आपका-अख्तर खान

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20 अक्तूबर 2011

हंसी खेल समझते थे मोहब्बत को

यूँ रोज़ की तड़पन
यूँ नींद ना आना
यूँ रोज़ बढती धडकन
सुकून हुआ ज़ब हराम
इतना सब कुछ खोकर जाना
के
किसी कहते हैं
दिल का आना
वरना हम तो
यूँ ही
हंसी खेल समझते थे मोहब्बत को ............... अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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