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23 अक्तूबर 2011

जिसका नाम सुन कांप जाती है रूह, उसके संग मस्ती करते हैं ये जनाब

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इंद्रगढ़(बूंदी).हिंसक वन्य जीव भी प्यार-दुलार की भाषा न केवल समझते हैं बल्कि उसकी कद्र भी करते हैं। शायद यही वजह है कि साढ़े तीन साल की एक फीमेल पैंथर बूंदी जिले की गाजीपुरा वन चौकी पर नाकेदार मोहन सिंह के पास खिंची चली आती है।

वह उनके साथ न केवल अठखेलियां करती है, बल्कि लुकाछिपी के खेल से मनोरंजन भी करती है। मोहन सिंह भी कभी उसके गले में बांहें डालकर उसे दुलारता है तो कभी प्यार से उसके सिर को चूमता है। पिछले करीब पौने दो साल से यह अद्भुत रिश्ता परवान चढ़ रहा है।इंद्रगढ़ से करीब 17 किमी दूर यह चौकी सवाईमाधोपुर अभयारण्य क्षेत्र में है।

जब कभी जंगल में पैंथर की कॉल आती है और मोहन उसे बेटा लक्ष्मी कहकर पुकारता है, वह खिंची चली आती है। लक्ष्मी उसका हर कहना मानती है। मसलन बैठने को कहा जाए तो बैठ जाती है, पानी पीने को कहा जाए तो वह भी करती है।

बचपन में प्रभुदयाल ने पाला था

क्षेत्र के एसीएफ रंगलाल बताते हैं कि करीब साढ़े तीन साल पहले किसी ग्वाले ने रणथंभौर टाइगर प्रोजेक्ट क्षेत्र के बालास नामक स्थान पर पैंथर का एक शावक देखने की सूचना दी थी। इस पर वनकर्मियों ने उसे अपने कब्जे में लिया। वहां सहायक फोरेस्टर प्रभुदयाल ने उसका पालन पोषण किया था। इसके बाद उसे वाइल्ड बनाने के लिए गाजीपुरा वन चौकी क्षेत्र में रखा गया।

उस समय वह किल (शिकार) करना तक नहीं जानती थी। इसीलिए उसे पहले पांच बीघा क्षेत्र के एनक्लोजर (खुला लेकिन संरक्षित क्षेत्र) रखा गया। वह थोड़ी बहुत वाइल्ड हुई तो उसे पिछले साल नवंबर माह में खुले जंगल में छोड़ दिया गया।

लक्ष्मी नाम भी मोहन ने दिया

मोहन सिंह ने बताया कि उन्होंने ही इस मादा बघेरा का नाम लक्ष्मी रखा था। उन्हें भी इससे औलाद की तरह लगाव है। लक्ष्मी महीने-डेढ़ महीने में उसके पास आती रहती है। रविवार को भी वह करीब डेढ़ माह बाद उसके पास आई। मोहन ने बताया कि लक्ष्मी उनका हर आदेश बोलने से ही समझ जाती है। मोहन सिंह ने बताया कि वह छोटे वन्यजीवों का शिकार करती है, लोगों पर हमला नहीं करती।

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