किसी काम को पूरा करने के लिए कुशल पुरुषार्थ, पराक्रम और परिश्रम जब पूरी सामथ्र्य से जुट जाए, तब जीवन में तेजस्विता आती है। तेज का अर्थ यह नहीं है कि चेहरा कांतिमान हो जाए। तेज का अर्थ है हर स्थिति में व्यक्तित्व के भीतर का फोर्स काम करे, चाहे आध्यात्मिक गतिविधियां हों या सांसारिक।
आदमी के भीतर का आवेग अपना काम दिखाता है। यह आवेग जब श्रद्धा और भक्ति से जुड़ जाता है, तब तेजस्विता प्रकट होती है। तेज एक झरोखा बन जाता है और उसमें से व्यक्ति की महानता, उसकी श्रेष्ठता झरने लगती है। हनुमान भक्त रविशंकरजी रावतपुरा सरकार कहते हैं कि तेजस्विता आयु में नहीं, वृत्ति और स्वभाव में होती है। उम्र का इससे लेना-देना नहीं है।
बहुत-से लोग शरीर के मामले में बूढ़े हो जाते हैं, लेकिन बुद्धि और विवेक के मामले में उनका बचपन वहीं का वहीं रहता है। आज चूंकि हर आदमी चाहे पढ़ा-लिखा हो या अनपढ़, एक अजीब-सी चालाकी अपने भीतर लाने की तैयारी में है। ऐसे समय तेजस्विता हमारे लिए सबसे बड़ा सहारा यह बनेगी कि हम पर कोई अकारण और अनुचित आक्रमण नहीं कर पाएगा और न ही हमारा शोषण हो सकेगा, क्योंकि तेजस्विता हमें अन्याय के विरुद्ध हिंसा को भी सही अर्थ देकर प्रकट करती है।
कृष्ण ने अजरुन की तेजस्विता को ही स्पर्श किया था, क्योंकि अजरुन अहिंसा के नाम पर अधर्म को बचाने के चक्कर में पड़ गए थे। तेजस्विता तन को सक्रिय रखती है और मन को विश्राम की मुद्रा में। इसलिए जो लोग मेडिटेशन से गुजरते हैं, उनके चेहरे पर तेज झलकता है।
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