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27 अक्तूबर 2011

लंबे समय बाद एक बार फिर दिखने लगा बटेसर मंदिर


ग्वालियर। लंबे समय से उपेक्षित बटेसर स्थित मंदिर समूह को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है। ऐतिहासिक स्थल मितावली से कुछ ही दूरी पर स्थित होने के कारण बटेसर भी देशी-विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बन जाएगा। कुछ महीनों पहले तक यह मंदिर समूह दफन था, अब यह न केवल दिखने लगा है, बल्कि साफ-सुथरा भी हो गया है। एएसआई यहां चारदीवारी, गेस्ट हाउस व पार्क आदि का निर्माण करा रही है।

एक से डेढ़ हजार साल पुराने बटेसर स्थित मंदिर तीन ओर से पहाड़ियों से घिरे होने के कारण बारिश में पानी के तेज बहाव और मिट्टी के कटाव से जमींदोज होते गए। 17 साल पहले 1994 में इस इलाके में आए भूकंप ने इन्हें सर्वाधिक नुकसान पहुंचाया, तब से ये उपेक्षित ही पड़े थे।

गुप्त काल के ये मंदिर खजुराहो के मंदिरों से भी 400 वर्ष पुराने हैं। भूतेश्वर घाटी में पहाड़ियों के बीच मलबे में दबे इन मंदिरों को वर्ष 2005 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के तत्कालीन मंडल अधीक्षण केके मोहम्मद ने ही खोजा था। एएसआई अब मंदिर के चारों ओर दीवार तथा परिसर में पार्क बनवा रहा है। पार्क के लिए पथरीली जमीन पर मिट्टी डाली जा रही है, फिर इसमें घास उगाई जाएगी। यहां एक छोटे गेस्ट हाउस का भी निर्माण किया गया है।

80 मंदिरों का हुआ जीर्णोद्धार

पिछले छह साल के दौरान एएसआई अब तक 80 मंदिरों की जीर्णोद्धार कर चुका है। छोटे-छोटे एक मंजिला आकार के करीब 200 मंदिर यहां मौजूद हैं। कुछ मंदिर 5वीं व 6वीं शताब्दी है, जबकि अधिकांश मंदिर 8वीं से 10वीं शताब्दी में गुर्जर प्रतिहार काल में निर्मित हैं। 10 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले ये मंदिर चंबल घाटी की पथरीली चट्टानों पर निर्मित हैं। एएसआई को इन मंदिरों से कुछ ही दूर ढोडामठ भी मिला है।

यह भी इन्हीं मंदिरों जैसा और उसी काल का है। इसका जीर्णोद्धार कर विशाल चबूतरा तैयार किया जा रहा है। इन मंदिरों में अधिकांश शिव के हैं जबकि कुछ विष्णु के। शिव मंदिर में कुछ आकृतियां भी हैं, जहां गंगा और यमुना क्रमश: मगरमच्छ और कछुए पर सवार हैं वहीं विष्णु मंदिर के बाहर विष्णु अवतार और उनके वाहन गरुण की आकृतियां हैं। कुछ मंदिर सूर्य और देवी को समर्पित हैं। सूर्य मंदिरों के मुख्यद्वार पर रथ और अरुण की आकृतियां है, इन्हीं आकृतियों से मंदिरों की पहचान की जा सकती है।

कैसे पहुंच सकते हैं बटेसर तक

ग्वालियर से भिंड मार्ग पर स्थित मालनपुर से यह सिर्फ 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ग्वालियर से यह उत्तर की ओर 20 किलोमीटर व मुरैना से दक्षिण पूर्व की ओर 25 किलोमीटर दूर है। हालांकि यह मुरैना जिले का हिस्सा है लेकिन भिंड और ग्वालियर जिले की सीमा भी महज 2 किलोमीटर के दायरे में स्थित है।

सीधे मार्ग के निर्माण की जरूरत

गढ़ी पढ़ावली से सिर्फ आधा किलोमीटर दूर उत्तर पश्चिम की पहाड़ियों की गोद में बटेसर के अवशेष फैले हुए हैं। यहां से महज दो किलोमीटर की दूरी पर मितावली गांव है, जहां विश्व प्रसिद्ध चौसठ योगिनी शिव मंदिर है। यहां पगडंडियों से होकर पहुंचा जाता है।

मालनपुर के पास से गुजरा उत्तर दक्षिण कॉरीडोर बाइपास यहां से सिर्फ 6 किलोमीटर दूर है। यदि यहां के लिए एक सीधी सड़क का निर्माण करते हुए इन तीनों राष्ट्रीय स्मारकों को हाईवे से जोड़ दिया जाए तो यह बड़ा टूरिस्ट जोन बन सकता है।

बाय इन्विटेशन

छोटे-छोटे मंदिरों को देखने से यह पता चलता है कि यह पाषाण स्थापत्यकला और नागर शैली मंदिर निर्माण प्रशिक्षण केंद्र रहा होगा। कुछ मंदिर पूर्ण हैं और कुछ अपूर्ण। कुछ मंदिरों के सामने नालंदा की तरह छोटे कुंड हैं। चूंकि इस इलाके के चारों ओर पत्थर (सेंडस्टोन) की विशाल खदानें भी हैं, इसलिए रॉ मटेरियल की भी कमी नहीं है। मंदिरों का निर्माण काल भी अलग-अलग है। ये 5वीं, 6वीं, 8वीं 9वी व 10वीं शताब्दी के हैं।
रमाकांत चतुर्वेदी, इतिहास व पुरातत्वविद्

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