इस्लाम में रमजान की ही तरह मुहर्रम का महीना भी खुदा की इबादत के लिए बहुत खास माना जाता है। इस्लामी कैलंडर यानी हिजरी संवत में मुहर्रम के महीने से ही साल की शुरुआत होती है। मुस्लिम धर्मावलंबी इस महीने की दस तारीख को हजरत मोहम्मद साहब के नवासे (हजरत फातिमा के बेटे) इमाम हुसैन और उनके साथ शहीद हुए 71 लोगों को कुर्बानी को याद करते हैं।
इमाम हुसैन अपने उसूलों के लिए शहीद हुए थे। मुहर्रम का आयोजन उस शहादत की भावना को जगाए रखने का एक माध्यम है। मुहर्रम नेकी और कुर्बानी का पैगाम देता है। इस्लाम धर्मावलंबी इस महीने में अल्लाह की इबादत में खुद को समर्पित करते हैं। इस महीने में कोई मनोरंजक कार्यक्रम और विवाह आदि भी मुस्लिम समाज में नहीं होते। मोहर्रम इस माह की दस तारीख को मनाया जाता है, क्योंकि यही दिन शहादत का है।
इस्लाम मानने वाले विभिन्न समुदायअलग-अलग तरीकों से इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हैं। कुछ समुदायताजियों के माध्यम से उन्हें याद करते हैं और इस दिन एक जुलूस के रूप में इकट्ठे हो कर कर्बला तक जाते हैं। कुछ समुदाय रात भर जाग कर नफ्ली नमाज पढ़ कर अपने दिलों को उनकी याद से रोशन करते हैं।
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
30 नवंबर 2011
मुहर्रम सीखाता है उसूलों पर कायम रहना
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)