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15 अक्तूबर 2011

गधे पंजीरी कहा रहे हैं जनाब ...शायर और कवि लिख कर लाते हैं और फिर पढ़कर बोलते हैं

दोस्तों कोटा में इन दिनों मेला दशहरा चल रहा है यहाँ इस मोके मर सांस्क्रतिक और साहित्यिक कार्यक्रम भी होते है ..होते क्या है कभी हुआ करते थे अब तो बस रस्म निभाई जाती है जो नहीं जानते गजल क्या है उसे तो मुशायरे की जम्मेदारी दी जाती है और जो नहीं जानते कविता क्या है उसे कविसम्मेलन की ज़िम्मेदारी दी जाती है खेर यह हालात राजनितिक हैं के गधे पंजीरी कहा रहे हैं और काबिल लोग बेठे तमाशबीन बने हैं अब एक बात देख लीजिये इन हालातों से कोटा मेला दशहरा एक मजाक बन गया है एक राष्ट्रिय मेला दशहरा गली मोहल्लों और चोपालों में सिमटता जा रहा है ...................खेर में तो फिर से अपनी बात पर आता हूँ मेले में कवि सम्मेलन और मुशायरा मेरी बीत्य सदफ जो आठ साल की है और दूसरी कक्षा में पढ़ती है उसने टी वी पर सीधा प्रसारण उसके होश में पहली बार देखा जब उसने मुशायरे में शायरों को पर्ची हाथ में लेकर पढ़ते हुए देखा और फिर कवि सम्मेलन में कवियों को भी पर्ची और डायरी में से बोलते हुए देखा तो उसका सवाल मेरे लियें मुसीबत बन गया उसका कहना था के पापा कवि सम्मेलन और मुशायरे में क्या यह लोग दूसरों की कविताएँ और गजलें पढ़ते हैं उसका सवाल था के अगर खुद का लिखा होता तो याद होता दुसरे से लिखवा कर लाये हैं जभी तो टीप टीप कर पढ़ रहे हैं ..बात तो बिटिया ने अनजाने में कही थी लेकिन बात कुछ ऐसी थी के एक फलसफा इस मामले में बनता गया और में इस मामले में मंच पर कागज़ और डायरी में से देख देख कर कविताएँ और गजलें पढने वाले शायरों के बारे में यह सोचता रहा के आखिर उनकी अगर रचनाएँ हैं तो वोह पढकर क्यूँ बोलते हैं और अगर उनकी रचनाएँ नहीं हैं तो फिर वोह इस साहित्य इस अदब को क्यूँ बदनाम करते हैं लेकिन कहा ना गधे पंजीरी कहा रहे हैं जनाब ........अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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