हमारे आसपास कई तरह लोग रहते हैं। कुछ हमारे रिश्तेदार हैं, मित्र हैं, नौकर हैं तो कुछ अनजान लोग। सभी का अलग-अलग स्वभाव होता है। कुछ अच्छे स्वभाव वाले होते हैं तो कुछ बुरे स्वभाव के। आचार्य चाणक्य बताया है कि किस प्रकार के लोगों से हमें दूर रहना चाहिए-
आचार्य चाणक्य कहते हैं-
दुष्टा भार्या शठं मित्रं भृत्यश्चोत्तरदायक:।
स-सर्पे च गृहे वासो मृत्युरेव न संशय:।।
इस श्लोक का अर्थ है कि दुष्ट स्वभाव वाली, कड़वा बोलने वाली, बुरे चरित्र वाली स्त्री, नीच और कपटी मित्र, पलटकर जवाब देने वाला नौकर और जिस घर में अक्सर सांप दिखाई देते हैं वहां रहने वाले इंसानों का जीवन भयंकर कष्टों में ही गुजरता है वहां हर पल मृत्यु का डर बना रहता है।
आचार्य के अनुसार जिस स्त्री का चरित्र अपवित्र है, जिसका स्वभाव दुष्ट प्रवृत्ति का है उसके साथ रहने वाले लोगों का जीवन हमेशा ही संकटों से भरा रहता है। ऐसे स्वभाव वाली स्त्री के पति का जीवन मृत्यु के समान ही व्यतीत होता है। इसके अलावा जिन लोगों के मित्र कपटी और नीच स्वभाव के हैं उन पर विश्वास नहीं करना चाहिए। अन्यथा वे कब धोखा दे देंगे, समझना मुश्किल है। जिन लोगों के नौकर सामने से जवाब देते हैं, मालिक का आदर नहीं करते उन्हें तुरंत हटा देना चाहिए। ऐसे नौकर कभी भी नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसके अलावा जिस घर में अक्सर सांप दिखाई देते हैं वहां रहने पर भी सर्पदंश से मृत्यु का भय हमेशा ही बना रहता है। अत: ऐसे स्थान को छोड़ देना चाहिए।
कौन है चाणक्य?
ऐसा माना जाता है सबसे पहले अखंड भारत की परिकल्पना आचार्य चाणक्य ने ही की थी। उस समय भारत आर्यावर्त के नाम से जाना जाता था। तब भारत की सीमाएं बहुत ही विस्तृत थीं, जो कि कई छोटे-छोटे साम्राज्य में विभाजित थीं। इन सभी साम्राज्यों को जोड़कर अखंड भारत बनाने का सपना आचार्य चाणक्य ने देखा था।
जब सम्राट सिकंदर भारत पर आक्रमण के लिए आया तब चाणक्य ने कूटनीति से उसे पुन: लौटा दिया था। उस समय भारत के सभी साम्राज्यों में से एक सबसे शक्तिशाली साम्राज्य था मगध। मगध की राजधानी पाटलीपुत्र थी जो कि आज पटना के नाम से प्रसिद्ध है। मगध का सम्राट धनानंद हमेशा ही भोग-विलास में डूबा रहता था और प्रजा की उसे कोई चिंता नहीं थी। वह सभी छोटे-छोटे राजाओं से मनमाना कर वसूल करता था। धनानंद ने अपनी सभा में आचार्य चाणक्य का अपमान कर दिया था। तब चाणक्य ने धनानंद का कुशासन समाप्त करने की प्रतिज्ञा ली।
प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए आचार्य चाणक्य ने एक सामान्य से बालक चंद्रगुप्त को तक्षशिला में शिक्षा दी। इसी बालक चंद्रगुप्त की मदद से चाणक्य ने धनानंद का कुशासन समाप्त किया और अखंड भारत की स्थापना की।
चाणक्य नीति (Chanakya Niti) क्या है?
आचार्य चाणक्य तक्षशिला के गुरुकुल में अर्थशास्त्र के आचार्य थें लेकिन उन्हें राजनीति और कूटनीति में भी महारत हासिल थी। चाणक्य ने एक महत्वपूर्ण ग्रंथ भी रचा जिसका नाम है चाणक्य नीति। इस नीति शास्त्र में जीवन में सफलता कैसे प्राप्त करें, इस संबंध में महत्वपूर्ण नीतियां बताई गई हैं। इन नीतियों का पालन करने वाला व्यक्ति निश्चित रूप से जीवन में हर कदम सफलता प्राप्त करता है और उल्लेखनीय कार्य करता है।
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
15 अक्टूबर 2011
ऐसी चरित्र वाली स्त्री, दोस्त या नौकर के साथ रहना मृत्यु के समान है...
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