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09 दिसंबर 2011

अन्‍ना का हमला: देश के लिए खतरनाक हैं मनमोहन

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रालेगण सिद्धि. लोकपाल पर संसदीय समिति की रिपोर्ट ने नाराज अन्‍ना हजारे ने कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार पर जमकर निशाना साधा है। भ्रष्‍टाचार के खिलाफ मुहिम चला रहे सामाजिक कार्यकर्ता अन्‍ना हजारे ने आरोप लगाया है कि सरकार भ्रष्‍टाचार मिटाने को लेकर गंभीर नहीं है। उन्‍होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी को आड़े हाथ लिया।

अन्‍ना ने कहा, ‘प्रधानमंत्री ने लिखकर दिया कि वो लोकपाल चाहते हैं। पीएम यदि चाहते तो मजबूत लोकपाल ला सकते थे। ऐसा कमजोर प्रधानमंत्री होना देश के लिए खतरनाक है।' हालांकि अन्‍ना ने यह भी कहा, 'लेकिन अकेले प्रधानमंत्री क्‍या करेंगे। प्रधानमंत्री भ्रष्‍टाचार से लड़ने को गंभीर हैं लेकिन राहुल गांधी 'दखल' दे रहे हैं।’ हजारे ने कहा है कि राहुल गांधी नहीं चाहते हैं कि भ्रष्टाचार रुके। उनका कहना है कि सरकार पर राहुल गांधी का दबाव है।

अन्‍ना हजारे ने केंद्रीय गृह मंत्री पी चिंदबरम और मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्‍बल पर लोकपाल मसले को लेकर भ्रम की स्थिति पैदा करने और भ्रष्‍टाचार के खिलाफ मजबूत बिल लाने के मुद्दे को जटिल बनाने का आरोप लगाया। उन्‍होंने कहा, 'हम कपिल सिब्‍बल के चुनाव क्षेत्र में उनके खिलाफ अभियान चलाएंगे।' अन्‍ना ने राहुल गांधी पर आरोप लगाया कि वह सरकार की ओर से तैयार ड्राफ्ट को स्‍वीकार करने के लिए स्‍टैंडिंग कमेटी के सदस्‍यों पर बेवजह दबाव डाल रहे हैं।

अन्‍ना हजारे ने एक निजी समाचार चैनल से बातचीत में यह बात कही। अन्‍ना की यह प्रतिक्रिया लोकपाल बिल का ड्राफ्ट संसद के पटल पर रखे जाने के तुरंत बाद आई। अन्‍ना ने कहा, ‘आप केवल सरकारी लोकपाल के ड्राफ्ट पर ही क्‍यों चर्चा करना चाहते हैं? इसका मतलब आप इस मसले को लेकर गंभीर नहीं हैं।’ यह पूछे जाने पर कि क्‍या टीम के सदस्‍यों का उन पर नियंत्रण है, अन्‍ना ने कहा, ‘मेरे बाल धूप से नहीं पके हैं, अनुभव से पके हैं।’ टीम अन्‍ना के सदस्‍यों पर उठने वाले सवालों पर अन्‍ना ने कहा, ‘हमारी टीम में कोई दोषी है तो सारी एजेंसियां आपकी (सरकार की) हैं, आप जांच करके उन्‍हें सजा दे सकते हैं।’
टीम अन्‍ना ने भी साधा निशाना
टीम अन्‍ना के सदस्‍य अरविंद केजरीवाल ने आरोप लगाया है कि अगर संसदीय समिति की सिफारिशों को लागू किया गया तो इससे भ्रष्टाचार बढ़ेगा। यह सीबीआई के कामकाज पर बुरा असर डालेगी।' केजरीवाल ने ट्विट किया, 'इस रिपोर्ट से हमारा भ्रष्‍टाचार विरोधी तंत्र दो कदम पीछे चला जाएगा। हमें पूरे जोर-शोर से इसका विरोध करना चाहिए। स्‍टैंडिंग कमेटी में 30 सदस्‍य थे। दो तो कभी आए ही नहीं। 16 सदस्‍यों ने असहमति नोट तैयार किया है। इस तरह इस रिपोर्ट को 12 सदस्‍यों का समर्थन हासिल है। इनमें सात कांग्रेस से हैं। इनके आलवा लालू प्रसाद, अमर सिंह और बाकी मायावती की पार्टी से हैं। ऐसे में इस रिपोर्ट की विश्‍वसनीयता संदेह से परे नहीं है।'

केजरीवाल ने कहा, ‘कमेटी कहती है कि एनजीओ इसके दायरे में आने चाहिए, कंपनियां इसके दायरे में आनी चाहिए लेकिन प्रधानमंत्री और सांसद इसके दायरे में नहीं आएंगे, चपरासी इसके दायरे में नहीं आएंगे तो फिर इसके दायरे में आएगा कौन? सरकार ने एक बार फिर देश की जनता को धोखा दिया है। मैं देश के तमाम लोगों से अपील करता हूं वो रविवार को फिर से जंतर-मंतर पर आएं।’

किरण बेदी ने ट्विटर पर टिप्पणी करते हुए लिखा है, 'सीबीआई को लोकपाल के दायरे से बाहर रखकर नुकसान किया जा चुका है। अब लोकपाल बनाने का ही क्या औचित्य है? क्या संसद इसे पलटेगी?'

टीम अन्‍ना के सदस्‍य प्रशांत भूषण ने आरोप लगाया है कि लोकपाल बिल से भ्रष्टाचार कम होने के बजाय और ज्यादा बढ़ेगा। उन्‍होंने कहा, 'हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम देश के लोगों के ये बताएं कि स्टैंडिंग कमेटी ने कैसा बिल बनाया है। हमें भरोसा है कि देश की राजनीतिक पार्टियां संसद में स्टेंडिंग कमेटी द्वारा पेश बिल को नकार देंगी और जनहित में मजबूत जनलोकपाल लाएंगी।'

भूषण ने कहा, 'यदि संसद ने मजबूत लोकपाल बिल नहीं पास किया तो हम फिर से प्रदर्शन करने के लिए मजबूर हो जाएंगे। इस बार प्रदर्शन लोकपाल तक ही सीमित नहीं रहेगा बल्कि हमारे लोकतंत्र की बाकी खामियों को भी इसमें समाहित किया जाएगा।' टीम के सदस्य कुमार विश्वास ने इसे बेहद कमजोर लोकपाल ड्राफ्ट करार दिया है।
संसद की स्थायी समिति ने राज्यसभा में शुक्रवार को लोकपाल बिल पर अपनी 258 पेज की रिपोर्ट सौंप दी। रिपोर्ट में ग्रुप सी और ग्रुप डी के कर्मचारी लोकपाल कानून के दायरे से बाहर रखने की पेशकश की गई है । लेकिन संसद की स्थायी समिति की सभी सिफारिशों से समिति के आधे से ज़्यादा सदस्य सहमत नहीं है। इस रिपोर्ट के साथ 16 असहमति पत्र भी संसद में पेश किए गए हैं। इनमें से तीन चिट्ठियां तो कांग्रेसी सांसदों की हैं। कांग्रेस के तीनों सांसद 57 लाख कर्मचारियों को लोकपाल कानून से बाहर रखने से असंतुष्ट हैं।

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