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25 अक्टूबर 2011

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मेरठ। कहते हैं कि दुनिया बहुत खूबसूरत है और जो इसे अपनी आंखो से न देख सके उसकी जिंदगी अंधकारमय है, लेकिन उत्तर प्रदेश का एक शख्स नेत्रहीनों की अंधेरी दुनिया में रोशनी बिखेर रहा है। मेरठ के ब्रह्मपुरी इलाके के रहने वाले 56 वर्षीय राजेंद्र गुप्ता नेत्रदान की मुहिम चलाकर दुनिया को न देख पाने वाले लोगों के जीवन में उजाला भरने का जरिया बन रहे हैं। वह पिछले पांच सालों से लोगों को नेत्रदान के लिए जागरूक कर रहे हैं और अभी तक करीब 50 मृतकों की आंखें दान करा चुके हैं।

गुप्ता ने बताया, "नेत्रहीन होना एक बहुत बड़ा अभिशाप है। दुर्भाग्यवश जो लोग इस अभिशाप से ग्रसित होकर अंधकार में जिंदगी जीने को मजबूर होते हैं, मैंने उनकी जिंदगी को रोशन करना ही अपना लक्ष्य बना लिया है।"

जिला अदालत में वकालत करने वाले गुप्ता ने कहा, "जब मुझे अपने शहर या आस-पास किसी शहर में किसी की मृत्यु होने का समाचार मिलता है तो मैं उसके घर जाता हूं और परिजनों से मृतक की आंखें दान करने की अपील करता हूं। उनके तैयार हो जाने पर मेरठ मेडिकल कॉलेज के नेत्र विभाग के चिकित्सकों को बुलाकर नेत्रदान की प्रक्रिया पूरी की जाती है।"

गुप्ता बताते हैं कि कई बार मृतक के घर जाकर उसके परिजनों को उसकी आंखें दान करने के लिए मनाना काफी मुश्किल भरा काम होता है। कभी-कभी तो लोग नाराजगी प्रकट करते हैं। उन्होंने कहा कि मृतक से जुड़ी भावनाओं की वजह से वे ऐसा बर्ताव करते हैं।

गुप्ता सुबह और शाम को हर रोज शहर के अलग-अलग इलाकों में जाकर लोगों को नेत्रदान के लिए जागरूक करते हैं। वह कहते हैं कि सुबह की सैर के समय और शाम को दफ्तर से लौटने के बाद वह हर रोज शहर के अलग-अलग पार्को और चौराहों पर लोगों को नेत्रदान के लिए प्रेरित करते हैं।

गुप्ता अपने साथ बकायदा फॉर्म लेकर चलते हैं। लोगों को समझ्झाते हैं कि मरने के बाद अगर हमारी आंखें किसी नेत्रहीन को मिल जाएंगी तो उसकी जिंदगी रोशन हो जाएगी। जो शख्स मरणोपरांत अपनी आंखे दान करने के लिए तैयार हो जाता है गुप्ता उससे नेत्रदान के लिए फॉर्म भरने की औपचारिकता पूरी करा लेते हैं ताकि जब कभी उस शख्स की मौत हो तो उसका नेत्रदान हो सके।

खुद नेत्रदान के लिए फॉर्म भर चुके गुप्ता ने इसके लिए लोगों को तैयार करने की अपनी मुहीम की शुरुआत अपने घर से की। अब तक वह करीब 100 लोगों से मरणोपरांत नेत्रदान के लिए फॉर्म भरवा चुके हैं।

गुप्ता कहते हैं कि सबसे पहले उन्होंने खुद का और फिर अपनी पत्नी व दो बेटों का नेत्रदान के लिए फॉर्म भरवाया ताकी जब वह अन्य लोगों से इस सम्बंध में बात करें तो वे भी नेत्रदान के विषय में गम्भीरता से सोचें। यह देखकर खुशी होती है कि नेत्रदान के लिए तैयार होने वालों में युवाओं की तादाद ज्यादा रहती है। उनमें नेत्रदान के प्रति जागरूकता बढ़ रही है।

गुप्ता के मुताबिक 2006 में शहर में एक नेत्रहीन व्यक्ति की सड़क पार करते समय ट्रक से कुचलकर हुई मौत को अपनी आंखो से देखने के बाद उन्होंने नेत्रदान की मुहीम को शुरू कर ऐसे लोगों की जिंदगी में उजाला भरने का निर्णय लिया।

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