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25 अक्तूबर 2011

घी के दीयों से जगमग पांच हजार मंदिर...गजब का है अंदाज


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..यह अयोध्या है। दीपावली की जन्म स्थली। यहीं से प्रस्फुटित हुई थी रोशनी। यहीं से गई थी प्रकाश की राशि, ज्ञान की राशि। हजारों-लाखों सालों से हमारी सुख, समृद्धि, खुशी और ऊर्जा का प्रतीक। मैं महसूस कर रहा हूं जलते हुए दीयों से देशी घी की महक। अयोध्या नगरी के 5 हजार से ज्यादा मंदिरों में आज देशी घी के दीये जलते हैं। इतने बड़े स्तर पर देशी घी के दीये सिर्फ अयोध्या में ही जलते हैं।

मंदिरों के बाहर तेल के। मंदिरों की साज सज्जा देखते ही बन रही है। घर-घर में मंदिर हैं। कई जगह राम नाम का जयघोष सुनाई पड़ जाता है। आज लौटे थे श्रीराम। लक्ष्मी जी की पूजा तो देश भर में होती हैं। लेकिन यहां हो रही है श्रीराम जी की पूजा, गौशाला की पूजा और सरयू जी की भी। ये सब देखना आंखों को बेहद न्यारा लग रहा है।

तीन दिन से मैं अयोध्या नगरी में घूम रहा हूं। लोगों से मिल रहा हूं। इस धर्मनगरी की दिवाली देश के अन्य हिस्सों की दिवाली से कुछ अलग है।अत्यंत सादगी लिए हुए हैं। आधुनिक चकाचौंध से दूर। कोई तड़क भड़क नहीं। एकदम शांत। बिल्कुल सरयू नदी की तरह जो आपको ठहरी हुई सी लगती हैं लेकिन ध्यान केंद्रित करने पर पता चल जाता है कि चलायमान हैं। हालांकि बीच-बीच में चायनीज लड़ियां भी जगमगा रही हैं लेकिन ज्यादातर जगहों पर दीये ही नजर आते हैं। वैसे इस सादेपन के कारण कुछ और भी हैं। असंख्य कारण। मैं खुद को जोड़ने की कोशिश कर रहा हूं इस नगरी की उस दीपावली से जब श्रीराम वापस लौटे थे।

कनक भवन में भगवान राम का भव्य मंदिर हैं। यही मूर्तियां हैं जो आपको देश के विभिन्न कैलेंडरों व पोस्टरों में दिखाई देती हैं। राम दरबार सजाया गया है लेकिन बिल्कुल सादा। ये वो भवन है जिसे कैकेयी ने जानकी जी को मुंह दिखाई में दिया था। यही यहां का सबसे भव्य मंदिर भी हैं। शाम का अंधियारा गहराने लगा है।

हम सरयू के तट पर आ गए हैं। अयोध्या नगरी के लोग धीरे धीरे जमा हो रहे हैं सरयू जी के घाटों पर। सरयू जी की पूजा के बिना दीपावली की रस्म पूरी नहीं होती। हाथों में थालियां और उसमें पूजा सामग्री लिए हुए लोग अपने अपने हिसाब से रस्मों को पूरा कर रहे हैं। श्रीराम का जयघोष बराबर जारी है। सरयू की आरती उतारी जा रही है। ताशे और घंटों की आवाज अजीब सा माहौल पैदा कर रही हैं।

इसी बीच दीप प्रज्जवलित करने का सिलसिला शुरू हो जाता है। अंधेरे में उजाले का उत्सव। और अगले ही पल निशब्द बह रही सरयू असंख्य दीयों से जगमगा उठती हैं। आतिशबाजी भी शुरू हो जाती है। सरयू के तट का ऐसा नजारा विरल ही देखने को मिलता है। पूजा में शामिल नगरपालिका के सभासद संजय शुक्ला का कहना था कि भगवान राम अयोध्यावासियों के जेहन में सदैव रहते हैं। कोशिश करते हैं कि हमारे व्यवहार में भी वैसा आचरण झलके।

लोग वापस लौटना शुरू होते हैं। घरों में कई तरह की रस्में बाकी हैं। मिठाइयों का आदान प्रदान तो दिन से ही शुरू हो गया था। फिर देर शाम तक भजनों व आतिशबाजियों का सिलसिला चलता रहता है। वरिष्ठ पत्रकार वीएन दास से मुलाकात होती है। दास का कहना था कि अयोध्या अनेक समस्याओं से घिरी हुई हैं।

पिछले 10-12 सालों से तो अयोध्यावासी और भी ज्यादा परेशानी में हैं सो दीपावली की वो रंगत भी इस परेशानी में कम पड़ जाती है। सियातदानों ने बहुत पीछे धकेल दिया अयोध्या को। कुछ ऐसा ही पत्रकार त्रियुग नारायण तिवारी भी कहते हैं।

