कोई भी फेसबुक से दूर नहीं होना चाहता। ज्यादातर का कहना है सोशल नेटवर्किग पर सभी उम्र के यूजर हैं। आपत्तिजनक सामग्री हटाने के लिए कड़े नियम बनाने की जरूरत नहीं। इसके लिए सिक्यूरिटीज और कानून पहले से मौजूद है। सोशल वेबसाइट्स यूजर से चलती है जो पसंद नहीं है उसे हमेशा के लिए इग्नोर किया जा सकता है।
डिटेक्टर लगाए जाएं
नेटवर्किग साइट्स की सामग्री पर क्या हो और क्या नहीं यह तय करने के लिए युवाओं ने कई सजेशन दिए। किसी ने कहा इंटेलीजेंट प्रोग्रामिंग पर काम हो रहा है। ऐसी प्रोग्रामिंग कर दें जिससे कमेंट्स, फोटो, ऑडियो-वीडियो फिल्टर्स से होकर गुजरें। इसके बाद ही वेबसाइट पर अपलोड हो। ऑस्ट्रेलिया में जिस तरह फोन पर आपत्तिजनक कीवर्ड बोलते ही कॉल रिकार्ड होने लगता है उसी तरह सोशल साइट्स पर डिटेक्टर लगा दिए जाएं।
यह है फेसबुक की स्थिति
800 मिलियन एक्टिव यूजर
25 मिलियन इंडिया यूजर
50 फीसदी हर रोज लॉगइन होते है
130 फ्रेंड औसतन प्रति यूजर
70 से ज्यादा भाषा साइट पर
350 मिलियन यूजर मोबा. से अपडेट करते हैं
48 फीसदी यूजर 18 से 24 साल के
पहले यह किया था
ब्लैकबेरी पर पाबंदी- सरकार ने ब्लैकबेरी से कहा था कि संदेशों की जानकारी नहीं दी तो भारत में कारोबार बंद कर देंगे।
छह देशों में फेसबुक पर रोक- चीन, पाक, बांग्लादेश, ईरान, उज्बेकिस्तान और वियतनाम।
युवाओं ने कहा स्वस्थ बहस से निकले हल
> भारत में बच्चे भी नेट यूजर हैं। ज्ञान अच्छा है, लेकिन उसकी अति बुरी है। -धर्मेद्र गुर्जर
> अश्लीलता को रोका नहीं जा सकता। सेंसर के बजाय बैन होना चाहिए। -स्वप्निल तिवारी
> सेंसर उचित नहीं। इसका हल स्वस्थ बहस के माध्यम से निकालना चाहिए।-आकांक्षा शर्मा
> सोशल नेटवर्किग साइट ने ही ट्यूनीशिया और इजिप्शियन को आजाद करवाया। -अक्षय इंगले
> ऐसी तकनीक उपलब्ध है जिससे गलत शब्दों के अपलोड रोके जा सकते हैं। -नोबेल जेवियर
> बच्चे को समझाना होगा। साइट्स पर कंट्रोल किया जाना चाहिए। - दीपेश अग्रवाल
> सेंसर आम आदमी की अभिव्यक्ति को समाप्त करने जैसा है। -अभिषेक रघुवंशी
> देश की 15 फीसदी आबादी नेट यूजर है। बैन या सेंसर लगाना गलत होगा। -दीपक पंवार
> नेताओं के विरोध में साइट्स पर आपत्तिजनक चीजें लिखना गलत है। -अनुभव गंगवाल
> पुराने कानून का उपयोग नहीं हो रहा तो नए की क्या आवश्यकता है। -गगन और राम बजाड़
> सेंसर का रास्ता ठीक नहीं। गलत पोस्ट कम करने के प्रयास करना होंगे। - राजेश शर्मा
> सेंसर नहीं होना चाहिए। जो हो रहा है वह लिमिट में है, बस इसे फिल्टर किया जाए।- मनस्वी पाटीदार, विजय मूलचंदानी
> सोशल नेटवर्किग साइट्स का मकसद ही समाज से जुड़कर नॉलेज शेअर करना है तो यह मायने नहीं रखता कि नॉलेज किस तरह का है। मॉनिटरिंग हो लेकिन लिमिट में। सभी यूजर से निष्कर्ष निकालने के बाद ही एक स्टैंडर्ड पैमाने पर निगरानी करना ठीक होगा। - नेहा खान और गुंजन, हर्षित जैन, पूजा रेनीवाल
पांच साल के बच्चे भी फेसबुक पर
एमजीएम मेडिकल कॉलेज के मनोचिकित्सक डॉ. वी.एस. पाल ने कहा अब तो पांच साल के बच्चे भी इंटरनेट का उपयोग कर रहे हैं। बिना अच्छा-बुरा जाने नेटवर्किग साइट्स से जुड़ रहे हैं। साइट्स का उद्देश्य पूरा करने वालों के लिए यह फायदेमंद है लेकिन इसकी लत से परेशानी हो सकती है।
पाबंदी से हो सकते हैं गलत असर
न्यू जीडीसी की साइकोलॉजी विषय की प्रोफेसर खालिदा दधाले ने कहा आपत्तिजनक सामग्री अपलोड करने वाले मानसिक समस्या के यूजर होते हैं। दरअसल जिस चीज पर पाबंदी लगाई जाती है वह और ज्यादा होने लगती है। बच्चों पर पाबंदी लगाएंगे तो इसका असर कहीं और देखने को मिलेगा।
आप ही कंट्रोलर तो सेंसर क्यों
आईटी एक्सपर्ट शशांक चौरे का कहना है सभी सोशल साइट्स पर पहले से ऐसे फायर वॉल, सॉफ्टवेयर और फिल्टर लगे हैं। सोशल नेटवर्किग साइट्स पर अपनी प्रोफाइल के हम खुद ऑनर होते हैं। यदि कोई आपत्तिजनक सामग्री नजर आती है तो उसे हमेशा के लिए इग्नोर कर सकते हैं।
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