सुबह हो या शाम
क्यूँ याद तुम्हारी आती है
ना काम में लगता है दिल
न ही रातों को मुझे नींद आती है
बिस्तर की सलवटें हो
चाहे हो तुम्हारी यादें
मुझे दिन हो या रात हो
क्यूँ सताती है
इतना सब तो है फिर भी
तुम मुझे यूँ ही बिला वजह क्यूँ रुलाती हो । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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