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ज्योतिष के अनुसार कुंडली में कई प्रकार के शुभ-अशुभ योग बनते हैं। सभी योगों का प्रभाव अलग-अलग होता है। इन सभी योगों में सर्वाधिक भय उत्पन्न करने वाला योग है कालसर्प योग। ऐसा माना जाता है कि यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में अशुभ प्रभाव देने वाला कालसर्प योग हो तो उसका जीवन हमेशा ही परेशानियों से घिरा रहता है।
कालसर्प योग के प्रभाव से कड़ी मेहनत के बाद भी उचित प्रतिफल प्राप्त नहीं हो पाता है। घर-परिवार में समस्याएं बनी रहती हैं, जिससे मानसिक तनाव झेलना पड़ता है। छोटी-छोटी सफलता के लिए भी अत्यधिक मेहनत करना पड़ता है। इसके विपरित यदि कालसर्प योग शुभ प्रभाव देने वाला हो तो व्यक्ति को राजा के समान सुविधाएं प्रदान करता है। जीवन में सबकुछ मिल जाता है।
ज्योतिष के अनुसार सौर मंडल में सात ग्रह है। सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि इसके अलावा दो छाया ग्रह है राहु और केतु। ज्येातिष की भाषा में राहु को सर्प का मुख माना जाता है एवं केतु को उस सर्प की पूंछ। जब किसी भी जन्मकुंडली में सभी ग्रह राहु-केतु के मध्य आ जाते हैं तो वह कुंडली कालसर्प ग्रस्त मानी जाती है।
कालसर्प योग हमेशा हानिकारक नहीं होता है। कुछ स्थिति में इसका दुष्प्रभाव होता है लेकिन किसी भी एक ग्रह के महायोग से इसका प्रभाव स्वत: खत्म हो जाता है। मूलत: काल सर्प योग केवल अनिर्णय या असमंजस की स्थिति पैदा करता है। इससे पीडि़त व्यक्ति महत्वपूर्ण मौकों पर निर्णय लेते समय गफलत की स्थिति में आ जाता है। जिससे उसका नुकसान हो जाता है। कई महापुरुषों की कुंडली में भी कालसर्प योग रहा लेकिन वे अपनी मंजिल पर पहुंचे। इसलिए कालसर्प भय या चिंता का विषय नहीं है, बल्कि विवेकपूर्ण बुद्धि के उपयोग का विषय है। कालसर्प के बारे में प्राचीन ग्रंथ में भी वर्णन मिलता है। महर्षि पाराशर, वराहमिहिर, आचार्य कल्याण वर्मा आदि कई विद्वानों ने अपने-अपने ग्रंथों में सर्प योग का उल्लेख किया है।
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