यूँ रोज़ की तड़पन
यूँ नींद ना आना
यूँ रोज़ बढती धडकन
सुकून हुआ ज़ब हराम
इतना सब कुछ खोकर जाना
के
किसी कहते हैं
दिल का आना
वरना हम तो
यूँ ही
हंसी खेल समझते थे मोहब्बत को ............... अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
20 अक्तूबर 2011
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waah!
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