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24 दिसंबर 2011

जयपुराइट्स के हाथों का जादू हर चीज़ में डाल देता है जान!

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कहते हैं जयपुराइट्स के हाथों में जादू है। चाहे पत्थर हो, धातु हो, मिट्टी या फिर लैदर, ये जिसे भी छूते हैं, आकार लेने लगता है, जान आ जाती है.. और फिर इनके हाथ बन जाते हैं हमारी जिंदगी, हमारा घर, हमारी खुशी

जयपुर ऐसा शहर है, जिसकी विविध हस्तकलाओं की बहुरंगी छटा राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना रही है। फिर बात चाहे सतरंगी बंधेज की हो, या फिर पंचरंगी लहरिया, मंदिर में बोलती संगमरमर की मूर्तियों, कुंदन की जड़ाई वाले रत्नाभूषणों, सुहाग का प्रतीक लाख के चूड़े या फिर ट्रेडिशनल कशीदे की जूतियों की हो, सभी अपने आप में राजस्थान की शान और संस्कृति को दर्शाते हैं।

शहर में होने वाली रंगाई-छपाई और बंधेज का कार्य सांगानेरी प्रिंट की बेडशीट छोटी-छोटी बुंदकियों के जाल में कल्पना के धागों से बंधी जयपुरी बंधेज की साड़ियां और ओढ़नियां युवतियों की चाहत के अलावा फैशन का भी प्रमुख अंग बन गई हैं। यहां का क्राफ्ट देश भर में भेजा किया जा रहा है।

ट्रेडिशनल डिजाइन्स को अब कंटम्परेरी डिजाइन में बनाया जा रहा है। हैंडीक्राफ्ट डिजाइनर मनोज यादव ने बताया कि पिछले 15 सालों के मुकाबले अब लैदर क्राफ्ट 50 गुना बढ़ गया है। मनिहारों का रास्ता जयपुर का ऐसा मोहल्ला है, जहां नगीनों की जड़ाई के हिसाब से चूड़ो की कीमत अलग-अलग होती है।

मेटल वर्क

बीटन मेटल को ठठेरा क्राफ्ट भी कहा जाता है। किशनपोल बाजार में ठठेरों का मोहल्ला है, जहां इस क्राफ्ट का काम दिनभर होता है। शुरुआत में यह क्राफ्ट मंदिरों के शिखर बनाने के काम आता था, लेकिन अब यही क्राफ्ट मंदिरों से निकलकर होम डेकोरेशन के प्रोडक्ट बन गए हैं।

घर और होटलों में बीटन मेटल का क्राफ्ट पॉट और बाउल्स व लाइट्स में इस्तेमाल किया जा रहा है। इस व्यवसाय ने करीब 90 प्रतिशत तक ग्रोथ की है। डेकोरेशन के लिए इनमें चिताई, कार्विग और बीटन जाली डिजाइन में बनाया जा रहा है। इस क्राफ्ट में डिजाइनर नए एक्सपेरिमेंट्स कर रहे हैं।

विदेशों में है लाख की डिमांड

लाख क्राफ्ट की देश में ही नहीं, विदेशों में भी खासी डिमांड है। जयपुर में जहां लाख का उपयोग 2 से 3 प्रतिशत चूड़े बनाने में किया जा रहा है, वहीं अब 95 प्रतिशत लाख विदेशों में एक्सपोर्ट की जा रही है।

डवलप कंट्रीज में दवा के रूप में लाख का प्रयोग किया जा रहा है। पीपल, बेरी, बड़, पलाश और कुमकुम के पेड़ों से लाख प्राप्त की जाती है। इसकी चूड़ी बनाने से पहले उसका रंग तैयार करना, कुटाई, नग लगाना, चूड़ी काटना और सेंकना आदि के जरिए बनाया जाता है।

लैदर आर्ट का बदला स्टाइल


जो लैदर सिर्फ जूतियों तक ही सीमित था अब लाइफ स्टाइल प्रोडक्ट्स में अपनी पहचान बना रहा है। बैग, पर्स, बेल्ट और ज्वैलरी जैसे प्रॉडक्ट्स में इसका इस्तेमाल हो रहा है। प्रोडक्शन से लेकर एक्सपोर्ट करने के तरीकों में भी खासा बदलाव आया है। लैदर क्राफ्ट डिजाइनर जितेंद्र यादव ने बताया कि जयपुर के करीब पांच हजार लोग लेदर क्राफ्ट से जुड़े हैं।


ब्लू पॉटरी में जयपुर का सिग्नेचर स्टाइल

जयपुर में ब्लू पॉटरी का जन्म महाराजा सवाई रामसिंह द्वितीय के जमाने में ही हो गया था

जयपुर की ब्लू पॉटरी की इंटरनेशनल लेवल पर अपनी अलग ही पहचान है। यह कहना भी अतिशयोक्ति नहीं होगी कि ब्लू पॉटरी में जयपुर का अपना स्टाइल सिग्नेचर है। जयपुर में ब्लू पॉटरी का जन्म महाराजा सवाई रामसिंह द्वितीय के जमाने में ही हो गया था।

