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19 अक्तूबर 2011

राजघराने के नए उत्तराधिकारी ने मांगा काम-काज का 'राज'



जयपुर.जयपुर के पूर्व महाराजा स्व. भवानी सिंह के गोद लिए पुत्र सवाई पद्मनाभ सिंह ने अपने पक्ष में उत्तराधिकार प्रमाण-पत्र (प्रोबेट व लैटर ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन) जारी कराने के लिए निचली अदालत में प्रार्थना पत्र दायर किया है

इस प्रार्थना-पत्र को मंजूर किया जाता है तो पद्मनाभ को स्व.भवानी सिंह से जुड़े सभी कानूनी अधिकार मिल जाएंगे। अदालत ने कानूनी अधिकार को हस्तांतरित करने के प्रार्थना-पत्र पर 21 नवंबर तक आपत्ति मांगी है।

स्व. भवानी सिंह के वकील रहे रमेश शर्मा ने यह प्रार्थना पत्र कोर्ट में पेश किया है। यदि कोर्ट इस पत्र को मंजूर कर कानूनी अधिकार देती है तो उसके बाद से भवानी सिंह के नाम से जुड़ी सभी अदालती कार्रवाइयां पद्मनाभ सिंह के नाम से लड़ी जाएंगी।

इसके अलावा बैंकों के खातों का लेन-देन व अन्य कार्य भी पद्मनाभ के नाम से होंगे। पद्मनाभ इस मंजूरी के बाद उन सभी मामलों में भी भवानी सिंह के कानूनी उत्तराधिकारी होंगे, जो राजपरिवार की संपूर्ण संपत्ति से जुड़े हुए हैं।

जयपुर राजपरिवार में पुत्रों की पैदाइश नहीं होने के कारण आमतौर पर गोद लेने की परंपरा ही रही। जयपुर राजपरिवार में भवानी सिंह भी तीन पीढ़ियों बाद पुत्र के रूप में जन्मे। इससे पहले सवाई रामसिंह के पुत्र के रूप में सवाई माधोसिंह को ईसरदा से गोद लिया गया।

इसके बाद माधोसिंह के भी जब पुत्र नहीं हुआ तो उन्होंने मानसिंह द्वितीय को ईसरदा से गोद लिया। असल में मानसिंह द्वितीय का असल नाम मोरमुकुट सिंह था, जो उनके पिता ईसरदा के ठाकुर सोवाई सिंह ने रखा था। गोद लेने के बाद वे सवाई मानसिंह द्वितीय के जाने गए।

इसके बाद मानसिंह द्वितीय के रानी मरुधर कंवर से भवानी सिंह का यानी किसी पुत्र का तीन पीढ़ी बाद जन्म हुआ। इसके बाद भवानी सिंह के भी पुत्र नहीं हुआ तो उन्होंने बेटी दीया कुमारी व दामाद नरेंद्र सिंह के पुत्र पद्मनाभ को गोद लिया।

ठिकानेदारों में गोद जाने के लिए होता था विवाद

जयपुर के पुराने लोगों का कहना है कि जयपुर राजपरिवार में पुत्रों के जन्म नहीं होने से गोद लेने की परंपरा ही रही है। ऐसे मे ईसरदा, चौमूं, सामोद सहित विभिन्न ठिकानों से पुत्र गोद लिए जाते रहे। ऐसे में इन ठिकानों के ठिकानेदारों में होड़ चलती थी कि जयपुर राजपरिवार में कौन गोद जाएगा। ठिकानेदार इस बात पर विवाद कर बैठते थे कि उनका पुत्र ही जयपुर में गोद जाएगा।

संपत्ति की मौजूदा स्थित

सुप्रीम कोर्ट ने राजपरिवार की कई संपत्तियों पर 1992 से रिसीवर नियुक्त कर रखा है। तब से अब तक इन पर कोई फैसला नहीं हो पाया है। भवानी सिंह के पिता सवाई मानसिंह द्वितीय की जो भी संपत्ति थी, मानसिंह के बाद भवानी सिंह उसके उत्तराधिकारी बने।

तब से 1986 तक सबकुछ ठीक-ठाक रहा, लेकिन उसके बाद संपूर्ण संपत्ति के बंटवारे को लेकर पूर्व राजमाता स्व. गायत्री देवी, भवानी सिंह के भाई जयसिंह, पृथ्वी सिंह और जगतसिंह एक ओर आ गए और उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट में संपत्ति बंटवारे का दावा कर दिया। इसके बाद से अब तक राजपरिवार की संपत्तियों पर या तो कोर्ट में केस चल रहे हैं अथवा उनमें से कुछ पर रिसीवर नियुक्त है।

इन संपत्तियों पर रिसीवर

राजमहल पैलेस और गांधी गृह निर्माण सहकारी समिति को लीज पर दी गई जमीन, रामबाग स्टाफ क्वार्टर्स, रामबाग के सामने स्थित बंगला (एसएमएस स्कूल), बंगला नंबर-37 (सेंट्रल पार्क में लक्ष्मीविलास के पास, बंगला नंबर-36 (लक्ष्मीविलास होटल), तख्तेशाही (मोतीडूंगरी महल), रामबाग स्टाफ क्वार्टर्स, अशोक क्लब, सेंट्रल पार्क बनने से पहले निर्मित राजघराने की बिल्डिंग्स, सिविल लाइंस का बंगला नंबर-6, बंगला नंबर-7, तिलक मार्ग पर एच एच फ्लैट्स, एसएमएस इन्वेस्टमेंट कॉरपोरेशन की जमीन, अमरूदों का बाग ए और बी, जमवारामगढ़ में 521 बीघा जमीन, दिल्ली स्थित जयपुर हाउस, माउंट आबू स्थित जयपुर हाउस और सवाईमाधोपुर का विमान भवन।

राजपरिवार के अधीन

खातीपुरा हाउस, प्रिंसेज क्लब, प्रिंसेज हाउस, नाटानी का बाग, जयपुर क्लब (पूर्व महाराज कुमार पृथ्वी सिंह के लिए), रामगढ़ शूटिंग लॉज, आरामगाह, जमवारामगढ़ झील के मध्य शूटिंग लॉज, हवा ओधी, बंजर जमीन 3800 एकड़, लालवास बीड़ की 1900 एकड़ जमीन, सवाईमाधोपुर शूटिंग लॉज, दुर्गापुरा फॉर्म, लालनिवास, हथरोई फोर्ट, आंबेर माताजी, गोविंददेव जी मंदिर व गलता मंदिर से जुड़ी संपत्तियां, जयपुर हाउस, न्यू दिल्ली हाउस, इंग्लैड में सेंट हिल एस्टेट, फार्म, फ्लैट, शहर में दर्जनों हवेलियां और अरबों की चल संपत्ति।

पूर्व महाराजा की मिल्कियत, बेच नहीं सकते

सिटी पैलेस के भीतर दीवान-ए-आम, सर्वतोभद्र, चंद्र महल, जयनिवास उद्यान, रामबाग पैलेस और आउट हाउसेस, जैन टैंपल, सवाई मान गार्ड मैस, भगवानदास बैरिकेड्स के मध्य खाली पड़ी भूमि, तख्तेशाही, जयगढ़।

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