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29 दिसंबर 2011

कुछ तो हवा भी सर्द थी, कुछ था तेरा ख्याल भी


कुछ तो हवा भी सर्द थी, कुछ था तेरा ख्याल भी
दिल को खुशी के साथ – साथ होता रहा मलाल भी

बात वो आधी रात की, रात वो पूरे चाँद की
चाँद भी एन चैत का, उस पे तेरा ज़माल भी

सबसे नजर बचा के वो मुझको कुछ ऎसे देखता
एक दफा तो रुक गई गर्दिशे माहो साल भी

दिल तो चमक सकेगा क्या फिर भी तरश के देख लें
शीशा गराने शहर के हाथ का ये कमाल भी

उसके न पास सके थे जब दिल का अजीब हाल था
अब जो पलट के देखिए बात थी कुछ, मुहाल भी

मेरी तलब था एक शख्स वो जो नहीं मिला तो फिर
हाथ दुआ से यूँ गिरा भूल गया सवाल भी

शाम की नासमझ हवा पूछ रही है एक पता
मौजे हवा ए कू ए यार कुछ तो मेरा ख्याल कर.

परवीन शाकिर

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