आपका-अख्तर खान

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19 अक्तूबर 2011

केसे जन्नत और फिर जन्नत से दोज़क हो गया

यह चाँद आ गया
ये आसमां आ गया
वोह आये
हमारे घर देखो
ऐसा लगा जेसे
सारा जहां
हमारे यहाँ आ गया ॥
उनके आने से देखो
घर में आ गयी है ईद ..दीपावली
जिंदगी में बिखर गये हैं रंग होली के
दिल चहकने लगा है बसंत सा
लेकिन देख लो
अव जब वोह जाने लगे है
ऐसा लगता है जेसे
गर्मी की उमस हो
मई जून की खतरनाक गर्मी हो
मानो जनवरी की ठिठुरती हो ठंड
इलाही देखो
उनके आने और जानेभर से
मोसम और जिंदगी का फेर
केसे जन्नत और फिर जन्नत से दोज़क हो गया है .................अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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