कितने बरस की हो गई होगी दीपावली? निश्चित तौर पर कोई नहीं जानता। युगों पुरानी। लेकिन वक्त के साथ बहुत आधुनिक और मायने बदलती दीपावली। हां, मैं देख रहा हूं अयोध्या नगरी को। राम की ये नगरी वक्त के साथ कदमताल नहीं कर पा रही है। रूखी सी, पुरानी सी। मानों तेजी से बुढ़ा रही हो।

नित नए रूप ले रही दिवाली और बूढ़ी हो रही अयोध्या। त्रेता युग में अयोध्या से ही प्रकाश की लौ समस्त मानवता तक फैली थी लेकिन कलियुग तक पहुंचते पहुंचते अयोध्या के पास वो प्रकाश, वो विकास रह ही नहीं पाया। कहते हैं कि वैभव और धर्म एक जगह नहीं रहता। लेकिन देश की अन्य धर्मनगरियों को देखंे तो उपरोक्त बात अयोध्या पर ही लागू होती है। इस संदर्भ में भाजपा के वरिष्ठ नेता विनय कटियार का तर्क कुछ अलग है। कटियार के मुताबिक दीपावली पर हम अयोध्यावासी बहुत तामझाम नहीं करते। अयोध्या कंक्रीट का जंगल बनने से बची हुई है। हम चाहते भी नहीं कि ऐसा हो। राम जी को लेकर कई आयोजन शुरू किए हैं

राम लल्ला की अजब स्थिति

तमाम तरह के विवादों की बात न करते हुए बात दीपावली के ही आसपास रखें तो इस रोज राम जी की स्थिति बड़ी विकट लगती है। जो जगह राम जन्मभूमि थी, वहां राम लल्ला एक टैंट में विराजमान हैं। जिस राम की वापसी के लिए घी के दीये जलाए गए थे आज उसी राम की हिफाजत के लिए सैंकड़ों वर्दीधारी चौबीसों घंटा तैनात रहते हैं। विडंबना देखिये कि बाहर बाजार सजे हैं, घर बुहारे गए हैं, मंदिरों में शंखनाद हो रहा है लेकिन कहीं राम एक टैंट में रखे गए हैं।

किसी तिलिस्मी चीज को पाने के लिए एक से एक संकरे और डरावने रास्तों का जिक्र कथा कहानियों में होता है, ठीक वैसा ही सब कुछ है रामलल्ला तक पहुंचने के लिए। कम से कम पांच बार आपको मुकाबिल होना पड़ता है भांति-भांति के पहरेदारों से। एक बार आप राम लल्ला के दर्शनों के लिए निकलो तो चारों तरफ से बंद संकरे मार्ग पर डाल दिए जाते हैं।

कुछ ऐसे बंद कि इन कांटेदार तारों, सलाखों और जालियों के बीच कथित जिन्न तो बाहर निकल सकता है आम मनुष्य नहीं। बावजूद इसके पांच बार अलग अलग स्थानों पर आपको सिर से पांव तक टटोला जाता है। इन समस्त बाधाओं को पार करते हुए आप के तिरपाल के तंबू के सामने पहुंचते हैं। यहीं है रामलल्ला की मूर्ति। अजब बात है। आसपास बीसियों बंदूकधारी जवान खड़े हैं। उनके लिए नजदीक ही पक्के क्वार्टर भी बने हुए हैं लेकिन सालों से वे जिनकी सुरक्षा कर रहे हैं वे एक टैंट के नीचे हैं।

अयोध्या के राजा हनुमान

सभी ने सुना है कि जब भगवान राम बैकुंठ के लिए रवाना हुए तो अयोध्या का राजपाठ हनुमान जी के हवाले कर गए। अयोध्या में ऐसे बहुत से लोग मिलेंगे जो राज जी से ज्यादा हनुमान के भक्त हैं। यहां का सबसे भीड़ भाड़ वाला मंदिर भी हनुमान गढ़ी ही है। सबसे समृद्व भी। मान्यता इतनी है कि दिल्ली में रह रहे यहां के लोग भी आपसे हनुमानगढ़ी का प्रसाद लाने के लिए आग्रह करेंगे।

संभवतया यही कारण है कि छोटी दीवाली के रोज हनुमान जी का जन्म दिन इतने भव्य तरीके से मनाया जाता है कि शहर के सारे आयोजन फीके पड़ जाते हैं। इस बार हमने देखा कि रात 11 बजे से 12 बजे तक होने वाली पूजा में तो तो मंदिर परिसर में पांव रखने तक की जगह नहीं थी। इस एक घंटे जोरदार आतिशबाजियों से मानो पूरी अयोध्या नगरी ही जगमगा उठती हैं। हनुमानढ़ी के एक महंत ज्ञानदास यहीं मिले। बोले अयोध्या की दीपावली सबसे श्रेष्ठ हैं। मुख्य उत्स यही स्थान है। विजय का प्रतीक ही नहीं ऊर्जा की प्रतीक भी है अयोध्या की दीपावली।

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