पाप करने वाले को यमदूत मारते हुए कहते हैं ओ पापियों तुमने समय पर अग्रिहोत्र नहीं किया। स्वयं ब्राह्मणों को दान नहीं दिया। दूसरों को भी उन्हें दान देते समय बलपूर्वक मना किया। उसी पाप का फल तुम्हारे सामने उपस्थित है। तुम्हारा धन आग से नहीं जला था। जल में नहीं नष्ट हुआ। राजा ने नहीं छीना था। चोरों ने भी नहीं चुराया था तो भी तुमने ब्राह्मणों को दान नहीं दिया। दूसरों को भी दान देते समय बलपूर्वक मना किया। तब इस समय तुम्हे कहां से कोई वस्तु प्राप्त हो सकती है। जिन साधु पुरूषों ने सात्विक भाव से बहुत प्रकार की चीजें दान की है। उन्ही के लिए ये अन्न के समान ढेर लगे दिखाई देते हैं। इनमें हर तरह का खाने व पीने योग्य भोज्य पदार्थ है।
तुम इन्हें पाने की इच्छा न करो क्योंकि तुमने इस तरह के दान नहीं किए हैं। जिन्होंने दान होम यज्ञ और ब्राह्मणों का पूजन किया है। उन्हीं के लिए ये अन्न यहां जमा किए जाते हैं। यमदूतों की यह बात सुनकर वे भूख-प्यास से पीडि़त जीव उस अन्न की अभिलाषा छोड़ दें। यमदूतों की यह बात सुनकर वे भूख-प्यास से पीडि़त जीव उस अन्न की अभिलाषा छोड़ देते हैं।
यमदूत उन्हें भयानक अस्त्रों से पीड़ा देते हैं। लोहदंड, शक्ति, तोमर, परिघ, भिन्दिपाल, गदा, फरसा और बाणों उनकी पीठ पर प्रहार कर देते हैं। सामने की ओर से सिंह तथा बाघ आदि उन्हें काट खाते हैं। इस प्रकार के पापी जीव न तो भीतर प्रवेश कर पाते हैं और न ही बाहर निकल पाते हैं। दुखित होकर करूणकुंदन किया करते हैं। इस प्रकार वहंा पहुंचकर वे दूत यमराज को उन पापियों के आने की सूचना देते हैं और उनकी आज्ञा मिलने पर उन्हें उनके सामने उपस्थित करते हैं।
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