अगर हम पिछले पंद्रह साल में जयपुर में ब्लू पॉटरी के व्यवसाय की बात करें, तो इसमें तेजी से बदलाव आया है। इससे न केवल एम्प्लॉयमेंट बढ़ा है, बल्कि आधुनिकता की चमक को देखते हुए इसकी बनावट में भी काफी बदलाव आया है।

शुरू-शुरू में तो ब्लू पॉटरी मार्केट में सादगी के साथ उपलब्ध थी, लेकिन इसमें छुपे एक्सपोजर को देखते हुए कई ब्लू पॉटरी एंटरप्रिन्योर्स ने समय के साथ डिजाइन और स्टाइल में बदलाव किए। यही वजह है कि जयपुर की ब्लू पॉटरी की इंटरनेशनल लेवल पर अपनी अलग पहचान है।

ब्लू पॉटरी के बारे में विस्तार से बताते हुए ब्लू पॉटरी एक्सपोर्टर लीला बोरड़िया कहती हैं, ब्लू पॉटरी को एक आधुनिक रूप देने के लिए बीड्स ज्वैलरी को काम में लिया।

इस तरह का प्रयोग सबसे पहले जयपुर मे ही हुआ, बाद में हर जगह इसका प्रयोग किया जाने लगा। अभी हम लोग ब्लू पॉटरी के साथ ब्रास, वुड और रॉट ऑयरन का भी प्रयोग कर रहे हैं। ताकि खूबसूरती के साथ फंक्शनल वैल्यू भी बढ़ जाए।

वेडिंग्स में छाया पपेट शो

शहर में होने वाली रॉयल वेडिंग्स में हॉलीवुड और बॉलीवुड सेलिब्रिटीज तो शान बढ़ाती ही हैं। आजकल जयपुर की कला को एक नई पहचान देने के लिए इन वेडिंग में पपेट शो ने भी जगह बना ली है। वजह साफ है बड़ी सेलिब्रिटीज के साथ ही अंगुलियों पर नाचती कठपुतलियां रंग जमाने में कम नहीं हैं। हर किसी को इनकी प्रस्तुति शर्तिया पसंद आती है।


पिछले कुछ सालों पर गौर किया जाए तो हम पाते हैं कि शहर में हर महीने होने वाली अनेक शादियों में कठपुतली का खेल देखने को मिल रहा है। इस बारे में पपेट शो दिखाने वाले राजेश भाट नागौरी बताते हैं, शुरू - शुरू में पपेट शो शादियों में कम पसंद किए जाते थे, लेकिन कठपुतलियों की स्टाइल और नई थीम से अब वेडिंग्स में पपेट शो की मांग बढ़ी है।

आम तौर पर पपेट शो में राजा अमर सिंह राठौड़ की कहानी को बयां किया जाता है, लेकिन अब वक्त की मांग को देखते हुए हमने पपेट शो में नये कॉन्सेप्ट ईजाद किए हैं। शो की कीमत की बात करूं, तो 5 से 10 हजार तक है।

वर्चुअल आर्ट गैलेरी


आज इंटरनेट आर्ट गैलरी तक भी पहुंच चुका है। जयपुर के हुनर को दुनिया में हर कोई पहचान सके, इसलिए यहां के कलाकार अब खुद की वेबसाइट और वर्चुअल गैलरी डवलप कर रहे हैं। इससे न केवल हैंडीक्राफ्ट का मार्केट बढ़ा है, बल्कि कलाकारों का भी बायर्स से संपर्क ज्यादा हुआ है।


यही वजह है कि ऑनलाइन एग्जीबिट्स का मार्केट साल दर साल 20 से 30 परसेंट डवलप हो रहा है। आज लाखों रुपए के हैंडीक्राफ्ट आइटम्स ऑनलाइन सेल किए जा रहे हैं। इनमें खास तौर पर राजस्थानी और मुगल शैली के साथ कंटम्परेरी आर्ट का मार्केट तेजी से बढ़ रहा है।

पर्यटकों को लुभाएगी


लैदर ज्वैलरी

ट्रेडिशनल हैंडीक्राफ्ट को मार्केट में बनाए रखने के लिए हैंडी क्राफ्ट्स में नित नए एक्सपेरिमेंट किए जा रहे हैं। हाल ही में रूडा (रूरल नॉन फर्म डवलपमेंट एजेंसी) की ओर से उदयपुरिया में एक प्रोजेक्ट में पहली बार लैदर ज्वैलरी बनाई गई है। लाइफ स्टाइल के इस प्रोडक्ट को बनाने में ट्रेडिशनल और मॉडर्न लुक का खास ध्यान रखा गया है।


