
यदि किसी वजह से कोई अपने आप को शारीरिक रूप से कमजोर महसूस करता है और पर्याप्त सावधानी के बाद भी निर्बलता दूर नहीं हो रही है, तो उन्हें भृंगासन की मदद लेना चाहिए। इस आसन की पूर्ण अवस्था मेंढक के समान हो जाती है इसीलिए इसे भृंगासन कहा जाता है।
भृंगासन की विध
किसी साफ एवं समतल स्थान पर कंबल या दरी बिछाकर बैठ जाएं। अब अपने दोनों पैरों को घुटनों से मोड़कर पीछे की ओर ले जाएं। दाएं एड़ी को दाएं नितम्ब (हिप्प) से सटाकर और बाईं एड़ी को बाएं नितम्ब (हिप्प) से सटाकर रखें। दोनों पंजे व एडिय़ां आपस में मिलाकर रखें तथा दोनों घुटनों के बीच थोड़ी दूरी रखें। अब गहरी सांस लेते हुए आगे की ओर झुके और अपने हाथों को कोहनियों से मोड़कर घुटनों के बीच रखकर कोहनी से हथेलियों तक के भाग को नीचे फर्श पर टिकाकर रखें। दोनों हाथों के बीच थोड़ी दूरी रखें तथा अंगुलियों को आपस में मिलाकर रखें। सिर को उठाकर रखें और नजरें सामने रखें। आसन की इस स्थिति में सांस को रोककर कुछ देर रुके। फिर सांस छोड़ते हुए धीरे-धीरे ऊपर उठकर सामान्य स्थिति में एडिय़ों पर बैठ जाएं। कुछ क्षण रूके और फिर इस आसन को दोबारा करें। भृंगासन को कम से कम 5 से 10 बार करें।
भृंगासन के लाभ
भृंगासन करने से पाचनशक्ति मजबूत होती है तथा यह भूख को बढ़ाता है। यह आसन पेट के भारीपन को दूर करता है तथा पेट की गैस, कब्ज एवं अन्य पेट के सभी विकार को खत्म करता हैं। इस आसन को करने से कन्धों, हाथ व पैर आदि की कमजोरी दूर होती है। साथी शरीर स्वस्थ और निरोगी बनता है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)