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10 नवंबर 2011

इस कारण कोई मृत्यु के बाद बन जाता है भूत-प्रेत..!



शास्त्रों की सीख है कि जीवन के रहते सुख-सुकून व मृत्यु के बाद दुर्गति से बचने के लिए के लिए अच्छे कर्म और सोच बहुत जरूरी है। व्यावहारिक रूप से भी किसी भी लक्ष्य को पाने के लिए सही विचार होने और उसके मुताबिक काम को अंजाम देने पर ही मनचाहे नतीजे संभव है। अन्यथा सोच और क्रिया में तालमेल का अभाव या दोष बुरे परिणामों के रूप में सामने आते हैं।

मृत्यु के संदर्भ यही बात सामने रख शास्त्रों की बात पर गौर करें तो बताया गया है कि कर्म ही नहीं विचारों में गुण-दोष के मुताबिक भी मृत्यु के बाद आत्मा अलग-अलग योनि प्राप्त करती है। जिनमें भूत-प्रेत योनि भी एक है। हालांकि विज्ञान भूत-प्रेत से जुड़े विषयों को वहम या अंधविश्वास भी बताता है। लेकिन यहां बताई जा रही मृत्यु के बाद भूत-प्रेत बनने से जुड़ी बातों में जीवन में सुखी व शांति से भरे जीवन का एक अहम सूत्र भी हैं। जानते हैं किस कारण मृत्यु के बाद प्राप्त होती है भूत-प्रेत योनि और क्या है इससे जुड़ा जीवनसूत्र? -

हिन्दू धर्मग्रंथ श्रीमद्भगवदगीता में लिखी ये बातें मृत्यु के बाद भूत-प्रेत बनने का कारण उजागर करती है -

भूतानि यान्ति भूतेज्या:

यानी भूत-प्रेतो की पूजा करने वाले भूत-प्रेत योनि का ही प्राप्त करते हैं। इस बात को एक और श्लोक अधिक स्पष्ट करता है -

यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम्।

तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भावभावित:।।

यानी मृत्यु के वक्त प्राणी मन में जिस भाव, विचार या विषय का स्मरण करता हुआ शरीर छोड़ता है, वह उसी भाव या विषय के अनुसार योनि को प्राप्त हो जाता है।

इन बातों में संकेत यही है कि अगर व्यक्ति ताउम्र बुरे काम व उसका चिंतन करता रहे, तो वह बुराई के रूप में मन में स्थान बना लेते हैं और अन्तकाल में भी वही बातें मन-मस्तिष्क में घूमती हैं। ऐसे बुरे भावों के मुताबिक वह व्यक्ति भूत-प्रेत की नीच योनि को ही प्राप्त हो जाता है।

दरअसल, भूत-प्रेत भी मलीनता या बुराई का प्रतीक भी हैं। इसलिए यहां भूत-प्रेत उपासना का अर्थ बुराई का संग भी है। इसलिए संकेत यही है कि जीवन में बुरे कर्मों से दूरी बनाए रखें, ताकि जीवन रहते भी व जीवन के अंतिम समय में मन के अच्छे भावों के कारण मृत्यु के बाद भी दुर्गति से बचें।

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