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12 अक्तूबर 2011

लैब में बनेंगे फिर बरसेंगे भी बादल

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रोडम नरसिंहा के नेतृत्व में बेंगलुरु में वैज्ञानिकों के एक दल नें लैब में बादल बनाने में सफलता हासिल की है। उन्होंने एक बेंच नुमा उपकरण से अलग-अलग तरह के बादल बनाएं। इस काम को अंजाम देने के लिए विभिन्न रसायनों का अलग-अलग तापमान और घनत्व पर मेल कराया गया। इस काम को जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के वैज्ञानिकों ने मिल कर अंजाम दिया।

कैसा है उपकरण

दो मीटर ऊंचा यह उपकरण वास्तव में एक वॉटर टैंक है। इसकी तली में एक छेद है, जिससे रसायन अंदर इंजेक्ट किए जाते हैं। इस टैंक में हीटिंग डिवाइस लगाए गए हैं। ये कंडेंसेशन और फ्रीजिंग के काम में मदद करते हैं। इनके जरिए ही प्राकृतिक बादलों में पाया जाने वाला वातावरण तैयार किया जाता है। इस डिवाइस से तैयार बादल से बादलों के बारे में और जानकारी करने में मदद मिलेगी। प्राकृतिक रूप से क्युम्लस बादल वातावरण में तापमान के लिए जिम्मेदार होता है। यही वह बादल है जो वैश्विक तापमान को प्रभावित कर रहा है।

अकेला है प्रयोग

बेंगलुरु की प्रयोगशाला में बनाए गए बादल दुनिया में अपनी तरह का पहला प्रयास है। अन्य कहीं भी वाष्पीकरण और फिर उसके कंडेंसेशन के जरिए लैब में बादल नहीं तैयार किए जा सके हैं।

मुश्किल है बादलों की स्टडी

प्राकृतिक वातावरण में मौजूद बादलों की स्टडी कई कारणों से मुश्किल मानी जाती है। सर्वप्रथम एक बादल की उम्र बेहद कम होती है। 5 या 10 मिनट से लेकर घंटे भर ही बादल रह पाता है। दूसरे इसकी स्टडी के प्रयोग बेहद महंगे होते हैं। इस काम को और चुनौतीपूर्ण बनाने का काम यह तथ्य करता है कि दो बादल एक जैसे नहीं होते। सेटेलाइट के जरिए भी बादलों की बाहरी जानकारी दी जाती है। उनके अंदर की नमी, तापमान का आकलन मुश्किल होता है।

क्युम्लस ही क्यों

बादल खासकर क्युम्लस कई आकार-प्रकार के होते हैं। ये घने और गुंबदनुमा हो सकते हैं। इनकी ऊंचाई 15 किलोमीटर तक होती है। यही बादल भारत और उसके आसपास के क्षेत्रों में पाए जाते हैं। जमीन और सागर की सतह से वाष्प ऊपर वातावरण तक पहुंच क्युम्लस बादल बनते हैं। सरल शब्दों में कहें तो ये ही बरसात के जरिए ठंडा-गर्म मौसम बनाने के लिए जिम्मेदार हैं।

क्या होगा फायदा

अब लैब में तैयार बादलों का अध्ययन कर मानसून की सटीक भविष्यवाणी की जा सकेगी। इसके अलावा बादलों की प्रकृति और व्यवहार का अध्ययन कर आने वाले समय में कृत्रिम बारिश कराई जा सकेगी।

दशकों से जारी थे प्रयास

बादलों पर प्रयोग पिछले दो दशकों से जारी थे। लेकिन पहली बार इन्हें प्रयोगशाला में बनाने में सफलता मिली है। इसके लिए मूल सिद्धांत तो पहले वाले ही रहे, लेकिन सटीक आकलन व गणना करने वाले अत्याधुनिक उपकरणों ने इस काम को अंजाम देने में बड़ी भूमिका निभाई। इन उपकरणों की मदद से न सिर्फ बादल तैयार किए गए, बल्कि उन्हें प्राकृतिक वातावरण की तर्ज पर गति और तापमान भी दिया गया।

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