आपका-अख्तर खान

हमें चाहने वाले मित्र

09 अक्तूबर 2011

हर दर पर खाई ठोकर, उसके बाद भी जारी है गांधीगीरी

| Email Print
| Email Print

बिलासपुर।अंग्रेजों की हुकूमत के बाद जमींदारी और मालगुजारी के दिन भले ही लद गए, लेकिन इसकी जड़ें इतनी गहरी हैं कि जब-तब उभरकर सामने आ जाती हैं।

घुठिया पंचायत की कहानी भी यही है, जहां के मालगुजारों को अपने चहेते का चुनाव हारना इतना नागवार गुजरा कि उन्होंने धनीराम को सरपंची नहीं करने देने की ठान ली। इसके लिए मालगुजारों ने न सिर्फ सरपंच परिवार को प्रताड़ित करना शुरू किया, बल्कि पुलिस को भी मोहरे की तरह इस्तेमाल किया। हालात इतने बिगड़ गए कि सरपंच को न्याय के लिए पूरे परिवार के साथ आमरण अनशन पर बैठना पड़ा।

बात उसी पंचायत और परिवार की हो रही है, जिसके कारण शनिवार को हर्िी थाने के पास पुलिस आदिवासियों से दुश्मनों की तरह पेश आई। दरअसल, घुठिया पंचायत का सरपंच धनीराम ध्रुव अपनी पत्नी, दो बेटियों, भांची और बड़ी दीदी के साथ पथरिया तहसील कार्यालय के सामने 2 अक्टूबर (गांधी जयंती) से आमरण अनशन पर बैठा था।

दहशतजदा इस परिवार की मांग सिर्फ इतनी थी कि घर घुसकर मारपीट करने और जातिगत गालियां देने वाले मालगुजार के बेटे रिंकू ठाकुर व उसके साथियों पर कड़ी कार्रवाई की जाए। पुलिस उन्हें सुरक्षा दे, ताकि वे अपने घर लौट सकें। सवाल उठता है कि मालगुजार परिवार और सरपंच के बीच इतनी गहरी खाई बनी कैसे। इसके पीछे भी पंचायती राज की पुरानी कहानी है। धनीराम व मालगुजार के बेटे रिंकू ठाकुर व राकेश ठाकुर के बीच सरपंच चुनाव के समय से टसल है। मालगुजारों ने शंकर ध्रुव को अपना प्रत्याशी घोषित किया था, जो हार गया और धनीराम सरपंच चुन लिया गया।

मालगुजारों ने तभी से ठान ली कि उसे सरपंची नहीं करने दिया जाएगा। गांव के विकास कार्यो से लेकर तमाम गतिविधियों में मालगुजार परिवार ही आड़े आता रहा। सरपंच ने ग्रामीणों को साथ लेकर काम करना शुरू किया तो स्थिति और गंभीर हो गई। रिंकू व राकेश गांव के चौक-चौराहे से लेकर हर जगह धनीराम को गालियां देने लगे। विरोध करने पर पिटाई भी करते।

आखिरकार स्थिति इतनी बिगड़ गई कि धनीराम को पूरे परिवार के साथ गांव से ही बाहर होना पड़ा। पिछले एक महीने से वह अपने परिवार के साथ गांव के बाहर पुलिस अफसरों के चक्कर लगा रहा है। कहीं से न्याय नहीं मिला तो गांधीगीरी का ही रास्ता बच गया था। उसने गांधी जयंती के दिन से पूरे परिवार के साथ आमरण अनशन शुरू कर दिया। धनीराम ने रविवार को आश्वासन के बाद अपना अनशन तोड़ दिया, लेकिन मालगुजारों की दहशत अभी भी उसके और परिजनों के जेहन में घर की हुई है।

खूब बर्दाश्त किया अत्याचार

धनीराम अच्छे से जानता था कि वह मालगुजारों का विरोध नहीं कर पाएगा। यही कारण है कि वह रिंकू व राकेश द्वारा अपमानित होने के बाद भी इसकी जानकारी अपने परिजन को नहीं देता था। धनीराम के बड़े दामाद रवि ध्रुव के मुताबिक धनीराम से कई बार मारपीट हुई और उसे हर दिन जलील किया जाता था, लेकिन वह सब-कुछ चुपचाप सह लेता था।

बकौल रवि, ‘इसका खुलासा 31 अगस्त की रात हुआ, जब रिंकू व राकेश रात के 10 बजे घर घुस गए और मामा को खींचकर बाहर ले जाने लगे। हम लोगों ने मना किया तो उन्होंने हमसे भी मारपीट की। मामा ने उनकी ज्यादती की कहानी घटना के बाद सुनाई। दूसरे दिन 1 सितंबर को हम सब शिकायत करने हर्िी थाना गए। हमें न्याय की उम्मीद थी, लेकिन थाने में शिकायत से समस्या कम होने के बजाय बढ़ती चली गई।’

..तो क्या आंदोलन ही रास्ता है!

घुठिया में आदिवासी परिवार से ज्यादती और पुलिस की उदासीनता ने कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। अहम सवाल है कि क्या किसी को पुलिस से न्याय पाने के लिए धनीराम की तरह आंदोलन करना पड़ेगा और आदिवासियों को पुलिस की लाठियां खानी पड़ेंगी। ऐसा नहीं है तो फिर पुलिस ने आंदोलन और लाठीचार्ज के पहले ही रिंकू व राकेश ठाकुर के खिलाफ मामला दर्ज क्यों नहीं किया? यहां बताना लाजमी है कि पुलिस सीमा ध्रुव की शिकायत पर आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज करने जा रही है। सीमा ने आजाक थाने में यह शिकायत सितंबर में की थी।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...