सरकार ने अदालत के 2007 के आदेश का पालन ही नहीं किया और 27 दिन तक अपना हित साधने का प्रयास करती रही जिससे आमजन को परेशान होना पड़ा। सरकार एक वर्ग को ऊपर चढ़ाती है तो दूसरे को गिराती है, जिससे ऐसी समस्या पैदा होती है।
न्यायाधीश महेश चन्द्र शर्मा ने यह टिप्पणी शुक्रवार को तत्कालीन विशेष गृह सचिव की अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए की। न्यायाधीश ने राज्य के अतिरिक्त महाधिवक्ता एन.ए. नकवी को निर्देश दिया कि जहां आंदोलन हुआ वहां के तत्कालीन जिला कलेक्टर व एसपी का विस्तृत शपथ पत्र पेश करें। मामले की सुनवाई 19 अक्टूबर को होगी।
सुनवाई के दौरान गुर्जर नेता कर्नल किरोड़ी बैसला अदालत में हाजिर हुए तो न्यायाधीश ने अतिरिक्त महाधिवक्ता से पूछा कि जब गुर्जर पटरी पर बैठे रहे, तो उन्होंने कानून-व्यवस्था बनाए रखने व समुदाय की मांग के लिए क्या किया। सरकार ने आदेश का पालन करने के बजाय अवमानना याचिका दायर की है, जो सरकार के खिलाफ ही है।
ये थे निर्देश
अधिवक्ता आरआर बैसला ने बताया कि हाई कोर्ट ने 10 सितंबर 07 को सरकार को निर्देश दिया था कि वह आंदोलन के दौरान नागरिकों के मूलभूत अधिकारों के संरक्षण, कानून-व्यवस्था बनाए रखने और सार्वजनिक व निजी संपत्ति की क्षति रोकने की व्यवस्था करे।
साथ ही वह गुर्जर समुदाय के दबाव में केन्द्र सरकार से इन्हें जनजाति में शामिल करने के संबंध में कोई सिफारिश न करे, लेकिन 2008 में फिर गुर्जर आंदोलन के दौरान सरकार ने इन आदेशों का पालन नहीं करके अदालत की अवमानना की है। आंदोलन के दौरान की स्थिति बताते हुए न्यायाधीश ने कहा कि उस समय सुप्रीम कोर्ट के कुछ न्यायाधीश आगरा से जयपुर आना चाहते थे, लेकिन प्रोटोकॉल ऑफिसर ने कहा कि वे इस रूट से न आएं। इससे पता चलता है कि यहां क्या माहौल था
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