क्या है मामला :
तांत्रिक पूछता है.अगे बोल, तू पुतरिया के छोड़बही की ना. सुनैना जवाब देती है. ना छोड़बऊ, उ हमरा लांघलक है. लात से मारलक है. पूजा न देलकई है. तांत्रिक सोटा से मारता है.बोलता है. छोड़ देही, उ पूजा देतउ, ना छोड़बही त एईजे चमड़ी खींच लेबुक।
ऐसे संवाद डीएम कार्यालय के नीचे बिल्कुल आम थे। कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर भूत, प्रेत आदि से छुटकारा दिलाने के लिए दसियों ओझा और तांत्रिक मौजूद थे। सभी के आगे भूतों से पीड़ित औरतें, बच्चे और पुरुष बैठे हुए थे। भगत के पास ही उसका सटका, चमोटी, सिक्कड़ और अक्षत रखा हुआ था।
बात-बात में सटका का प्रयोग करता था। हवा में लहराता हुआ सटका औरतों और बच्चों पर पूरी गति से पड़ता। चीत्कार हवा में गूंजती। फिर ढोलक की थाप पर पूरी गति से भगत गाने लगता ‘‘पियर-पियर धोतिया, रंगइले गजमोतिया, मनुष देवता देवा खेलन शिकार, मनुष देवता..’’ इसी तरह देर शाम तक लोगों के शरीर पर सोटों की बारिश होती रही। वहां तथाकथित भूत से पीड़ित व्यक्ति के परिजन हाथ बांधे खड़े रहे। तमाशबीनों की संख्या हजारों में रही।
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