कार्तिक कृष्ण अमावस्या (दीपावली, इस बार 26 अक्टूबर, बुधवार) को भगवती श्रीमहालक्ष्मी एवं भगवान गणेश की नूतन (नई) प्रतिमाओं का प्रतिष्ठापूर्वक विशेष पूजन किया जाता है। दीपावली पर देवी महालक्ष्मी तथा भगवान श्रीगणेश को प्रसन्न करने के लिए नीचे लिखी विधि के अनुसार पूजन करें-
पूजन के लिए किसी चौकी अथवा कपड़े के पवित्र आसन पर गणेशजी के दाहिने भाग में माता महालक्ष्मी की मूर्ति को स्थापित करें। पूजन के दिन घर को स्वच्छ कर पूजा-स्थान को भी पवित्र कर लें एवं स्वयं भी पवित्र होकर श्रद्धा-भक्तिपूर्वक सायंकाल महालक्ष्मी व भगवान श्रीगणेश का पूजन करें। श्रीमहालक्ष्मीजी की मूर्ति के पास ही पवित्र पात्र में केसरयुक्त चंदन से अष्टदल कमल बनाकर उस पर द्रव्य-लक्ष्मी (रुपयों) को भी स्थापित करेंतथा एक साथ ही दोनों की पूजा करें। सर्वप्रथम पूर्वाभिमुख अथवा उत्तराभिमुख हो आचमन, पवित्री धारण, मार्जन-प्राणायाम कर अपने ऊपर तथा पूजा-सामग्री पर निम्न मंत्र पढ़कर जल छिड़कें-
ऊँ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा।
य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि:।।
उसके बाद जल-अक्षत लेकर पूजन का संकल्प करें-
संकल्प- ऊँ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: अद्य मासोत्तमे मासे कार्तिकमासे कृष्णपक्षे पुण्यायाममावास्यायां तिथौ.......... वासरे............गोत्रोत्पन्न: (गोत्र का उच्चारण करें)/ गुप्तोहंश्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलावाप्तिकामनया ज्ञाताज्ञातकायिकवाचिकमानसिक सकलपापनिवृत्तिपूर्वकं स्थिरलक्ष्मीप्राप्तये श्रीमहालक्ष्मीप्रीत्यर्थं महालक्ष्मीपूजनं कुबेरादीनां च पूजनं करिष्ये। तदड्त्वेन गौरीगणपत्यादिपूजनं च करिष्ये।
-ऐसा कहकर संकल्प का जल छोड़ दें। पूजन से पूर्व नूतन प्रतिमा की निम्न रीति से प्राण-प्रतिष्ठा करें-
प्रतिष्ठा- बाएं हाथ में चावल लेकर निम्नलिखित मंत्रों को पढ़ते हुए दाहिने हाथ से उन चावलों को प्रतिमा पर छोड़ते जाएं-
ऊँ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञ समिमं दधातु। विश्वे देवास इह मादयन्तामोम्प्रतिष्ठ।।
ऊँ अस्यै प्राणा: प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणा: क्षरन्तु च।
अस्यै देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्चन।।
सर्वप्रथम भगवान गणेश का पूजन करें। इसके बाद कलश पूजन तथा षोडशमातृ का (सोलह देवियों का) पूजन करें। तत्पश्चात प्रधान पूजा में मंत्रों द्वारा भगवती महालक्ष्मी का षोडशोपचार पूजन करें।
ऊँ महालक्ष्म्यै नम:- इस नाम मंत्र से भी उपचारों द्वारा पूजा की जा सकती है।
प्रार्थना- विधिपूर्वक श्रीमहालक्ष्मी का पूजन करने के बाद हाथ जोड़कर प्रार्थना करें-
सुरासुरेंद्रादिकिरीटमौक्तिकै-
र्युक्तं सदा यक्तव पादपकंजम्।
परावरं पातु वरं सुमंगल
नमामि भक्त्याखिलकामसिद्धये।।
भवानि त्वं महालक्ष्मी: सर्वकामप्रदायिनी।।
सुपूजिता प्रसन्ना स्यान्महालक्ष्मि नमोस्तु ते।।
नमस्ते सर्वदेवानां वरदासि हरिप्रिये।
या गतिस्त्वत्प्रपन्नानां सा मे भूयात् त्वदर्चनात्।।
ऊँ महालक्ष्म्यै नम:, प्रार्थनापूर्वकं समस्कारान् समर्पयामि।
प्रार्थना करते हुए नमस्कार करें।
समर्पण- पूजन के अंत में कृतोनानेन पूजनेन भगवती महालक्ष्मीदेवी प्रीयताम्, न मम।
- यह वाक्य उच्चारण कर समस्त पूजन कर्म भगवती महालक्ष्मी को समर्पित करें तथा जल गिराएं।
दीपावली पूजन के शुभ मुहूर्त
दीपावली पूजन सदैव स्थिर लग्न में ही किया जाना चाहिए। दीपावली की रात्रि को स्थिर लग्न इस प्रकार है-
- दोपहर 02 बजकर 33 मिनट से 04 बजकर 04 मिनिट तक (कुंभ लग्न में)
- शाम 07 बजकर 08 मिनट से 9 बजकर 04 मिनट तक (वृषभ लग्न में)
- अद्र्धरात्रि 01 बजकर 36 मिनट से 03 बजकर 53 मिनट तक (सिंह लग्न में)
- प्रदोष काल- शाम 05 बजकर 30 मिनिट से 07 बजकर 07 मिनट तक प्रदोष काल में भी लक्ष्मी पूजन शुभ रहेगा।
- इसके अलावा रात 07 बजकर 40 मिनिट से 12 बजकर 24 मिनट तक शुभ, अमृत, चल, चौघडिय़ां व शुक्र, बुध, चंद्र की होरा में लक्ष्मी पूजन शुभ रहेगा।
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
23 अक्टूबर 2011
दीपावली: इस शुभ मुहूर्त में व इस विधि से करें महालक्ष्मी पूजन
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