात तीन बजे रवाना हो गई। अस्पताल में मां को लिपटकर सकुशल होने के बारे में बताया।

परिवार वालों को सूचना दे दी थी, लेकिन घने कोहरे के कारण स्कूल प्रबंधन ने यही कहा कि बेटे की हालत सामान्य है। सवेरा होने पर ही जयपुर के लिए रवाना हों, लेकिन मम्मी बेटे से मिलने को आतुर थी। रात तीन बजे दिल्ली से कोहरे में ही रवाना हो गए। सुबह बेटे को देखा तो राहत की सांस ली।

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