महाराव रामसिंह (1827-1865) शासक थे। शहर की छावनी-रामचंद्रपुरा में रहती थी अंग्रेजों की फौज। सेना का खर्च उठाता था कोटा। एजेंसी हाउस-अंग्रेजों के पॉलिटिकल एजेंट मेजर बर्टन का घर। उस दिन स्थानीय वकील लाला जे दयाल क्रांतिकारी मेहराब खां से मिले। लड़ाई का बिगुल बज गया।
पहला हमला बर्टन के बंगले पर ही हुआ। क्रांति दूतों के आगे ब्रिटिश फौज टिक नहीं सकी। बर्टन अपने दो बेटों के साथ मारा गया। फिरंगी इस हार से हैरान थे। आखिरकार उन्होंने नसीराबाद-करौली से फौजें बुलाईं। विद्रोह तो दबा दिया गया, लेकिन तब तक गुलामी के अंधेरे से मुक्ति पाने की बेचैनी लाखों वीरों को प्रेरित कर चुकी थी।
महाराव क्रांति के पक्ष में नहीं थे, लेकिन जनता के आगे उनकी एक नहीं चली। शहर पर छह महीने तक क्रांतिकारियों का कब्ज़ा रहा। वह दीपावली अन्याय पर न्याय की विजय के उत्सव के रूप में आई।
स्रोत : इतिहासकार फिरोज अहमद के अनुसार
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