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04 नवंबर 2011

अगर हाथ छूटा, पांव फिसला तो फिर राम ही राखा

हिसार .अगर हाथ छूटा, पांव फिसला तो फिर राम ही राखा। ऐसे खतरों से हमारे बच्चे रोजाना खेलते हैं। शहर में छात्रों के लिए स्पेशल बसों का टोटा है। रोजाना ऑटो रिक्शा का खर्च उठा नहीं सकते। फिर क्या करें? ट्रैक्टर ट्राली पर लटकते हैं। बसों के पीछे दौड़ते हैं। सीट मिलने की उम्मीद बिलकुल नहीं है तो छत पर जगह पाने की होड़।

पांव रखने की जगह मिल जाए तो लटक कर पहुंचेंगे पहले शिक्षण संस्थान और फिर शाम को सफर शुरू होगा घर का। शहर के तमाम चौराहों पर ऐसे दृश्य आम हैं। ऐसे खौफनाक दृश्यों को दैनिक भास्कर के फोटो जर्नलिस्ट प्रवीन वर्मा ने जिंदल चौक पर अपने कैमरे में कैद किया।

दूर से आती दिखी बस

और भाग पड़े छात्र

छत पर चढ़ो...

खतरों भरा सफर शुरू

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