कहा जाता है कि पापियों को मरने के बाद नरक में जाना पड़ता है। मरने के बाद उन्हें यमदूतों के द्वारा अनेक तरह से कष्ट दिए जाते हैं। लेकिन अगर गरुड़ पुराण की माने तो मरने के बाद पापियों को सिर्फ नरक में ही कष्ट देकर क्षमा नहीं किया जाता बल्कि उसके बाद भी उन्हें जन्म लेने से पहले मां के गर्भ में अनेक तरह की परेशानियां झेलनी होती हैं। वे जब किसी गर्भ में भी पहुंचती हैं तब भी उन्हें बहुत तरह के दुख झेलने पड़ते हैं। आइए जानते हैं कि किस तरह के दुख मरने के बाद आत्माओं को मां के गर्भ में झेलने पड़ते हैं।
स्त्री के ऋतु मध्य में पापी पुरुष के शरीर की उत्पति होती है, विश्वरूप को मारने में इंद्र को हत्या लगी, उसका इंद्र ने चार विभाग कर पृथ्वी, जल, वृक्ष, और स्त्रियों को क्रम से दे दिया। स्त्रियों में ऋ तु आने से पुत्रादि की उत्पति होती है। इस कारण तीन दिन स्त्रियां अपवित्र रहती है। ऋतुकाल में प्रथम दिन स्त्री चांडाली, दूसरे दिन ब्रह्मघातिनी के तुल्य, तृतीय दिन धोबिन होती है।
ईश्वर से पे्रित हुए, कर्मों से शरीर धारण करने के लिए पुरुष के वीर्य विंदु के आश्रय से स्त्री के उदर में जीव प्रवेश करता है। एक महीने में मस्तक , दूसरे महीने में भुजा आदि अंग की रचना होती है, तीसरे महीने में नख, रोम, हड्डी, चर्म, लिंग, दसद्वार के छिद्र, चौथे महीने में त्वचा, मांस, रक्त, रुधिर, रÓजा पांचवें महीने में क्षुधा, तुषा उत्पन्न होती है।
छटे महीने गर्भ की झिल्ली में अ'छादित होकर दाहिने कुक्षि में गर्भ भ्रमण करने लग जाता है। माता के भक्षण किए हुए अन्न पानादि से बढ़ता हुआ गर्भ का जीव विष्ठा, मूत्र आदि का स्थान तथा जहां अनेक जीवों की उत्पति होती है। ऐसे उदर में शयन करता है। वहां कृमि जीव के काटने से सब अंग कष्ट पाते हैं, वह बारम्बार मुच्र्छित भी होता है।
माता जो-जो कड़वा, तीक्ष्ण, लवणयुक्त रूखा, कसैला आदि भोजन करती है। उसके स्पर्श होने स ेउसके कोमल अंगों को बहुत तकलीफ होता है। फिर भीतर से ऊपर आंत से वेष्टित होता है। इधर-उधर हिल नहीं सकता। जिस प्रकार से पिंजरे में रुका हुआ पक्षी रहता है। वैसे ही गर्भ उदर में दुख से रहता है। वहां वह अपने कामों को याद करता हुआ सुख से सांस नहीं ले पाता है।
सातवें महीने ज्ञानप्राप्ति होने से भय होने लगता है, वह सोचता है मैं इस गर्भ से बाहर जाऊंगा, ऐसे व्यापार से कम्पन के कारण इधर-उधर घूमता एक जगह स्थिर नहीं रहता जैसे- विष्टा में पैदा हुए जीव। सातवें महीने में जीव अत्यंत दुख से वैराग्ययुक्त हो ईश्वर की स्तुति करता है तब वे अपने द्वारा किए गए सारे शुभ व अशुभ कर्मों की व्याख्या करता हैं। जब इस तरह जीव लगातार प्रार्थना करता है तब जाकर वह दसवें महीने में गर्भ से बाहर निकलता है।
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
07 नवंबर 2011
जो पाप करते हैं उन्हें माता के पेट में क्यों और कैसे दुख झेलने पड़ते हैं?
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