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27 दिसंबर 2011


आज प्रतियोगिता के दौर में इंसान सफलता, तरक्की, पद, प्रतिष्ठा और यश पाने के लिए रोजमर्रा की ज़िंदगी में परिवार, समाज या कार्यक्षेत्र में उठते-बैठते न चाहकर भी हम स्वभाव, विचार के न मिलने या स्वार्थ के चलते एक-दूसरों के हित की अनदेखी करने से नहीं चूकता। जिससे चाहे-अनचाहे ही एक-दूसरे के प्रति ईष्र्या, द्वेष और बुराई के भाव पैदा होता है।

ऐसी बुरी भावनाएं व्यावहारिक जीवन में बाधा ही नहीं बनती, बल्कि धर्मशास्त्रों के नजरिए से जाने-अनजाने दूसरों को दु:खी करने से हुए पाप के बुरे फल दु:ख के रूप में ही मिलते हैं।

हिन्दू धर्म में भगवान गणेश विघ्र विनाशक देवता माने जाते हैं। जिनकी उपासना से पैदा बुद्धि और विवेक का संतुलन ऐसे ही अनचाहे दु:खों से छुटकारा देने के साथ ही रक्षा भी करता है। बुधवार का दिन भगवान गणेश की उपासना के लिए नियत है। खासतौर पर बुधवार और चतुर्थी के योग में तो अनचाही विघ्र, बाधाओं को दूर रखने के लिए गणेश गायत्री मंत्र का जप बहुत ही शुभ और प्रभावकारी माना गया है।

बुधवार, चतुर्थी तिथि या संभव हो तो हर रोज भगवान श्री गणेश की कम से कम गंध, अक्षत, फूल, दूर्वा, सिंदूर चढ़ाकर मोदक का भोग लगाएं और धूप, दीप से पूजा करें। इस पूजा के बाद इस गणेश गायत्री मंत्र की यथासंभव एक माला यानी 108 बार जप न केवल संकट, विपत्ति, आपदाओं, शत्रु बाधासे रक्षा करता है, बल्कि तन, मन व धन की हर कमी जैसे भय, दरिदता, रोग आदि को दूर करता है। यह गणेश गायत्री मंत्र है-

एकदंताय विद्महे।

वक्रतुंडाय धीमहि।

तन्नो दंती प्रचोदयात।।

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