वॉशिंगटन. अमेरिकी सरकार का संकट कई मोर्चों पर बढ़ रहा है। एक ओर, उसकी माली हालत सुधरने के आसार नहीं दिखाई दे रहे हैं तो दूसरी ओर, सेना में असंतोष चरम पर पहुंच रहा है। पूर्व सैनिकों ने सरकारी नीतियों के विरोध में खुल कर प्रदर्शन किया है। वहीं, एक रिपोर्ट के मुताबिक हर 80 मिनट में अमेरिकी सेना से जुड़ा एक शख्स खुदकुशी कर रहा है।
अमेरिका को अफगानिस्तान और इराक में जंग की कीमत अब चुकानी पड़ रही है। इन लड़ाइयों में अमेरिका को आर्थिक नुकसान तो हुआ ही, भारी तादाद में सैनिकों की जानें भी गई हैं। लेकिन ताजा मामला बेहद चौंकाने वाला है।
अमेरिका की ओर से दूसरे देशों में युद्ध में भाग ले चुके सैनिक सड़कों पर उतर गए हैं। वे 'वॉलस्ट्रीट पर कब्जा करो अभियान' के तहत चल रहे प्रदर्शनों में भाग ले रहे हैं। उन्हें काबू करने के लिए पुलिस को काफी मशक्कत करनी पड़ रही है (रिलेटेड आर्टिकल में वीडियो देखें)। इसके अलावा, अमेरिका के पूर्व व मौजूदा सैनिकों को लेकर जारी एक ताजा रिपोर्ट से भी ओबामा प्रशासन की नींद खराब करने वाली है।
बुधवार को जारी इस रिपोर्ट के मुताबिक हर 80 मिनट में अमेरिकी सेना का एक सिपाही खुदकुशी कर लेता है। सेंटर फॉर न्यू अमेरिकन सिक्योरिटी सुइसाइड की रिपोर्ट के मुताबिक इराक और अफगानिस्तान में युद्ध के बाद अमेरिकी सैनिकों के आत्महत्या के मामले बढ़े हैं। इन लड़ाइयों में शामिल रहे 1868 जांबाजों ने सिर्फ एक साल (2009) में ही खुदकुशी की कोशिश की। ये आंकड़े अमेरिकी प्रशासन की आंखें खोलने के लिए काफी हैं जो अपनी ताकत के बूत दुनिया का नेता बनने का दंभ भरता है। चिंता की बात यह भी है कि यदि वक्त रहते अमेरिका सतर्क नहीं हुआ तो उसके पास सैनिकों का टोटा पड़ सकता है।
अमेरिकी रक्षा मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार 4 अक्तूबर तक अफगानिस्तान और इराक के दो युद्ध क्षेत्रों में कुल 6166 अमेरिकी सैनिक मारे गए और 46 हजार से ज्यादा जख्मी हुए। इनमें इराक युद्ध में 4481 जबकि अफगान युद्ध में 1685 अमेरिकी जांबाज मारे गए हैं। राष्ट्रपति बराक ओबामा अब इराक से सेना हटाए जाने पर काम कर रहे हैं, लेकिन अमेरिकी रक्षा विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि इराक में तैनात 4000 सैनिकों को इस साल के अंत तक कुवैत भेजा जा रहा है। यानी, ये सैनिक इराक में वर्षों की तैनाती के बाद भी घर नहीं लौट सकेंगे। ओबामा ने कुवैत में पहले से ही करीब 23 हजार अमेरिकी सैनिक तैनात हैं।
सैनिकों की खुदकुशी के मामले सामने आने से प्रशासन को सेना के लिए मानसिक-स्वास्थ्य से जुड़े और कार्यक्रम शुरू करने और अपनी जान लेने वाले सैनिकों की तादाद के रिकार्ड रखने के लिए सही सिस्टम बनाने पर जोर देने की जरूरत है। इस रिपोर्ट को तैयार करने वाले डॉ. मार्ग्रेट सी हैरल और नैंसी बर्ग्लास का मानना है कि अमेरिका अपने जांबाजों की खुदकुशी के खिलाफ जंग हार रहा है। सैनिकों के तैनाती से लौटने के बाद यह खतरा और बढ़ेगा।’
तैनाती से लौटने या सेना की नौकरी छोड़ने के बाद घर आने पर जांबाज खुद को बेहद अकेला महसूस करते हैं और मानसिक तनाव से ग्रस्त हो जाते हैं। अमेरिका में बेरोजगारी की दर भी 12 फीसदी को पार कर गई है ऐसे में इन सैनिकों को रोजगार की कोई किरण नहीं दिखाई दे रही है। इन्हें लगता है कि अब उनका जीवन किसी काम के नहीं रहा और खुदकुशी का फैसला कर लेते हैं।
पूर्व सैनिकों का प्रदर्शन
‘वॉल स्ट्रीट पर कब्जा करो’ मुहिम में हजारों अमेरिकी सैनिक भी हिस्सा ले रहे हैं। इनका कहना है कि अमेरिका के कॉरपोरेट घरानों ने इराक में खूब पैसा बनाया जबकि इराक जंग में हिस्सा लेने वाले अमेरिकी सैनिक खाली हाथ घर लौट रहे हैं और उनकी माली हालत इतनी खराब है कि जीवन-यापन करना दूभर हो गया है। सेना की नौकरी छोड़ने वाले जांबाजों की बेरोजगारी दर राष्ट्रीय औसत को भी पार कर गई है और इसकी हालत बदतर होने की आशंका है।
इराक युद्ध में हिस्सा ले चुके पूर्व सैनिक जोसफ कार्टर ने बुधवार को इस अभियान के केंद्र जुकोती पार्क तक मार्च किया और वहां मौजूद प्रदर्शनकारियों को संबोधित किया। उनके साथ करीब 100 जांबाज भी सेना की वर्दी में मार्च करते दिखे। ये जांबाज बेहद गुस्से में दिख रहे थे। कार्टर ने कहा, ‘लंबे समय से हमारी आवाज को दबाया जा रहा है और अनसुना किया जा रहा है जबकि वॉल स्ट्रीट, बैंकों और कंपनियों की बात सुनी जा रही है।’ हैरानी की बात है कि ऐसे ही प्रदर्शन के दौरान एक पूर्व अमेरिकी सैनिक पर पुलिस वालों ने हमला कर दिया (वीडियो देखने के लिए रिलेटेड लिंक पर क्लिक करें)। अमेरिकी नौसेना में काम कर चुके और इराक युद्ध का तजुर्बा रखने वाले स्कॉट ऑलसन के सिर में ऐसे ही प्रदर्शन के दौरान तब चोट लगी जब पुलिस ने आंसू गैस के कनस्तर प्रदर्शनकारियों पर मारे।
अभी नहीं लौटेगी खुशी अमेरिका के केंद्रीय बैंक के मुताबिक देश में बेरोजगारी दर 2014 तक 6.8 फीसदी से नीचे नहीं आएगी। अमेरिकी मध्य वर्ग और वहां के आम आदमी को महंगाई के संकट से भी जूझना पड़ेगा। फेडरल रिजर्व ने 2012 के लिए विकास दर का अनुमान भी घटा कर 2.5 से 2.9 फीसदी कर दिया है
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