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27 अक्तूबर 2011

जानिए...चंबल के बीहड़ से बॉर्डर तक का सफर

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मुरैना/ग्वालियर। ये हाथ भी वही हैं और बंदूकें भी वहीं, लेकिन राहें बदल चुकी हैं। चंबल के लालों को अब बीहड़ नहीं, बार्डर रास आ रहा है। चंबल के बीहड़ में पिछले साल तक 13 सौ से अधिक बागी थे। लेकिन वर्तमान में चंबल के बीहड़ पूरी तरह से खाली हैं। अब चंबल के लाड़लों की सबसे ज्यादा संख्या आर्मी और अर्धसैनिक बलों में है। एनएसजी फोर्स में भी मुरैना जिले के जवान देश की रक्षा का काम कर रहे हैं। अब चंबल बागियों के लिए कुख्यात नहीं बल्कि वीरों के लिए जाना जाता है।

चंबल अंचल में करीब 1300 से अधिक बागी रहे हैं। इन बागियों की विद्रोही गतिविधियों के किस्से आज भी पुलिस रिकार्ड में दर्ज हैं। मलखान सिंह, मोहर सिंह और रमेश सिकरवार जैसे बागी चंबल में डकैती परंपरा के अंत के पर्याय और परंपरा तोड़ने वाले अगुआ बने हैं। इन बागियों ने बीहड़ के रास्ते छोड़े और आम आदमी के जीवन को अपनाया। समाज ने भी इन्हे अपना पन दिया। बस फिर क्या था बीहड़ की ओर जाने वाले कदम वापस लौटने लगे और अंचल के सूरमाओं को देश सेवा की ओर जाने वाला रास्ता मिला।

एक गांव, 400 घर, 450 फौजी

मुरैना जिले का काजी बसई गांव मुस्लिम बाहुल्य गांव है। यहां 400 परिवार हैं। इन परिवारों के वर्तमान में 458 सपूत बॉर्डर पर देश सेवा कर रहे हैं। गांव के दो मुस्लिम युवक एनएसजी फोर्स में भी हैं। यही वजह है कि ये गांव फौजियों का गांव कहलाता है।

गांव के 90 वर्षीय बुजुर्ग सलीमुद्दीन बताते हैं कि द्वितीय विश्व युद्ध में इस गांव के 150 लोगों ने ग्वालियर महाराजा बहादुर की ओर से जंग में हिस्सा लिया था। इसके बाद रंगून में भिण्ड, मुरैना और ग्वालियर के कुल 900 सिपाही सुभाष चंद्र बोस के साथ आजाद हिंद फौज में शामिल हो गए।

51 हजार रिटायर्ड और कार्यरत सैनिक हैं चंबल में

चंबल अंचल के मुरैना-भिण्ड जिले के 40 हजार 213 सैनिक आर्मी और अन्य अर्ध सैनिक बलों में वर्तमान में कार्यरत हैं। वहीं दोनों जिलों के करीब 11 हजार 243 सैनिक रिटायर्ड होकर घर वापस आ चुके हैं। भिड-मुरैना के 139 सैनिक 1971 और 1999 के युद्ध में शहीद हुए हैं। वहीं दोनों जिलों में सैन्य विधवाओं की वर्तमान संख्या 1942 के करीब है।

क्या कर रहे परंपरा तोड़ने वाले

रमेश सिकरवार, श्योपुर जिले में

इनामी बागी रहे रमेश सिकरवार ने 17 अक्टूबर 1984 को अर्जुन सिंह के समक्ष मुरैना के सिविल लाइंस थाने में आत्म समर्पण किया था। सबलगढ़ के शिवलाल का पुरा, चंबल कालोनी के पास रहने वाले रमेश सिकरवार वर्तमान में श्योपुर जिले में अच्छा जीवन जी रहे हैं।

मलखान सिंह, आरौन में

दो लाख के इनामी रहे बागी मलखान सिंह ने 17 जून 1982 में अजरुन सिंह के समक्ष आत्म समर्पण किया था। वे गुना जिले के आरौन क्षेत्र में ग्राम पंचायत सगुगैंयाई में जा बसे मलखानसिंह का अधिकांश समय भी खेती-किसानी में बीतता है। वे गांव के सरपंच भी रहे हैं।

मोहरसिंह, भिंड के मेहगांव में

एक लाख के इनामी डकैत मोहर सिंह ने 1972 में मुरैना के जौरा कस्बे में आत्मसमर्पण किया था। वे नगर पंचायत मेहगांव के अध्यक्ष रहे हैं। वर्तमान में वे मेहगांव की दतहरा रोड पर अपने मकान में निवास कर रहे हैं और अच्छे राजनेता भी हैं।

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