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27 नवंबर 2011

विवाह पंचमी 29 को, राम-सीता का विवाह हुआ था


मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को विवाह पचंमी का पर्व मनाया जाता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार इस तिथि को भगवान राम ने जनकनंदिनी सीता से विवाह किया था। इस बार यह पर्व 29 नवंबर, मंगलवार को है। इस दिन प्रमुख राम मंदिरों में विशेष उत्सव मनाया जाता है। तुलसीदासजी ने राम-सीता विवाह का वर्णन बड़ी ही सुंदरता से श्रीरामचरितमानस में किया है। उसके अनुसार-

सीता के स्वयंवर में आए सभी राजा-महाराजा जब भगवान शिव का धनुष नहीं उठा सके तब ऋषि विश्वामित्र ने राम से कहा- हे राम। उठो, शिवजी का धनुष तोड़ो और जनक का संताप मिटाओ। गुरु के वचन सुनकर श्रीराम उठे और धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने के लिए बढ़े। यह दृश्य देखकर सीता के मन में उल्लास छा गया। प्रभु की ओर देखकर सीताजी ने निश्चय किया कि यह शरीर इन्हीं का होकर रहेगा या रहेगा ही नहीं।

सीता के मन की बात श्रीराम जान गए और उन्होंने देखते ही देखते भगवान शिव का महान धनुष उठाया। इसके बाद उस पर प्रत्यंचा चढ़ाते व खींचते किसी ने नहीं देखा और एक भयंकर ध्वनि के साथ धनुष टूट गया। यह देखकर सीता के मन को संतोष हुआ। सीताजी बालहंसिनी की चाल से श्रीराम के निकट आईं। सखियों के बीच में सीताजी ऐसी शोभित हो रही हैं जैसे बहुत सी छबियों के बीच में महाछबि हो। तब एक सखी ने सीता से जयमाला पहनाने को कहा। उस समय उनके हाथ ऐसे सुशोभित हो रहे हैं मानो डंडियों सहित दो कमल चंद्रमा को डरते हुए जयमाला दे रहे हों।

तब सीताजी ने श्रीराम के गले में जयमाला पहना दी। यह दृश्य देखकर देवता फूल बरसाने लगे। नगर और आकाश में बाजे बजने लगे। श्रीसीता-राम की जोड़ी इस प्रकार सुशोभित हो रही है मानो सुंदरता और श्रृंगाररस एकत्र हो गए हों। पृथ्वी, पाताल और स्वर्ग में यश फैल गया कि श्रीराम ने धनुष तोड़ दिया और सीताजी का वरण कर लिया।

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