करीब 40 से 50 क्राफ्ट डिजाइनर्स ने मिलकर लैदर ज्वैलरी कॉन्सेप्ट को तैयार किया। इस ज्वैलरी की खास बात ये है कि ये पर्यटक, हाई क्लास सोसायटी, फैशन स्टोर्स और मॉल में सप्लाई की जाएगी। करीब 6 महीने में बनकर तैयार हुई इस ज्वैलरी प्रोडक्ट से आर्टिजन के लिए रोजगार बढ़ने की संभावनाएं हैं। सैम्पल जल्द ही स्टोर्स और मॉल्स में डिसप्ले किए जाएंगे।

सॉफ्ट लैदर का हार

सॉफ्ट लैदर से ज्वैलरी में हार बनाया गया है। सॉफ्ट लैदर में स्मेल नहीं आती है इस कारण इसका इस्तेमाल ज्वैलरी बनाने में किया जा रहा है। डवलपमेंट कमिश्नर ऑफ हैंडीक्राफ्ट के ए.डी. शंकर डंगायच ने बताया कि, ट्रेडिशनल टच को बरकरार रखने के लिए लैदर हार में जैम स्टोन का इस्तेमाल किया गया है।

स्टोन को टाई करने के लिए पटवा और एम्ब्रॉयडरी का इस्तेमाल किया गया है। पीतल की एसेसरीज का इस्तेमाल कर हार को एंटीक लुक देने की कोशिश की गई है। पर्यटकों के लिए ये ज्वैलरी खास आकर्षण का केन्द्र होगी।

स्टोन में बना ताज

फैशन स्टोर्स के लिए डिजाइनर्स ने पूरा सेट तैयार किया है। इसमें ताज,नेकलेस, बाजूबंद,बैल्ट और फुट वेयर्स शामिल है। लैदर की बनी इन एंटीक ज्वैलरी को कंटम्परेरी डिजाइन में बनाया गया है। स्टोन, थ्रेड और ब्रास वर्क के साथ इनके डिजाइन बनाए गए हैं। मॉडल्स जब मॉडर्न ड्रैस पर ये ट्रेडिशनल ज्वैलरी पहनेगी तो एक नया कॉम्बिनेशन नजर आएगा। गल्र्स को ध्यान में रखते हुए बैल्ट स्टाइल का कमरबंद भी बनाया गया है।

लैदर पर हैंड प्रिंटिंग

लैदर की क्वालिटी को बरकरार रखते हुए लैदर प्रोडक्ट्स पर टाई एंड डाई ब्लॉक प्रिंट और ट्रेडिशनल प्रिंटिंग की गई है। लैदर ज्वैलरी में भी कुछ ऐसी ज्वैलरी है जिन पर सिर्फ प्रिंट करके उन्हें ट्रेडिशनल लुक दिया गया है।

रंगों में भी नयापन

अब तक लैदर के प्रॉडक्ट में सिर्फ दो ही रंग ब्लैक और ब्राउन देखने को मिलते थे, लेकिन क्राफ्ट डिजाइनर ने ज्वैलरी करीब 6 से 7 रंगों में बनाई है। फिरोजी, रानी, लाल और ब्लू आदि रंगों से लैदर ज्वैलरी बनाई गई है।

प्राइजत्न25 रुपए से 5 हजार रुपए

हैंडमेड पेपर में डिजाइन इनोवेशन

कागज के बारे में सोचते ही सांगानेर का नाम जुबान पर आना लाजिमी है, क्योंकि हाथ कागज का पर्याय सांगानेर को ही माना जाता है। सांगानेर एक ओर छपाई के लिए प्रसिद्ध है, वहीं हाथ कागज का पर्याय भी बन चुका है। पिछले पंद्रह सालों की बात करें, तो सांगानेर कागज से बने आइटम्स न केवल पूरे भारत में, बल्कि यूएसए जैसे देशों में भी अपने पैर जमा चुके हैं।

दुनियाभर में सांगानेरी कागज से बने आइटम्स की मांग इतनी है कि पिछले कुछ सालों में इसके व्यवसाय में दस गुना तक बढ़ोतरी हुई है। हैंडमेड पेपर के लिए सलीम पेपर का कागज में अपना सिग्नेचर है। सलीम कागजी कहते हैं, हमारे डिस्ट्रीब्यूटर यूएसए में भी हैं।

मार्केट में हम बने रहें, इसके लिए जरूरत पड़ने पर हम बदलाव भी ला रहे हैं। फिलहाल सिल्क स्क्रीन कागज का प्रयोग डिजाइनर शॉपिंग बैग्स, डेकोरेटिव प्रिंटेड पेपर गिफ्ट के लिए तैयार कर रहे हैं। इस कागज को हम कॉटन वेस्टेज और होजरी से रॉ मेटेरियल से तैयार कर रहे हैं, ताकि इनका ड्यूरेशन टाइम लंबा हो।

जयपुर हस्तकला में समृद्ध है, लेकिन इस अनमोल कला के साथ तकनीक शामिल होगी तो कला बच पाएगी। लोक कलाओं को बचाने के लिए हस्तशिल्प को तकनीक से मिलाना होगा।

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