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23 अक्तूबर 2011

रूहानी एहसास से भरा सफर है हज, जानिए आखिर क्यूं...


मुसलमान भी अपनी जिंदगी में कारोबारी, मुलाकाती, सैर तफरीह आदि के लिए यात्राएं करता है, लेकिन हज व जियारत के लिए मक्का व मदीने का सफर एक खास सफर है। इस यात्रा में ईमानी और रूहानी कशिश की एक खास उमंग कायम रहती है।

यही वजह है कि ज्यादातर हाजी वयोवृद्ध होने के बावजूद बेहद लंबा सफर अदा करते हुए बेहद मशक्कत भरे अराकान भी अदा कर लेते हैं। हज पर जाने वाले को अपनी मौत की परवाह भी नहीं होती। यह सफर दरअसल दुनिया व आखेरत दोनों के लिहाज से ही कामयाबी का जरिया होता है।

अल्लाह के घर का ईमानी जोश बुजुर्गो को भी जवान सा बना देता है। यह वो दयारे मुबारक है, जहां अल्लाह की रहमत दिन रात बरसती है। सुब्हानअल्लाह, खुदा ने हमें आंख दी, इनमें रौशनी दी। इससे हमने जमीं देखी, आसमां देखा, लेकिन अल्लाह का घर और उसके मेहबूब का दर नहीं देखा तो कुछ भी नहीं देखा।

मुबारक सफर के दो मकसद हैं- पहला बैतुल्लाह शरीफ का हज, दूसरा दरबारे मुस्तफा की हाजरी। हदीस शरीफ में है कि जिसने हज किया और गलत काम न किया तो वह गुनाहों से पाक होकर ऐसा जैसे लौटा कि मां के पेट से अभी पैदा हुआ हो। इसी तरह हदीस में है कि जिसने मेरी जियारत न की उसने मुझ पर जुल्म किया। एक हाजी की सारी अदाएं दरबारे हरम मक्का में मस्तानों जैसी लगती हैं।

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