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27 नवंबर 2011

मंगल के बारे में अधिक जानकारियां जुटाने रवाना हुआ क्यूरियोसिटी

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केप केनेवरल. मंगल ग्रह के रहस्यों और उसके अतीत को गहराई से खंगालने के इरादे से अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी (नासा)ने परमाणु चालित अपने क्यूरियोसिटी रोवर को 35.4 करोड़ मील की मंगल ग्रह की यात्ना पर शनिवार को रवाना किया।
नासा की ओर से जारी बयान में बताया गया कि भीमकाय क्यूरियोसिटी रोवरअगले वर्ष की गर्मियों में मंगल ग्रह पर पहुंचेगा।
क्यूरियोसिटी दस फ्टु लंबा एवं नौ फुट चौड़ा है और इसकी ऊंचाई सात फुट है।इस रोवर का वजन एक टन है। क्यूरियोसिटी का प्रक्षेपण देखने के लिये यहां स्थित कैनेडी अंतरिक्ष केन्द्र में बड़ी संख्या में लोग जमा हुए थे।
क्यूरियोसिटी को ऐसे समय पर मंगल के लिए रवाना किया गया है जब कुछ सप्ताह पहले ही मंगल के चंद्रमा फोबोस पर जाने वाला एक रूसी अंतरिक्ष यान पृथ्वी की कक्षा में ही कहीं खो गया। क्यूरियोसिटी को कभी भी मौसम की वजह से ऊर्जा समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ेगा क्योंकि इसे हमेशा 10.6 पाउंड वजन के परमाणु ईंधन (प्लूटोनियम) से ऊर्जा मिलती रहेगी।
क्यूरियोसिटी में कुल मिलाकर 10 वैज्ञानिक उपकरण लगाए गए हैं। इस छह पहियों वाले रोवर पर एक विशेष रोबोटिक बांह भी लगाई गई है जो अत्याधुनिक वैज्ञानिक उपकरणों से लैस है। इस पर लगी ड्रिल मशीन की मदद से यह मंगल की कठोर सतह के भी अंदर झांकने में सक्षम है। इसके अलावा इसे लेजर किरण से भी सुसज्जित किया गया है जो वैज्ञानिक अध्ययन के लिए चट्टानों को गलाकर उनका अध्ययन करने का काम करेगी।
इस मिशन का लक्ष्य मंगल ग्रह पर जीवन के विभिन्न आयामों से जुड़ी जानकारियां जुटाने का है। क्यूरियोसिटी पता लगाने की कोशिश करेगा कि क्या मंगल पर किसी समय में एक कोशिकीय जीवों के लिए अनुकूल पर्यावरर्णीय परिस्थितियां रही थीं अथवा नहीं। इसके अलावा यह रोवर मौजूदा समय में मंगल पर जीवन के लिए पर्याप्त अवसरों को तलाशने का भी प्रयत्न करेगा।
यह पहली बार है जब मंगल ग्रह के अध्ययन के लिए इतना अत्याधुनिक मिशन भेजा जा रहा हो। क्यूरियोसिटी मिशन की कुल लागत 2.5 अरब डालर है। इस रोवर को मंगल के मौसम की भविष्यवाणियां करने का भी काम सौंपा गया है१ इसमें एक विशेष साफ्टवेयर लगाया गया है जो रोजाना के स्तर पर लाल ग्रह के तापमान् हवाओं की गति और आद्रता के स्तर को दर्ज करने का काम करेगा।
इसके अलावा क्यूरियोसिटी मंगल के विकीरण के स्तर को भी मापने का काम करेगा। क्यूरियोसिटी मंगल की उबड खाबड सतह पर लैं¨डग करने के लिए भी जेट प्रक्षेपण और टेथर केबलों के सिद्धांत का इस्तेमाल करेगा१ रोवर की लैंडिंग के लिए पहले से ही 'गेल क्रेटर' की जगह को चुना जा चुका है। एक बार लैंडिंग स्थल की सीध में पहुंचने के बाद यह टेथर केबल जमीन की ओर छोड़ेगा जो मंगल की कठोर सतह में जाकर अटक जाएगी। इसके बाद रोवर धीरे-धीरे जेट बूस्टरों के प्रक्षेपणों की मदद से आसानी से सतह पर उतर जाएगी।
लैंडिग का यह तरीका इस मायने में भी खास है कि भविष्य में मंगल पर जाने वाली मानवयुक्त उड़ानों में इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। इससे पहले वर्ष 2004 में मंगल के लिए रवाना किए गए स्पिरिट और आपरचुनिटी रोवर आकार में बेहद छोटे और वजन में हल्के थे जिसकी वजह से उन्हें एयर बैग के कवच की मदद से सतह पर उतारा गया था लेकिन इसकी वजह से वे लैं¨डग के अपने मूल स्थान से कुछ दूर उतर पाए थे।
उल्लेखनीय है कि लाल ग्रह के नाम से प्रसिद्ध मंगल सदियों से मानव की उत्सुकता के केन्द्र में रहा है। ज्योतिष में इसे धरती का पुत्न कहा गया है और मंगल के बारे में अधिक जानकारी नहीं होने से पुरातन मानव ने इसे अनिष्टकारी भी माना है।
सोवियत संघ ने मंगल पर 60 के दशक में पहली बार खोजी अभियान भेजे। इसके बाद तो रूस और अमेरिका में मंगल के बारे में अधिक से अधिक जानकारियां जुटाने के लिए एक होड़ शुरु हो गई।
हालांकि मंगल के बारे में अधिक जानकारी इकट्ठा करने में बाजी अमेरिका ने मार ली लेकिन रूस भी अधिक पीछे नहीं है और उसने हाल में ही 'मार्स 500' नामक एक प्रयोग पूरा किया है जिसका लक्ष्य मंगल पर जाने वाली भविष्य की मानवयुक्त उड़ानों में अंतरिक्ष यात्नियों की मनोस्थिति का अध्ययन करना था।

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